मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (Madhya Pradesh High Court) की इंदौर बेंच ने अजीबो-गरीब आधार पर रेप के एक दोषी की सजा घटा दी है. चार साल की बच्ची से रेप के दोषी की सजा कम करते हुए कोर्ट ने टिप्पणी कि, "दोषी काफी दयालु था कि उसने रेप के बाद बच्ची को जिंदा छोड़ दिया." कोर्ट ने दोषी की उम्रकैद की सजा को घटाकर 20 साल कर दिया है. इसके बाद से कोर्ट का यह फैसला चर्चा में है.
क्या है पूरा मामला?
दोषी रामसिंह उर्फ रामू ने 2009 के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, इंदौर के उम्रकैद के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी. इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सुबोध अभ्यंकर और जस्टिस एसके सिंह की बेंच ने याचिकाकर्ता की दोषसिद्धि में कोई खामी नहीं पाई. कोर्ट ने कहा कि हालांकि, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि उसने बच्ची को जीवित छोड़ दिया था, आजीवन कारावास की सजा को 20 साल के कठोरतम कारावास में बदला जा सकता है.
दवा और जड़ी-बूटी बेचने वाले रामसिंह को 4 साल की बच्ची के साथ रेप का दोषी पाया गया था. कोर्ट के आदेश के मुताबिक, 31 मई 2007 को रामसिंह ने नाबालिग को एक रुपये का लालच देकर टेंट में बुलाया और उसके साथ रेप किया. इस मामले में कोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी.
दोषी के वकील ने कोर्ट को बताया कि रामसिंह को इस मामले में झूठा फंसाया गया था. वह अपनी गिरफ्तारी के समय से अब तक पहले ही 15 साल जेल में बिता चुका है. राज्य की तरफ से पेश हुए वकील ने रामसिंह की अपील का विरोध करते हुए कहा कि वह किसी तरह की नरमी का हकदार नहीं है.
हाई कोर्ट ने क्या कहा?
हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने अपने आदेश में कहा, “याचिकाकर्ता की राक्षसी कृत्य को ध्यान में रखते हुए, जो एक महिला की गरिमा का सम्मान नहीं करता है और चार साल की बच्ची के साथ भी यौन अपराध करने की प्रवृत्ति रखता है. कोर्ट इसे एक उपयुक्त मामला नहीं मानती, जहां पहले से दी गई की सजा को कम किया जा सके.
"हालांकि, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि उसने रहम दिखाते हुए पीड़िता को जीवित छोड़ दिया. इस अदालत का मानना है कि उम्रकैद को कम कर 20 साल का कठोर कारावास किया जा सकता है.”
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