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‘रेस्त्रां की मालिक, लेकिन पहचान ट्रांसवुमन की ही’

मैंने जहां- जहां भी काम किया , हर जगह मेरे साथ एक जैसा ही व्यवहार हुआ, लोग गंदे- गंदे कमेंट्स पास किया करते थे

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वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया

वीडियो प्रोड्यूसर: आस्था गुलाटी

मेरा नाम उरूज हुसैन है, जो बिहार के एक छोटे से शहर से है. मैं एक रेस्त्रां मालिक, एक सामाजिक कार्यकर्ता और एक उद्यमी हूं. लेकिन दुर्भाग्य से जब भी लोग मुझे देखते हैं तो मेरी पहली पहचान ट्रांसवुमन के रूप में ही करते हैं.

मैं नोएडा मे ‘स्ट्रीट टेंपटेशन’ नाम का एक रेस्टोरेंट चलाती हूं, और साथ ही साथ मैं ‘लव नोएडा’ की सह संस्थापक भी हूं, लेकिन लोगों की नजर मे हमारी तस्वीर कुछ इस प्रकार की बन गई है कि उन्हें हममें सिर्फ एक किन्नर ही दिखाई देता है और कुछ नहीं. लोगों को लगता है कि हम सिर्फ ताली बजाकर भीख मांगते हैं या तो हम सेक्स वर्कर्स है लेकिन लोगों की यह सोच असल सच्चाई से काफी परे है. मुझे अपने आप पर बहुत गर्व होता है कि मैं समाज के बनाए इन बेतुके स्टीरिओटाइप्स को तोड़, अपने खुद के दम पर अपना रेस्टोरेंट चला रहीं हूं. इससे पहले मैंने जहां भी काम किया है, वहां मेरे साथ बहुत दुर्व्यवहार किया जाता था.

मैंने भी बिल्कुल एक सामान्य बच्चे की तरह ही जन्म लिया था, पहले मुझे लगता था की मैं एक लड़का हूँ लेकिन धीरे धीरे मुझे यह एहसास होने लगा कि सिर्फ मेरा शरीर ही लड़कों जैसा है, मेरी भावनाएं बिल्कुल एक औरत की भावनाओं से मेल खाती है. और इसी वजह से मुझे मेरे परिवार और इस समाज मे काफी तकलीफों का सामना करना पड़ा. मेरे पिता चाहते थे कि मैं एक लड़के की तरह बर्ताव करूं, लेकिन मुझसे वो नहीं होता था, बचपन मे मुझे डॉल से खेलना काफी ज्यादा पसंद था, मुझे लड़कों से नहीं , लड़कियों से दोस्ती करना पसंद था.

10 वीं कक्षा में तो मैंने अपने आप पर सवाल उठाना शुरू कर दिया था . कक्षा के लड़के मेरा मज़ाक बनाते और मुझे परेशान करते लेकिन मैंने हार नहीं मानी, मैंने ग्रैजुएशन की और फिर होटल मैनेजमेंट का कोर्स भी पूरा किया. 2013 मे मैं दिल्ली आ गई और तब मैंने सोचा कि मुझे अब अपने आप को बदलना चाहिए और मैंने लेसर थेरेपी ट्रीटमेंट करवाना शुरू कर दिया.

“जब मैं एक इन्टर्न थी, कार्यस्थल पर मेरे साथ बहुत दुर्व्यवहार होता था, लोग मेरा मज़ाक बनाते थे, मुझे परेशान करते थे, और इसी वजह से फिर मैंने अपने को सभी से दूर करना और अकेले मे ही खुद को बंद रखना शुरू कर दिया, मुझे लगने लगा था कि मैं हार चुकी है, मेरे साथ हमेशा एसा ही व्यवहार होगा.”

मैंने जहां जहां भी काम किया , हर जगह मेरे साथ एक जैसा ही व्यवहार हुआ, लोग गंदे गंदे कमेंट्स पास किया करते, मेरे साथ गलत बातें किया करते, जिनकी वजह से मैं टूटने लगी थी, लेकिन फिर मैंने सोचा कि मुझे खुद का कुछ व्यापार चालू करना चाहिए और मैंने नोएडा मे अपने एक रेस्टोरेंट की शुरुवात की. रेस्टोरेंट शुरू करने के पीछे मेरा एक और मकसद था कि इससे सभी किन्नरों को भी खुद के दम पर कुछ करने और अपने आप को और मजबूत बनाने की प्रेरणा मिलेगी.

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