बांदा (उत्तर प्रदेश), 3 जुलाई (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के सूखे व बदहाल इलाकों में कुएं और तालाब सूख गए हैं, नदियों में पानी काफी कम हो गया है।
पानी की कमी उत्तर प्रदेश के इस क्षेत्र में आम बात है और इस साल बारिश की कमी से स्थिति बदतर हो गई है। इस बीच जल संकट को जाति संकट ने और गहरा कर दिया है।
पानी के टैंकरों को उच्च जाति की बस्तियों में भेजा जा रहा है, और दलित गांवों को बड़ी आसानी से हाशिए पर डाल दिया गया है।
दलितों को उच्च जाति के गांवों में लगे हैंडपंपों को 'छूने' की भी इजाजत नहीं है।
तेन्दुरा गांव की रितु कुमारी ने कहा, "अगर वे (उच्च जाति) परोपकार करने के मूड में होते हैं, तो वे हमें पानी से भरा घड़ा दे सकते हैं और इससे ज्यादा कुछ नहीं।"
उनके अनुसार, दलित क्षेत्र में स्थापित हैंडपंप से पानी लाने के लिए गांव के दलितों को सात से आठ किलोमीटर पैदल चलकर दूसरे गांव जाना पड़ता है।
उन्होंने आगे कहा, "वहां भी हमें एक बाल्टी से ज्यादा पानी लेने की अनुमति नहीं है, क्योंकि पंप सूख रहा है।"
ऊंची जाति के गांवों में कुंओं और हैंडपपों के पास बड़े लाठी लिए पुरुष पहरा देते हैं।
मनीष शुक्ला ने कहा, "यह पानी की चोरी रोकने के लिए है। अज्ञात लोग (दलित) यहां पानी चुराने के लिए आते हैं और हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते, क्योंकि पहले से ही पानी की किल्लत है।"
यह पूछे जाने पर कि क्या किसी को पानी देने से इनकार करना अमानवीय नहीं है? उन्होंने कड़ा रुख दिखाते हुए कहा, "यहां जंगल का कानून चलता है। अगर हम पानी छोड़ देते हैं, तो हम कैसे बचेंगे?"
यहां तक कि दलित बच्चों को बेरहमी से पीछे धकेल दिया जाता है, अगर वे किसी उच्च जाति के स्वामित्व वाले हैंडपंप या ट्यूबवेल के पास जाने की हिम्मत करते हैं। उच्च जाति के बच्चे मूकदर्शक बने रहते हैं, क्योंकि वे जाति के पूर्वाग्रह को अपनाने के लिए मजबूर हैं और इसी पूर्वाग्रह के साथ बड़े होने की तैयारी करते हैं।
टैंकरों के माध्यम से पानी की आपूर्ति भी उच्च जातियों के लिए होती है।
बांदा में जिले के एक अधिकारी ने कहा, "हम जाति के आधार पर भेद नहीं करते हैं। जब भी हमें अनुरोध मिलते हैं, हम पानी के टैंकर भेजते हैं, लेकिन हमारी सीमा भी है और सभी गांवों में टैंकर नहीं भेज सकते हैं।"
'अनुरोध' स्पष्ट रूप से उच्च जातियों से आते हैं, जो राजनीतिक रूप से प्रभावशाली हैं।
कांग्रेस के पूर्व विधायक विवेक सिंह ने स्पष्ट किया, "जाति पूर्वाग्रह तब और अधिक स्पष्ट हो जाता है, जब गरीब और अमीर के बीच की खाई चौड़ी हो जाती है, जो लोग बोतलबंद पानी खरीद सकते हैं, उन्हें टैंकर की आपूर्ति दी जा रही है, जबकि जो नहीं खरीद सकते हैं, वे इस बुनियादी सुविधा से वंचित हैं। स्थानीय नेता समान रूप से असंवेदनशील हैं - वे उन गांवों में पानी के टैंकर भेजते हैं, जिन्होंने उन्हें वोट दिया है, जबकि अन्य वंचित रह जाते हैं।"
उन्होंने कहा, "बुंदेलखंड में लोगों ने जातिवाद के साथ जीना सीख लिया है, लेकिन किसी ने कभी नहीं सोचा था कि क्षेत्र में पानी के वितरण पर भी जाति हावी होगी।"
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