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‘लोटस पनाश’: EMI भर रहे होम बायर्स, कहा- फ्लैट मिलने की उम्मीद कम

पजेशन मिलने में देरी के कारण घर खरीदारों पर बढ़ रहा आर्थिक बोझ

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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम

कैमरापर्सन: अविरल शाह

रिपोर्टर: आस्था गुलाटी

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मैं डॉ. पुनिया हूं, जो नोएडा के सेक्टर-110 के ग्रेनाइट गेट प्राइवेट प्रॉपर्टीज लिमिटेड के प्रोजेक्ट ‘लोटस पनाश’ के कई पीड़ित होमबॉयर्स में से एक हूं. मेरे पति और मेरे बेटे, दोनों ही पेशे से डॉक्टर हैं. उन्होंने मई 2010 में वहां एक फ्लैट बुक किया था, जिसका पजेशन हमें साल 2013 के सितंबर में मिलने वाला था.

पजेशन का समय 24 महीने से लेकर 39 महीने तक है जो फ्लैट की कैटेगरी पर निर्भर करता है. ये समयसीमा 2 बीएचके से 4 बीएचके फ्लैट के आधार पर अलग-अलग है. हमारे लिए पजेशन की समयसीमा 39 महीने की थी. लेकिन बिल्डर्स इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में फेल रहे और उन्हें भारी कर्ज का सामना करना पड़ा.

फिलहाल वो दिवाला प्रक्रिया का सामना कर रहे हैं.

2019 बीतने को है लेकिन अब तक ये तय नहीं है कि हमें ये फ्लैट मिल पाएगा या नहीं. इस साल जनवरी में, हमें बिना ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट के आधे-अधूरे प्लैट में शिफ्ट कर लेने को कहा गया. यूपी पुलिस ने इस ‘फिट-आउट’ को अवैध घोषित कर दिया है और होमबॉयर्स को बिल्डरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया.

हमने इस फ्लैट पर 90 लाख रुपये खर्च किए हैं, जबकि फ्लैट की कुल लागत 88 लाख रुपये थी. बैंक लोन और ईएमआई की वजह से हम पर भारी वित्तीय दबाव पड़ा है. हमने सोचा कि हमारे पास बच्चों के लिए एक फ्लैट होगा, लेकिन अब तक हमें फ्लैट नहीं मिला है.

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पजेशन नहीं मिलने पर कई फ्लैटबायर्स कई बार विरोध-प्रदर्शन कर चुके हैं.

2010 में ही फ्लैट लेने वाले दिनेश रसवंत ने बताया,

“हमने जनसुनवाई, पीएम पोर्टल जैसे कई प्लेटफॉर्म पर विरोध किया. 3 सी के कई प्रोजेक्ट साइट, ऑफिस और बिल्डरों के घरों बाहर भी विरोध प्रदर्शन किया गया, लेकिन सब बेकार साबित हुआ, कोई हल नहीं निकला."

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नोएडा अथॉरिटी को प्रोजेक्ट कंस्ट्रक्शन पर निगरानी रखनी चाहिए थी, लेकिन, ऐसा करने में वो फेल रहे. होमबायर्स को धोखा देने के बावजूद उन्होंने 3C प्रमोटर्स को जमीन दे दी.

हमारी सरकार और मीडिया से यही गुजारिश है कि वो इस मुद्दे को उठाएं और घर खरीदारों को इंसाफ दिलाने के लिए कड़ी कार्रवाई करें.

(सभी 'माई रिपोर्ट' ब्रांडेड स्टोरिज सिटिजन रिपोर्टर द्वारा की जाती है जिसे क्विंट प्रस्तुत करता है. हालांकि, क्विंट प्रकाशन से पहले सभी पक्षों के दावों / आरोपों की जांच करता है. रिपोर्ट और ऊपर व्यक्त विचार सिटिजन रिपोर्टर के निजी विचार हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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