24 जनवरी को मौलाना असगर अली ने हर रोज की तरह अपने दिन की शुरुआत की. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की राजधानी रायपुर (Raipur) से लगभग 50 किलोमीटर दूर तिल्दा नेवरा के सिनोधा गांव में वह अपने घर से स्थानीय मदरसे (इस्लामिक स्कूल) की ओर निकले. यहां वह 2 साल से पढ़ा रहे थे.
मदरसे में उन्होंने छात्रों के एक बैच को रीविजन करवाया और दोपहर के खाने के लिए घर लौट आए. भोजन के बाद वह मदरसे के बगल वाली मस्जिद में जाने वाले थे. इस मस्जिद में वह इमाम हैं. लेकिन जैसे ही वह भोजन के लिए बैठे लोगों की भीड़- अली के अनुसार सैंकड़ो लोग- उनके दरवाजे पर आ खड़े हुए.
मौलाना अली कहते हैं, "उन्होंने (भीड़) मुझसे कहा कि मुझे उनके साथ पुलिस स्टेशन आना होगा. लेकिन उनके साथ एक भी पुलिस अधिकारी नहीं था, इसलिए मैंने मना कर दिया."
लेकिन इसके बावजूद हिंसा पर अमादा भीड़ ने इमाम अली को उनके घर से बाहर खींच लिया और उसे अपनी गाड़ी में बिठा लिया. इमाम अली को बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि भीड़ उन्हें कहां ले जा रही है और क्यों ले जा रही है.
इमाम अली उन पलों को याद करते हुए कहते हैं, "पहले मैंने सोचा कि मुझे अगवा कर लिया गया है. लेकिन लगभग कुछ किलोमीटर बाद, उन्होंने (भीड़) तिल्दा नेवरा पुलिस स्टेशन के पास कार रोक दी. मुझे लगा कि अब कम से कम मैं पुलिस स्टेशन के पास हूं इसलिए अब वे मुझे शारीरिक रूप से नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगे."
लेकिन अगले कुछ मिनटों में मौलाना अली का अनुमान गलत साबित हो जाता है.
पुलिस स्टेशन पहुंचने के बाद भीड़ ने इमाम अली को कार से बाहर खींच लिया और उन्हें पीटना शुरू कर दिया. कुछ लोगों ने नंगे हाथों से और कुछ ने चप्पल और बेल्ट से पीटा. इमाम अली को पीटते हुए वे 'हिंदुस्तान में रहना होगा तो जय श्री राम कहना होगा' के नारे लगाने लगे.
मौलाना अली कहते हैं, "ये सब कुछ पुलिस स्टेशन के सामने हुआ लेकिन किसी ने भी बीच बचाव करने की कोशिश नहीं की." नारे लगाती भीड़ द्वारा खून से लथपथ अली को पुलिस स्टेशन के अंदर ले जाने का वीडियो बाद में सोशल मीडिया पर वायरल हो गया.
इमाम अली को पुलिस स्टेशन ले जाने के बाद उन्हें बताया गया कि उनके खिलाफ शिकायत दर्ज की गई है और उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है. मौलाना अली कहते हैं, "मुझे लगा कि पुलिस मुझे पीटती भीड़ से बचा लेगी. इसके बजाय उन्होंने मुझे गिरफ्तार कर लिया."
लेकिन अब तक इमाम अली को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उन्हें किस आरोप में गिरफ्तार किया गया है.
पुराने छात्र का व्हाट्सएप स्टेटस
इमाम अली के सिनोधा गांव में एक 14 साल के लड़के ने राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के एक दिन बाद 23 तारीख को व्हाट्सएप स्टेटस पोस्ट किया. ये लड़का पहले अली के मदरसे का छात्र था. उसके व्हाट्सएप स्टेटस में बाबरी मस्जिद की एक तस्वीर थी, जिसे 1992 में ध्वस्त कर दिया गया था और जिसकी जगह राम मंदिर बनाया गया है.
व्हाट्सएप स्टेटस में लगाई तस्वीर में लिखा था, 'सब्र...जब वक्त हमारा आएगा, तब सिर धड़ से अलग किए जाएंगे.'
14 साल के बच्चे के भड़काऊ स्टेट्स का स्क्रीनशॉट पूरे गांव में शेयर किया जाने लगा.
द क्विंट को तिलदा नेवरा पुलिस स्टेशन में हिंदू समुदाय के कुछ लोगों की ओर से दायर की गई शिकायत की कॉपी मिली है. शिकायत में कहा गया है कि पिछले कुछ सालों में कुछ मुस्लिम बाहर से आए हैं और सिनोधा गांव में अवैध रूप से रहते हैं और हिंदू समाज के खिलाफ भड़का रहे हैं और भावनाओं को आहत कर रहे है.
शिकायत में कहा गया है कि मुस्लिम बच्चों के इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिए इस तरह की शिक्षा को फैलाया गया. शिकायत में यह भी कहा गया है कि ''गांव के वरिष्ठ नागरिकों ने समझाने की कोशिश की लेकिन वे गाली-गलौज करने लगे और जान से मारने की धमकी देने लगे. ये लोग दंगा भड़काने की कोशिश कर रहे हैं जिससे ग्रामीणों और हिंदू समाज में गुस्सा है.
