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दरियागंज बुक मार्केट: दिल्ली के दिल का एक पुराना चैप्टर बंद

3 जुलाई को दिल्ली हाई कोर्ट ने NDMC को 50 साल पुराने दरियागंज बुक बाजार को बंद करने का आदेश दिया.

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वीडियो एडिटर: राहुल सांपुई

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हम नेताजी सुभाष मार्ग पर दरियागंज के संडे बुक मार्केट में अक्सर आया करते थे. किताब बाजार के नाम से मशहूर ये जगह किताब के शौकीनों के लिए एक ठिकाना हुआ करती थी. सभी तरह की किताबें सस्ते दामों में मिल जाती थी. एक नियमित बाजार से ज्यादा अहमियत थी इस किताब बाजार की.

लेकिन अब स्थिति बदल गई है.

3 जुलाई को दिल्ली हाई कोर्ट ने उत्तरी दिल्ली नगर निगम (NDMC) को 50 साल पुराने इस बाजार को बंद करने का आदेश दिया. इस क्षेत्र को नो-हॉकिंग जोन घोषित कर दिया.

करीब एक महीने बाद एक दोस्त के साथ दरियागंज बुक मार्केट जाने पर जो देखा वो हमें पसंद नहीं आया.

फुटपाथ पर कोई किताब नहीं दिखी. हमारी मुलाकात दो छात्रों से हुई जिन्होंने हमें बताया कि “कई सालों से संडे मार्केट में हमें किफायती दामों पर किताब मिल जाती थी, लेकिन अब बंद होने के बाद ये सुविधा खत्म हो गई है.”

“हमें यहां सस्ते दामों पर किताबें मिल जाती थी. सुविधा थी कि जिस भी राइटर की किताब लेनी होती थी हम उसे आसानी से ले लिया करते थे. अगर कोई किताब 4 हजार की है तो वो 1200-1500 रुपये में मिल जाती थी.”
सचिन, छात्र
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इस बारे में बात करने के लिए हम दरियागंज पटरी संडे बुक बाजार वेलफेयर एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सुभाष चंद अग्रवाल से मिले. अपना किताबों का स्टोरेज दिखाते हुए वो कहते हैं -

“ये किताबें कैसे आई हैं, इनका कलेक्शन मैंने कैसे किया है, ये सिर्फ मैं जानता हूं. अब सोचता हूं कि अगर मेरा संडे बाजार सरकार ने नहीं लगने दिया तो इन किताबों का क्या करूंगा? जिन लोगों का मुझे कर्जा देना है वो मैं कैसे चुकाउंगा.”
सुभाष चंद अग्रवाल, पूर्व अध्यक्ष, दरियागंज पटरी संडे बुक बाजार वेलफेयर एसोसिएशन
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दरियागंज पटरी संडे बुक बाजार वेलफेयर एसोसिएशन के फाउंडर केआर नंदा कहते हैं कि उन लोगों की तो नौकरी ही छीन गई.

“हमारे सदस्य पूरे हफ्ते किताबें कलेक्ट करते हैं. उसके बाद संडे को आकर वो वहां बेचते हैं, जिससे उनके घर का चूल्हा जलता है. मोदी जी कहते हैं कि शिक्षा चाहिए. मोदी जी कहते हैं कि काम देंगे. हमारी तो 40 साल की नौकरी छीन ली.”
केआर नंदा, फाउंडर, दरियागंज पटरी संडे बुक बाजार वेलफेयर एसोसिएशन

हॉकर अपने इस ऐतिहासिक किताब बाजार को बंद नहीं होने देना चाहते. सुभाष चंद अग्रवाल कहते हैं कि “ये मार्केट हमारी मां की तरह है. इसको हम छोड़ कर नहीं जाना चाहते हैं.
ऐतिहासिक बाजार है. यहां अमीर-गरीब बच्चे आराम से आ सकते हैं. हर तरह की हमें सुविधा है. इसलिए हम इस बाजार को नहीं छोड़ना चाहते हैं”

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