पिछले दिनों 9 विपक्षी दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को पत्र लिखकर केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई पर सवाल उठाया था. उनका आरोप था कि केंद्र सरकार CBI और ED का गलत तरीके से इस्तेमाल कर रही है. इस पत्र में बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, पंजाब के सीएम भगवंत मान, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के हस्ताक्षर थे. लेकिन इसमें JDU के किसी नेता का हस्ताक्षर नहीं था.
2024 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ प्रमुख रूप से विपक्ष को एकजुट करने में जुटे नीतीश कुमार के इस कदम पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं और अब पूछा जा रहा है कि आखिर नीतीश कुमार पर्याप्त मुखर क्यों नहीं है? ऐसा नहीं है कि ये कोई पहली बार हुआ है. बीते कुछ दिनों में नीतीश कुमार ने कई ऐसे कदम उठाए हैं, जिस पर अब सवाल उठ रहा है.
प्रेशर पॉलिटिक्स करते हैं नीतीश?
राजनीतिक जानकारों की मानें तो ये नीतीश कुमार की "प्रेशर पॉलिटिक्स" का हिस्सा है. मतलब नीतीश कुमार अपने सहयोगियों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार शैलेंद्र कुमार सिंह कहते हैं, "नीतीश कुमार की राजनीति को देखेंगे तो समझ आएगा कि वो गठबंधन में रहकर भी कई बार ऐसे कदम उठाते हैं जो उनके सहयोगियों को असहज कर देता है."
उन्होंने कहा कि NDA में रहने के दौरान नीतीश कुमार तेजस्वी यादव की इफ्तार दावत में शामिल हुए थे. इसके अलावा उन्होंने अपने यहां भी इफ्तार दावत में तेजस्वी और तेजप्रताप यादव को बुलाया था. वहीं, सत्ता में साझेदार रहते हुए बीजेपी के खिलाफ जाकर नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना कराने की विपक्ष की मांग को भी माना था.
RJD की तरफ से नीतीश पर हो रहे हमले
दरअसल, बीते कुछ दिनों से RJD नेताओं की तरफ से नीतीश कुमार के खिलाफ जमकर हमले हो रहे हैं. पूर्व मंत्री सुधाकर सिंह ने तो पहले ही मोर्चा खोल रखा है, जबकि कृषि मंत्री चंद्रशेखर और इसराइल अंसारी भी नीतीश कुमार की किरकिरी करा चुके हैं.
इसके अलावा RJD नेताओं की तरफ से बार-बार तेजस्वी यादव के सीएम पद की जल्द ताजपोशी की बात कही जा रही है. इससे नीतीश कुमार नाराज बताए जा रहे हैं और माना जा रहा है कि आरजेडी पर दबाव बनाने के लिए नीतीश कुमार ऐसा कर रहे हैं.
RJD क्यों कर रही नीतीश पर हमले?
नीतीश कुमार की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि वो अचानक कोई निर्णय ले लेते हैं. JDU का उभार ही बिहार में लालू यादव के कथित जंगलराज के खिलाफ हुआ था और पार्टी इसी के दम पर लंबे समय से सत्ता में है. लेकिन मौजूदा समय में दोनों साथ में हैं. पार्टी के कुछ नेताओं ने गठबंधन को लेकर सवाल उठाए हैं. उपेंद्र कुशवाहा और मीना सिंह तो पार्टी छोड़ गईं. JDU के भीतर भी दोनों के गठबंधन को लेकर कोई खास सहमति नहीं दिख रही है. ऐसे में RJD नेताओं को भी नीतीश कुमार से डर है कि पता नहीं वो कब कौन सा कदम उठा लें.
नीतीश क्यों उठा रहे ऐसे कदम?
नीतीश कुमार के राजनीतिक ट्रैक रिकॉर्ड को देखें तो समझ आएगा की वो अपने अनुकूल परिस्थिति नहीं होने पर ऐसा कदम उठाते रहे हैं.
2005 में NDA की तरफ से सीएम फेस बनने के लिए नीतीश कुमार ने पूरा जोर लगा दिया था.
2013 में BJP द्वारा नरेंद्र मोदी को पीएम फेस बनाए जाने के बाद अचानक नीतीश NDA से अलग हो गए.
2014 में जीतनराम मांझी को CM बना दिया.
2015 में नीतीश मांझी को हटाकर खुद CM बन गए.
2017 में महागठबंधन छोड़ NDA में आए.
2022 में NDA छोड़ महागठबंधन में गए.
