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शांतिप्रिय पाकिस्तानी के रूप में पुलवामा हमले की निंदा करता हूं

आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता. इसलिए राष्ट्रीयता और धर्म से अलग हटते हुए लोगों को हमले की निंदा करनी चाहिए.

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14 फरवरी को जब पूरी दुनिया प्यार के दिन का जश्न मना रही थी. नफरत को फैलाने वाले कुछ असमाजिक तत्वों ने 40 से अधिक घरों के चिराग को बुझा दिया. यह न केवल जवानों की हत्या थी, बल्कि उनके परिवारों की आशाओं की भी जघन्य हत्या थी. इस घटना ने पहले से नाजुक संबंधों का सामना कर रहे दक्षिण एशिया के दो पड़ोसी देशों के संबंध को और खराब कर दिया.

आदिल डार ने सभी कश्मीरी मुसलमानों के प्रतिनिधि और उनके विचारों का दावा किया. लेकिन मेरी राय में यह ऐसी घटना है जिसका दुनिया के सभी धर्म के लोग निंदा करते हैं.

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किसी के जीवन को खत्म करना कायरता के साथ-साथ बहुत ही घिनौनी हरकत है. एक पाकिस्तानी के रूप में मैंने अपने देश को आतंकवाद की गिरफ्त में जाते हुए देखा है. मेरे जैसे तमाम शांतिप्रिय और युद्ध-विरोधी पाकिस्तानियों को इस आतंकवादी हमले  ने अंदर तक हिलाकर रख दिया.
आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता. इसलिए राष्ट्रीयता और धर्म से अलग हटते हुए लोगों को  हमले की निंदा करनी चाहिए.

आतंकवाद का कोई राष्ट्र या धर्म नहीं होता. इसलिए राष्ट्रीयता और धर्म से अलग हटते हुए तमाम लोगों को इस हमले की निंदा करनी चाहिए. पुलवामा में जो कुछ भी हुआ वह निंदनीय है. चाहे मैं किसी भी धर्म का हूं. चाहे मैं उर्दू, हिंदी या डोगरी बोलूं या कोई भी राष्ट्रीयता क्यों न हो. इस हमले की जितनी भी निंदा करूं, कम है.

जो लोग मानते हैं कि एक निश्चित धर्म का पालन करके या उनके पासपोर्ट पर एक निश्चित देश की राष्ट्रीयता का मुहर लग जाने से उन्हें ऐसे हमलों के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत नहीं है. उन लोगों को कम से कम मानवता के खिलाफ इस जघन्य अपराध की निंदा करने की जरूरत है.

यह हमला सिर्फ कश्मीर या भारत के इर्द-गिर्द ही नहीं है, बल्कि यह एक धर्म के नाम पर बेवजह फैलाया जाने वाला उन्माद है. यह धर्म भी अन्य धार्मिक संप्रदायों की तरह ही शांति सिखाता है और मानव जीवन और अस्तित्व का जश्न मनाता है. इस धर्म में कहीं भी आतंक फैलाने के बारे में नहीं कहा गया है.

इस्लाम धर्म के बारे में मेरी जो थोड़ी-बहुत जानकारी है. उसके मुताबिक, मैं जानता हूं कि कुरान में कहा गया है, "एक इंसान की हत्या करना मानवता की हत्या के समान है." मैं किसी एक धर्म का पैरोकार नहीं हूं, लेकिन मैं खुद को शांति का हिमायती मानता हूं. मेरे जैसे काफी अन्य शांतिप्रिय पाकिस्तानी हैं, जो इस घटना की निंदा करते हैं और पुलवामा में जान गंवाने वाले तमाम भारतीयों के साथ दुःख और पीड़ा के इस समय में भारतीयों के साथ खड़े हैं.

यह देखकर हमें दुख होता है कि सोशल मीडिया पर हमारे देश के खिलाफ नफरत फैलाई जा रही है और हमें सामूहिक रूप से पुलवामा हादसे के लिए दोषी ठहराया जा रहा है. यह केवल एक बर्बर व्यक्ति के दिमाग की गंदी सोच का परिणाम है, इसमें हम जैसे शांतिप्रिय पाकिस्तानियों का कोई लेना-देना नहीं है.

यहां तक कि जब हमें इस घटना के बारे में पता चला, मैंने अपने करीब दोस्तों के साथ इस भीषण हमले में जान गंवाने वाले बहादुरों के लिए दो मिनट का मौन रखा.

अंत में, मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि यदि कोई बदला लेना है तो उसे विभाजनकारी और शैतानी मानसिकता से बदला लें, जिन्होंने पुलवामा को, 2014 में पेशावर के स्कूल को और 2015 में पेरिस को आतंकी हमले की आग में झेलने का काम किया है.

(लेखक पाकिस्तान से ताल्लुक रखते हैं. सभी माई रिपोर्ट सिटिजन जर्नलिस्टों द्वारा भेजी गई रिपोर्ट है. द क्विंट प्रकाशन से पहले सभी पक्षों के दावों / आरोपों की जांच करता है, लेकिन रिपोर्ट और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार संबंधित सिटिजन जर्नलिस्ट के हैं, क्विंट न तो इसका समर्थन करता है, न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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