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हर 55 मिनट में महिलाओं को पीछे से आकर कोई डराता है

ये आंकड़े साल 2014 के मुकाबले दोगुने हैं तब 4,699 केस दर्ज हुए थे.

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इंडिया स्पेंड ने स्टॉकिंग को लेकर साल 2018 के आंकड़े जारी किए हैं, जो जनवरी में आई NCRB की रिपोर्ट है. साल 2018 में भारत में हर 55 मिनट पर स्टॉकिंग से जुड़ा एक नया केस दर्ज होता है. 2018 में स्टॉकिंग के कुल 9,438 केस दर्ज किए गए हैं. ये आंकड़े साल 2014 के मुकाबले दोगुने हैं, तब 4,699 केस दर्ज हुए थे.

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स्टॉकिंग के केस में साल-दर-साल बढ़ोतरी देखी गई है. साल 2015 में स्टॉकिंग के मामले बढ़कर 6,266 हो गए. वहीं 2016 में 7,190 और 2017 में बढ़कर 8,145 केस हो गए. 

हालांकि स्टॉकिंग और सेक्सुअल हैरेसमेंट से जुड़े अब ज्यादा केस दर्ज किए जा रहे हैं. ऐसा माना जाता था कि ये कम रिपोर्ट होते हैं. कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव (CHRI) ने 2015 में एक स्टडी की, जिसके मुताबिक दिल्ली में 13 केस में से एक केस में रिपोर्ट दर्ज होती है. वहीं मुंबई में 9 में से 1 मामले में रिपोर्ट दर्ज होती है.

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CHRI ने दिल्ली में स्टडी के दौरान 2700 परिवारों का इंटरव्यू किया. इसमें पता चला कि करीब 2.78% (75) परिवार की महिला सदस्य यौन उत्पीड़न का शिकार हुई. वहीं स्टडी के तहत मुंबई में 2,006 परिवारों का इंटरव्यू किया गया और 1.94% (39) केस में परिवार की महिला सदस्य यौन उत्पीड़न का शिकार हुई.

स्टॉकिंग के केस गंभीरता से लिया जाए

सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की डायरेक्टर रंजना कुमारी का कहना है कि स्टॉकिंग के केस को लेकर समाज में अलग अवधारणा है कि उनको लोग और पुलिस गंभीरता से नहीं लेती. ऐसे में किसी महिला के लिए आसान नहीं होता कि वो जाए और इसकी रिपोर्ट दर्ज कराए. उन्होंने बताया कि फिल्मों में इस कल्चर को बार-बार दिखाया जाना इन घटनाओं को और आम बना देता है.

एक्सपर्ट बताते हैं कि स्टॉकिंग में पीड़िता की मेंटल हेल्थ पर बहुत बुरा असर होता है. ये घटनाएं आपको गहरी चिंता में डाल सकतीं हैं और मानसिक बीमारी का शिकार बना सकती हैं.

क्या किया जाए?

एक्सपर्ट बताते हैं कि ऐसी घटनाएं न हों इसके लिए स्टॉकिंग के केस को गंभीरता के साथ लिया जाना चाहिए. तकनीकी के प्रयोग से इन केस की रिपोर्टिंग को बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए. पुलिस को ऐसे में मामलों में संवेदनशीलता दिखानी चाहिए. पुलिस स्टेशन महिलाओं के लिए सुलभ होने चाहिए.

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