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मुंबई में प्रॉपर्टी मार्केट ठंडा, खाली पड़े हैं 40 फीसदी फ्लैट

फ्लैट के खरीदार न मिलने से बिल्डर खासे परेशान

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नोटबंदी के फैसले का असर रियल एस्टेट पर एक साल बाद भी साफ-साफ दिख रहा है. नोटबंदी के बाद से अंदाज लगाया जा रहा था कि प्रॉपर्टी मार्केट को इस फैसले से उबरने में 8-9 महीनों का समय लग सकता है. लेकिन एक साल बीतने के बाद भी ये संकट बरकरार है. इतना ही नहीं, इसका असर अब तुरंत खत्म हो जाएगा, इसकी उम्मीद भी कम ही दिख रही है.

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महाराष्ट्र हाउसिंग रेगुलेटरी अथॉरिटी ने राज्य सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मुंबई और मुंबई मेट्रोपोलिटन रीजन में करीब 4 लाख फ्लैट खाली पड़े हुए हैं. इनमें 1 बीएचके और 2 बीएचके की संख्या ज्यादा है. फ्लैट को खरीदार न मिलने से बिल्डर खासे परेशान हैं.

रिपोर्ट के आंकड़े

  • MAHARERA की रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक रजिस्‍टर्ड प्रोजेक्ट 5620
  • इसमें रेसिडेंशियल और रेसिडेंशियल कम कमर्शियल दोनों हैं
  • MMR रीजन में 9 लाख 16 हजार फ्लैट तैयार हैं
  • इसमें से अब तक 5 लाख 52 हजार 911 फ्लैट ही बुक हुए
  • करीब 4 लाख फ्लैट अब भी खाली

क्यों नहीं मिल पा रहे हैं खरीदार?

नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसलों के बाद आम लोगों को उम्मीद थी कि प्रॉपर्टी के दाम में गिरावट आएगी. लेकिन सरकार के कड़े फैसलों के बाद भी मुंबई में प्रॉपर्टी की कीमतों में ज्यादा गिरावट नहीं हुई. ऐसे में अब ग्राहक भी 'वेट एंड वॉच' की भूमिका में हैं.

मुंबई के बड़े बिल्डरो में से एक पारस गुंडेचा ने क्विंट को बताया:

नोटबंदी और जीएसटी जैसे सरकार के फैसलों से ग्राहक डरा हुआ है. ग्राहकों को इस बात का भी डर सता रहा है कि कहीं आगे कोई और फैसला न हो जाए. इसलिए भी डिमांड के बावजूद खरीदारी नहीं हो पा रही है. अगले साल अप्रैल के बाद मार्केट ठीक होने की उम्मीद है.
रियल एस्टेट बाजार पर छाए मंदी के बादल जल्द छंटेंगे. ग्राहकों की पिछले सालभर से लगभग बंद सी पड़ी इंक्वायरी धीरे-धीरे शुरू हो रही है. ऐसे में उम्मीद है कि अगले 6 महीने में बाजार पटरी पर आ जाएगा.
धर्मेश जैन, निर्मल लाइफ स्टाइल

कहां कहां हैं प्रोजेक्ट

  • ठाणे- 33%
  • वेस्टर्न सबब -25%
  • ईस्टर्न सबब 18%
  • नवी मुंबई -12%
  • मुंबई - 5%

इन्वेस्टमेंट का गणित भी हुआ फेल

इतना ही नहीं, नोटबंदी से पहले इन्वेस्टमेंट के तौर पर घर की जो खरीदारी हुआ करती थी, उसमें भी बड़ी गिरावट देखी जा रही है. जिस मार्केट को ध्यान में रखकर पहले बिल्डर प्रोजेक्ट बनाया करते थे, वो गणित भी नोटबंदी के बाद फेल हो गया है.

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