नीतीश कुमार को किस बात का डर?
वहीं, 2019 लोकसभा चुनाव से पहले भी नीतीश कुमार की पीएम उम्मीदवारी की थोड़ी चर्चा हुई थी, लेकिन बात ज्यादा दिन तक नहीं चली. इस बार भी नीतीश कुमार विपक्ष की तरफ से पीएम पद का उम्मीदवार बनना चाहते हैं. लेकिन कांग्रेस, BRS, TMC सहित तमाम दलों की तरफ से उन्हें तवज्जो नहीं दी जा रही है. ऐसे में राजनीति के अंतिम पड़ाव पर खड़े नीतीश कुमार को डर सता रहा है कि अगर विपक्ष की तरफ से उनके नाम पर सहमति नहीं बनी तो उसकी राष्ट्रीय राजनीति में जाने की इच्छा धरी रह जाएगी.
हालांकि, राजनीतिक जानकारों की मानें नीतीश कुमार हमेशा अपने लिए विकल्प खोले रखते हैं. फिर चाहे वो किसी के भी साथ हों. वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र कहते हैं;
नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में कुछ बड़ा करके रिटायर होना चाहते हैं. बीजेपी की तरफ से उन्हें कुछ बड़ा मिलने वाला नहीं है. नीतीश कुमार की राजनीति का ये हिस्सा रहा है कि वो जिस पक्ष में रहते उसको प्रेशर में रखने के लिए दूसरे पक्ष से कुछ न कुछ तालमेल बनाकर रखते हैं ताकि दोनों तरफ पर दबाव बनता रहे.
नीतीश के मन में "का बा"?
हाल के दिनों में नीतीश कुमार ने जिस तरह से बीजेपी के लिए नरम रूख दिखाया है, उसने भी कई सवालों को जन्म दिया. लालू यादव के परिवार से जिस तरह से CBI ने पूछताछ की उस पर भी नीतीश कुमार की तरफ से कोई खास प्रतिक्रिया नहीं आई. इसके अलावा तमिलनाडु में बिहार के प्रवासी मजदूरों की कथित पिटाई के मामले में भी नीतीश ने बीजेपी की बात मानते हुए चार सदस्यी टीम को चेन्नई भेजा.
बिहार में नए राज्यपाल की नियुक्ति के बाद गृहमंत्री अमित शाह का नीतीश के पास फोन आना, जन्मदिन पर पीएम मोदी का ट्वीट कर बधाई देना और आर्मी जवान के पिता के साथ पुलिस की बदसलूकी को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का नीतीश कुमार से बात करना, कोई साधरण बात नहीं लग रही है. क्या नीतीश फिर NDA में जाएंगे?
बिहार में JDU की कम सीट आने पर भी बीजेपी ने नीतीश कुमार को CM बनाया लेकिन उन्होंने बिना वजह गठबंधन तोड़ा. बीजेपी में उनके लिए सारे दरवाजे बंद हैं. अब नीतीश कुमार को तय करना है कि विदाई सम्मानजनक तरीके से हो या अपमानित करके.प्रेम रंजन पटेल, बिहार बीजेपी प्रवक्ता
कांग्रेस सांसद शक्ति सिंह गोहिल ने कहा, "नीतीश कुमार BJP के साथ रहकर देख चुके हैं. बिहार में नेचुरल एलायंस हुआ है , आने वाले चुनाव में हम सब मिलकर लड़ेंगे और अच्छे नतीजे आएंगे."
बीजेपी से जुड़े एक सूत्र ने नाम न छपने की शर्त बताया कि बिहार की राजनीतिक परस्थितियों में नीतीश कुमार और बीजेपी एक-दूसरे की जरूरत हैं. उनके NDA में आने का फैसला केंद्रीय नेतृत्व ही करेगा. लेकिन इस बार उनकी वापसी अपनी शर्तों पर नहीं बल्कि BJP के शर्तों पर ही हो सकती है.
BJP का समर्थन करने पर JDU नागालैंड इकाई भंग
इस बीच, JDU ने नागालैंड में बीजेपी गठबंधन को सरकार बनाने में समर्थन देने के लिए पूरी प्रदेश इकाई को भंग कर दिया. JDU प्रवक्ता डॉ सुनील सिंह ने कहा कि BJP विपक्ष विहीन सरकार बनाना चाहती है और इसकी शुरुआत नागालैंड से हो गई. बीजेपी आने वाले समय में इसे पूरे देश में लागू करना चाहती है.
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