वीडियो एडिटर: कुनाल मैहरा
मैं अक्टूबर 2019 से दिल्ली में एक घर ढूंढ रही हूं. लेकिन मुझे घर नहीं मिल पा रहा है. इसकी वजह ये है कि मेरा नाम मारिया सलीम है.
जब मकान मालिकों को पता चलता है कि जिस व्यक्ति को किराए पर घर चाहिए वो मुस्लिम है तो या तो वो ब्रोकरों का फोन उठाना बंद कर देते हैं या वो सीधे मुस्लिम किरायेदारों के लिए मना कर देते हैं. और वो भी तब है जब मैं ऐसी दिखती हूं. जब मैं वैसी पहचान रखती भी नहीं हूं.
मैं सिर्फ कल्पना कर सकती हूं कि क्या होता होगा जब मेरी बहन हिजाब के साथ जाती होगी. मुझे लगता है कि वो उसे घुसने तक नहीं देते होंगे.
कैब सर्विस के लिए ऐप में मुझे अपना नाम भी बदलना पड़ा. मैंने अपना नाम मारिया से बदल कर
माया कर दिया क्योंकि मैं सुरक्षित महसूस नहीं करती थी. जब टैक्सी ड्राइवर मुझसे पूछते थें कि
"क्या मैं मुस्लिम हूं?". और आप जानते हैं, एक अकेली लड़की काम, प्रदर्शन या कहीं और से वापस लौटती है तो उसके लिए ऐसी चीजें मुश्किल हैं.
"ये जानकर तकलीफ होती है कि धर्म की वजह से मैं लायक नहीं हूं"
ये बातें मुझे तकलीफ देती हैं. इज्जत से जिंदगी नहीं जी पाने पर मुझे गुस्सा आता है. मैं एक मुस्लिम इलाके में बड़ी हुई हूं. मैं बहुत मेहनत कर रही हूं. ऐसी जगह जाना चाहती हूं, जहां बुनियादी सुविधाएं हों. अगर मैं ऐसा नहीं कर पा रही हूं क्योंकि किसी को ऐसा लगता है कि मैं इसके लायक नहीं हूं क्योंकि मैं कौन हूं और किस धर्म में पैदा हुई, तब बहुत कुछ कहना बाकी नहीं रह जाता है.
मुझे उम्मीद है कि लोगों में समझदारी आएगी और लोग धर्म से अलग भी देखेंगे. उन लोगों के लिए कहना चाहती हूं, जो कहते हैं "ओह! हम मांसाहारी हैं, हम भी उसी का सामना करते हैं या "हम संगीतकार हैं और लोगों को हमारे साथ भी यही समस्या है"
मैं उन्हें बताना चाहूंगी: संगीतकार के रूप में आप अपने गिटार छिपा सकते हैं, मांसाहारी के रूप में आप झूठ बोल सकते हैं. एक मुसलमान के रूप में मैं अपनी पहचान नहीं छिपा सकती. मेरा नाम मारिया सलीम है और मैं हमेशा मरिया सलीम बनी रहूंगी.
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