24 जुलाई को SRN अस्पताल में 28 साल के एक कोरोना मरीज़ ने अपने हाथ की नस काट कर आत्महत्या का ली थी. 18 जुलाई को एक वृद्ध महिला जो कोरोना मरीज़ थी ज़मीन में घसिट घसिट कर टॉयलेट जाते समय मृत पाई गई थी. इन सब लापरवाहियों को लेकर जिला नोडल अधिकारी डॉक्टर रितेश सहाय और SRN मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल से बात की.
यूपी के प्रयागराज में कोरोना वॉर्ड से लापता मरीज का शव अस्पताल से कुछ ही दूरी पर मिला है. प्रयागराज के स्वरूपरानी नेहरू (SRN) मेडिकल कॉलेज से शिव सिंह नाम के कोरोना मरीज लापता बताए जा रहे थे. 26 जुलाई को उनका शव अस्पताल से करीब 500 मीटर दूर झाड़ियों से मिला.
इस पूरी घटना को बताते हुए शिव सिंह की बेटी मोनिका कहती हैं कि बुखार और सांस लेने में दिक्कत की वजह से 23 जुलाई को वो अपने पिता को SRN अस्पताल में लेकर आई थीं. 24 जुलाई को कोरोना टेस्ट के लिए सैंपल लिया गया था और पॉजिटिव आने के बाद उन्हें परिवारवालों को बताए बगैर कोरोना वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया गया.
मोनिका का कहना है कि हालत ये है कि कोरोना वॉर्ड में शिफ्ट करते वक्त सारा सामान वहीं छोड़ दिया गया. अब शिफ्टिंग तक के लिए उन्हें पैसे देने पड़े.
'वो सांस नहीं ले पा रहे थे'
मृतक की बेटी का आरोप है कि ऑक्सीजन लेने में भी उन्हें दिक्कत हो रही थी वो कह रहे थे कि सांस नहीं लिया जा रहा है. मोनिका का आरोप है कि अस्पताल वाले इन परेशानियों को सुनकर भी नजरंदाज कर रहे थे.
25 जुलाई को पिता जी ने फोन पर बताया कि सांस लेने में दिक्कत आ रही है. ऐसे में हमने तय किया कि पापा को हम ही खाने का कुछ सामान दे आते हैं. हम अस्पताल के गेट पर खाने का सामान लेकर पहुंचे, वहां पापा हम से खाने का सामान ले कर आराम से चलते हुए अंदर गए.कि जब हम वापस घर पहुंचे तो अस्पताल कर्मी का फोन आया कि आपके पिता बिना बताये कहीं चले गए हैं.मृतक की बेटी
'यहां शिव सिंह नाम का कोई मरीज ही नहीं'
मोनिका का दावा है कि जब वो अस्पताल पहुंची तो वॉर्ड कर्मियों से पूछा कि उनके पिता कहां हैं तो उन लोगों ने कहा इस नाम का शख्स कोई एडमिट ही नहीं हैं. इसके बाद परिवार ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. 26 जुलाई को खबर मिली की शिव सिंह का शव झाड़ियों से बरामद हुआ है. मोनिका का दावा है कि उनके पिता का मोबाइल बरामद नहीं हुआ है.
वॉर्ड से मरीज गायब हो तो जिम्मेदारी किसकी?
अब मृतक के परिवारवालों पूछ रहे हैं कि वॉर्ड से मरीज निकल जाए तो जिम्मेदारी किसी की है? क्विंट ने जब कोतवाली थाना प्रभारी दीपेंद्र कुमार सिंह से बात की तो उनहोंने कहा कि "कोरोना वार्ड में हम जांच करने नहीं जाते. ये समय उचित नहीं है कि हम वहां जाएँ. रही बात उनके बाहर निकल जाने की तो वह अस्पताल है जेल तो नहीं है न कि किसी को बाँध कर रखा जाये."
लापरवाही का ये पहला मामला नहीं
पिछले कुछ दिनों में SRN अस्पताल से आई खबरों से ऐसा लगता है कि ये लापरवाही का पहला मामला तो बिलकुल नहीं है. 24 जुलाई को SRN अस्पताल में 28 साल के एक कोरोना मरी ने अपने हाथ की नस काट कर आत्महत्या कर ली थी. 18 जुलाई को एक वृद्ध महिला जो कोरोना पॉजिटिव थीं वो जमीन पर मृत पाई गईं थीं.
नोडल अधिकारी और अस्पताल प्रशासन का क्या कहना है?
क्विंट ने इन सब लापरवाहियों को लेकर जिला नोडल अधिकारी डॉक्टर रितेश सहाय और SRN मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल से बात की.
“लापरवाही को लेकर जब शिकायत आती हैं तब प्रिंसिपल उस पर कार्रवाई करते हैं. रही बात अस्पताल में जो भी गतिविधियां हैं प्रिंउनके लिए सिपल जिम्मेदार हैं. वहां किसी तरह की लापरवाही के लिए जवाब प्रिंसिपल ही देंगे. रही बात हमारी तो हमारी जिम्मेदारी अस्पताल तक मरीज को पहुंचाने की है.”डॉक्टर ऋषि सहाय., जिला कोविड नोडल अधिकारी
SRN मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल का कहना है,
“जब सिंह वार्ड से जा रहे थे तब उनको डॉक्टर ने रोका लेकिन वह रुके नहीं. डॉक्टर ने पुलिस को खबर की. मामला मेरे संज्ञान में आया, उस वक्त मैं मीटिंग में था जैसे ही खबर लगी हमने IG साहब को खबर की. उनके नंबर को ट्रेस किया गया लेकिन दूसरे दिन उनकी बॉडी मिली. देखिए अस्पताल के गेट पर होम गार्ड थे. कोई सामान देता तो वह समझ पाते. मरीजों की साइक्लोजी अलग-अलग होती है. जहां तक लापरवाही की बात है हम जांच कराएंगे और ध्यान रखेंगे कि अब ऐसी कोई घटना न घटे.”
कुल मिलाकर नोडल अधिकारी मामले को अस्पताल प्रशासन पर डाल रहे हैं और मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल पर मरीजों की साइकोलॉजी की दलील देते हुए जांच की भी बात कर रहे हैं. इंतजार रहेगा हर केस की तरह इस जांच केस के नतीजे क्या आते हैं.
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