इमाम और 3 अन्य पर FIR और गिरफ्तारी
इमाम अली के अलावा शिकायत में नामजद मस्जिद समिति के दो अन्य सदस्य- ताहिर खान और इब्राहिम खान को भी तिल्दा न्यूरा पुलिस ने गिरफ्तार किया था. व्हाट्सएप स्टेटस डालने वाले 14 वर्षीय किशोर को जुवेनाइल जेल भेज दिया गया. ये चारों 6 दिन जेल में रहने के बाद 30 जनवरी को जमानत पर बाहर आ गए.
तिल्दा नेवरा पुलिस के SHO मुकेश शर्मा ने द क्विंट को बताया कि इमाम अली और तीन अन्य को आईपीसी की धारा 295A (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य) और 153A (अलग-अलग समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत गिरफ्तार किया गया था.
इमाम अली और मस्जिद समिति के दो अन्य सदस्यों के खिलाफ आरोप यह था कि उन्होंने ऐसी शिक्षा दी जिसकी वजह से 14 साल के लड़के ने ऐसा स्टेटस लगाया.
इमाम अली कहते हैं, "वह लड़का पिछले डेढ़ साल से मेरे पास नहीं आता है. हाल-फिलहाल में मेरी उससे कोई मुलाकात भी नहीं हुई है. इसके अलावा कोई क्या पोस्ट करता है उसपर मेरा कोई अधिकार नहीं है. और अगर आपको लगता है कि मैं गलत हूं तो पुलिस को अपना काम करने देते, मुझे क्यों पीटा गया? यह गलत है."
मस्जिद समिति के जिन दो अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया उन्होंने भी व्हाट्सएप्प स्टेटस से किसी तरह के ताल्लुक से इनकार किया है. कमिटी के सदस्य इब्राहिम खान कहते हैं, "मैं सिर्फ मस्जिद कमिटी का एक सदस्य हूं. मैं बच्चों को पढ़ाता नहीं हूं."
मैं जहां काम करता हूं, वहां पुलिस अधिकारी आए और मुझे यह कहते हुए अपने साथ ले गए कि वे मुझे सुरक्षा दे रहे हैं. लेकिन जैसे ही हम स्टेशन पहुंचे, उन्होंने मुझे गिरफ्तार कर लिया.मस्जिद कमिटी के सदस्य इब्राहिम खान
मस्जिद कमिटी के दूसरे सदस्य ताहिर खान का यह भी कहना है कि उन्हें इस पोस्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं है या उन्हें क्यों गिरफ्तार किया जा रहा है.
ताहिर खान कहते हैं,
"हमें धोखे से गिरफ्तार किया गया था. मुझे अब तक नहीं पता कि मुझे IPC की किस धारा के तहत गिरफ्तार किया गया."
हिंसक भीड़ में से किसी की गिरफ्तारी नहीं
इमाम अली को थाने के सामने पीटने के मामले में पुलिस ने अज्ञात लोगों पर भी एक FIR दर्ज की है. यह FIR आईपीसी 506 (आपराधिक धमकी) और 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने) के तहत दर्ज की गई है. इस मामले में अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है, जबकि इमाम अली को भीड़ के द्वारा अली को थाने लाने का वीडियो वायरल हो चुका है.
SHO शर्मा ने द क्विंट को बताया, "अली की पिटाई करने वाले किसी भी शख्स की अभी तक पहचान नहीं की गई है. हम जांच कर रहे हैं लेकिन अभी तक किसी नाम या चेहरे की पहचान नहीं हुई है.''
इमाम अली का कहना है कि वह भीड़ में शामिल कुछ लोगों को पहचानते हैं, क्योंकि वे गांव के स्थानीय लोग हैं.
'किसी ने भी भीड़ को मुझे पीटने से रोकने की कोशिश नहीं की': इमाम अली
जेल से बाहर आने के एक दिन बाद द क्विंट से बात करते हुए इमाम अली ने बताया कि जो कुछ हुआ, उससे वह पूरी तरह हिल गए हैं. इमाम अली ने कहा, ''मुझे मेरे घर से ले जाया गया और बिना किसी गलती के पुलिस स्टेशन के सामने पीटा गया और किसी शख्स ने भीड़ को रोकने के लिए कुछ नहीं किया. मैं अपमानित महसूस कर रहा हूं.''
जब भीड़ इमाम अली को उनके घर से उठाकर ले गई तब उनके घर पर उनकी बीबी और 5 महीने का बच्चा था. अली की पत्नी इमराना खातून कहती हैं कि वह इमाम अली के लिए बहुत डरी हुई थीं.
इमराना कहती हैं, "मुझे नहीं पता था कि वे उन्हें कहां ले जा रहे हैं. मैं उनके पीछे भी नहीं भाग सकती थी क्योंकि मुझे अपने बच्चे के साथ रहना था. बाद में जब मैंने वीडियो देखा कि उनके पूरे शरीर पर खून बह रहा है और उन्हें पुलिस स्टेशन में धकेल दिया जा रहा है तो मैं डर गई."
मूल रूप से झारखंड के रहने वाले इमाम अली का कहना है कि उन पर गांव में दुर्भावना फैलाने की कोशिश करने का झूठा आरोप लगाया गया है.
इमाम अली कहते हैं, "मैं यहां चार साल पहले आया था क्योंकि मुझे यहां कि मस्जिद और मदरसा में इमाम के तौर पर बुलाया गया था. मैं बस अपना काम कर रहा था, लेकिन बेवजह मुझे निशाना बनाया जा रहा है, वो तकलीफदेह है."
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