अभी हाल ही में भुवनेश्वर में कैपिटल हॉस्पिटल के आसपास के इलाके में घुमते हुए मुझे एक मैनुअल स्क्वेंजर से मिला. 25 साल के उस युवा के भी सपने थे. लेकिन गरीबी और निचली जाति से ताल्लुक रखने की वजह से मजबूरन उसे यह काम करना पड़ रहा था. उसने बताया कि उसकी पत्नी एक स्कूल में बतौर लाइब्रेरियन काम करती हैं, जहां उसे 8000 रुपये महीने सैलरी मिलती है. एक बेटी भी है, लेकिन पैसे के अभाव में उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी.
मैंने उसे काफी जोर दिया, लेकिन उस युवा ने अपना नाम नहीं जाहिर करने को बोला. नाम जाहिर करने पर उसे नौकरी खोने का डर था. इस युवा की तरह हमारे इलाके में और इस देश में काफी लोग हैं, जिन्हें ये घिनौना काम करना पड़ रहा है. कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले तमाम सफाईकर्मी सुबह से मेनहोल, सीवर आदि की सफाई करते हैं. उसने मुझे बताया कि इस काम के लिए 5000 रुपये हर महीने उसे सैलरी मिलती है. लेकिन पिछले दो महीने से उसे सैलरी नहीं मिली है. जब मैंने सैलरी में देरी का कारण पूछा, तो उसने कहा-
हम कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर काम करते हैं. हम उनसे कुछ सवाल नहीं कर सकते. अगर हम कुछ भी पूछेंगे तो वे लोग हमें कभी भी नौकरी से निकाल सकते हैं.
मैनुअल स्क्वेंजर
इन लोगों के लिए काम के कोई घंटे भी तय नहीं होते. कॉन्ट्रैक्टर इन्हें कॉल करके कभी भी बुला लेता है. अपनी परेशानियों के बारे में ये किसी से खुलकर बात भी नहीं कर पाते हैं. जब मैंने काफी जोर डाला तो उसने अपनी परेशानियां हमसे शेयर की.
उसने बताया कि बगैर किसी सुरक्षा के उसे मेनहोल में जाना पड़ता है. अक्सर गंदगी आंख, कान और नाक और यहां तक कि मुंह के अंदर भी चला जाता है. जब भी वे मेनहोल या सीवर की सफाई के लिए अंदर जाते हैं, उन्हें लगता है कि ये उनका आखिरी दिन है. दिनभर गंदगी साफ करने के बाद शाम के समय शराब पीकर वो दिनभर की गंदगी और उससे जुड़ी यादों को मिटाने का काम करते हैं.
ना कोई मास्क दिया जाता है, ना ही कोई और सुरक्षा के उपाय किए जाते हैं. सुरक्षा के नाम पर केवल उनकी कमर से एक सेफ्टी बेल्ट बांधा रहता है. उस युवा ने बताया कि इस तरह का काम करने वाले तमाम लोग अपने प्रोफेशन को ‘’मौत का कुंआ’’ की तरह देखते हैं. जिसमें एक बार जाने के बाद कभी भी जिंदगी से हाथ धोना पड़ जाए. मेनहोल के अंदर कई तरह के हानिकारक गैस होते हैं, जिस वजह से घुटन से कई बार सफाईकर्मियों की मौत तक हो जाती है.
उस युवा ने बताया कि मेनहोल से गंदगी निकालने के लिए कई तरह की मशीनें भी हैं, लेकिन लोग एक जाति विशेष के लोगों को ही इस काम के लिए बुलाते हैं.
लोगों के लिए हम कीड़े-मकोड़े की तरह हैं. जिसे वो या तो अपने हिसाब से इस्तेमाल करते हैं या जब चाहे कुचल देते हैं.
मैनुअल स्क्वेंजर
जब मैंने उससे पूछा कि क्या आपको मैनुअल स्क्वेंजर्स के लिए पुनर्वास कानून के बारे में पता है, तो उसने इससे इनकार किया. भारत में बगैर सुरक्षा उपायों के मैनुअल स्क्वेंजिंग पर रोक लगा हुआ है. बावजूद इसके यह लगातार जारी है. सरकार इन लोगों की सुरक्षा की तरफ खास ध्यान नहीं दे रही है. यह काफी चौंकाने वाली बात है कि सफाई के दौरान मैनुअल स्क्वेंजर्स की मौत होने पर उसके परिवारवालों को सरकार की तरफ से सहायता राशि दी जाती है, लेकिन उनके जीते-जी उनके सुरक्षा के लिए कोई उपाय नहीं किए जाते.
सरकार के तमाम दावों के बावजूद मैनुअल स्क्वेंजर्स की संख्या में कमी नहीं आ रही है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 53,236 लोग मैनुअल स्क्वेंजिंग का काम कर रहे हैं. केंद्र और राज्य स्तर पर सरकार और सरकारी अधिकारियों को व्यवहारिक रूप से जागरूकता फैलाना चाहिए साथ ही इस दिशा में काम करने की जरूरत है.
देश का जिम्मेदार नागरिक होने के नाते इस चुनाव में मैं उसी नेता को वोट देना पसंद करूंगा तो मैनुअल स्क्वेंजिंग को खत्म करने के लिए भरोसा देगा साथ ही इस काम में शामिल लोगों के पुनर्वास के उपाय सुनिश्चित करेगा.
(लेखक ओडिशा के रहने वाले हैं और एग्रीकल्चर की पढ़ाई कर रहे हैं. )
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