कोई भी अति, असंतुलन को जन्म देता है. असंतुलन अर्थात समस्या, समाधान सदैव मध्य यानी संतुलन में स्थित होता है. पाकिस्तान के संदर्भ में जादू की झप्पी या सर्जिकल स्ट्राइक, दोनों ही अतियां हैं. फिर भला भारत और पाकिस्तान का मसला आखिरकार कैसे हल हो? यह एक यक्ष प्रश्न है. हल के लिए हमें इस मर्ज को जानने और समझने की जरूरत है.
इतिहास के गर्भ में पाकिस्तान एक एक्सीडेंटल चाइल्ड है, भारत से अलग उसका कोई इतिहास, दर्शन और परंपरा नहीं है. इसलिए वह पहचान के संकट से जूझता है. विश्व पटल पर वह क्या चाहता है? इसका इल्म भी उसे नहीं है. इस कारण पाकिस्तानी-अवचेतन सदा असुरक्षा और उथल-पुथल का शिकार रहता है.
पाकिस्तानी सत्ता-संरचना इसका लाभ उठाता है. यही नहीं, भारत से वर्ष 1947, 1965,1971 और 1999 की युद्ध पराजय पाकिस्तानी मन में हिस्टीरिया पैदा करता है. ऐसे में भारत-विरोध पाकिस्तानी प्राण वायु के लिए संजीवनी का काम करता है. इसका लाभ पाकिस्तान का सत्ता-वर्ग, सैनिक तंत्र, खुफिया तंत्र, राजनीतिक दल, मीडिया और नॉन स्टेट एक्टर विशेषकर जेहादी-संगठन उठाते हैं.
पाकिस्तान से ऐसी स्थिति में कोई भी रचनात्मक पहल की उम्मीद बेमानी होगी. ऊपर से वहां जेहादी ताकतों को सियासत,जम्हूरियत,आवाम और मजहब का भी कट्टर साथ मिल जाता है. यानी एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा. दूसरी ओर भारत भी पाकिस्तानी ग्रंथि का शिकार है. पाकिस्तान के साथ नकारात्मक तुलना से भारत आत्मविश्वास और आत्ममुग्धता महसूस करता है, जबकि भारत को अपनी तुलना चीन, जापान और दक्षिण -कोरिया जैसे देशों से करना चाहिए.
चुनावी राजनीति माहौल और ज्यादा विषाक्त बना देता है. वर्तमान मोदी सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक, सैन्यवाद और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों को इस्तेमाल किया है. इससे भारतीय मन और ज्यादा आक्रामक,आग्रही और उन्मादी बना गया है. अक्रामकता स्वयं में एक समस्या होती है. सर्जिकल स्ट्राइक कोई समाधान नहीं करा सकता है, अन्यथा उरी हमले के बाद भारत ने जो सर्जिकल स्ट्राइक किया उसके बाद पुलवामा जैसी घटना नहीं होनी चाहिए.
जादू की झप्पी भी राजनयिक दृष्टि से बचकाना, उथलापन और उतावलापन है. ऐसी दशा में भारत को क्या करना चाहिए? कुछ समाधान प्रस्तुत हैं-
• भारत को पाकिस्तान से ‘कभी शोला, कभी शबनम’ वाली दृष्टि के बजाय राष्ट्रीय सहमति पर आधारित एक दूरदर्शी और दूरगामी नीति निर्मित करनी चाहिए.
• कारगिल (सुब्रहण्यम समिति की रिपोर्ट )और पुलवामा हमारे खुफिया तंत्र की भयंकर भूल थी. इसे पुख्ता और दुरुस्त करने की आवश्यकता है.
• भारत का तीव्र आर्थिक विकास और संतुलित मानव विकास पाकिस्तान के विरुद्ध एक रचनात्मक प्रतिक्रिया होगी
• राजनीतिक दलों को पाकिस्तानी मुद्दे के राजनीतिकरण से बचना चाहिए.
• भारतीय मीडिया को पाकिस्तान के संबंध में जज्बाती रिपोर्टिंग से बचना चाहिए. आखिरकार,यह राष्ट्रहित का संवेदनशील मुद्दा है.
• पाकिस्तान के साथ हमें चीन की तरह निरंतर डॉयलॉग जारी रखना चाहिए.
• पाकिस्तान के साथ व्यापार का सिलसिला चलता रहना चाहिए. जैसाकि अमेरिका और चीन के बीच होता है.
• संस्कृति, कला, चिकित्सा, विज्ञान, खेल आदि मामलों में पाकिस्तान और भारत के जनता के बीच सबंध कट्टरपंथियों को कमजोर करेगा.
• पाकिस्तान के सियासतदानों के बजाय भारत द्वारा पाकिस्तानी आवाम को एड्रेस करना ठीक होगा.
• अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में भारत द्वारा नापाक पाकिस्तानी करतूतों को बेनकाब किया जाना चाहिए. संक्षेप में हमें पाकिस्तान के साथ हमें संतुलित आक्रामकता और सतत संवाद का सिलसिला जारी रखना चाहिए.
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