दिन-बुधवार
समय- दोपहर के 2.45
जगह- आगरा कोर्ट का दीवानी परिसर
यूपी बार काउंसिल की अध्यक्ष चुने जाने के बाद दरवेश यादव विजय जुलूस और स्वागत समारोहों का सिलसिला खत्म कर कुछ चुनिंदा साथियों के साथ दीवानी परिसर में अधिवक्ता अरविंद मिश्रा के चेंबर में बैठीं थी. चुनावी जीत के उतार-चढ़ाव पर चर्चा के साथ एक दूसरे को जीत का श्रेय दिया जा रहा था, इसी बीच उनके सबसे पुराने साथी मनीष शर्मा ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर 40 साल की दरवेश यादव की हत्या कर दी.
इतना ही नहीं मनीष ने खुद को भी गोली मार ली. ये मामला लगातार चर्चा में है. आखिर दरवेश की हत्या क्यों की गयी ? इसमें सबसे बड़ा सवाल है कि मनीष ने उस पौधे को क्यों काट दिया, जिसे उसने खुद बड़ा किया था ?
हमलावर की एंट्री से ही बदल गया था चेंबर का माहौल
दरवेश यादव की जीत की खुशी में आगरा कोर्ट में विजय जुलूस रखा गया था. बुधवार को दोपहर दो बजकर तीस मिनट पर विजय जुलूस खत्म कर दरवेश अपनी भांजी और मौसेरे भाई मनोज यादव के साथ अधिवक्ता डॉक्टर अरविंद मिश्रा के चेंबर में पहुंची. यहां पर करीब एक दर्जन अधिवक्ता मौजूद थे.
माहौल काफी खुशनुमा था. हर कोई दरवेश को बधाई दे रहा था. इसी बीच दरवेश का पूर्व साथी और अधिवक्ता मनीष शर्मा भी वहां पहुंचा. कुछ सेकेंड ठहरने के बाद उसने दरवेश के मौसेरे भाई मनोज से सवाल जवाब शुरू कर दिया, जिसके बाद ही अचानक माहौल गरमाने लगा. अधिवक्ता सकते में आ गए. खुद दरवेश के चेहरे की रंगत गायब हो गई. और इधर दोनों के बीच तकरार तैश में बदल गई.
जबतक कुछ समझ में आता, मनीष ने अपना लाइसेंसी पिस्टल निकाला और पहली गोली मनीष ने मनोज यादव पर ही चलाई लेकिन वह बच गया. गोली दीवार में जा लगी. इसके बाद मनीष ने ठीक बगल में बैठी दरवेश पर ताबड़तोड़ चार गोलियां चला दी. गोली लगते ही दरवेश गिर गईं और दम तोड़ दिया. इस बीच मनीष ने भी खुद को गोली मार ली. फिलहाल उसकी हालत गंभीर है और उसे गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
दरवेश ने बेहद कम उम्र में हासिल की थी सफलता
मूलरुप से एटा के मलावन क्षेत्र के चांदपुर गांव की रहने वाली दरवेश यादव का परिवार आर्थिक रुप से बहुत मजबूत नहीं था. शुरूआती दिनों में ही पिता का साथ छूट गया. लिहाजा, दरवेश और उसकी दो बड़ी बहनों की जिम्मेदारी मां के कंधों पर आ गई. अपनी मां के लिए दरवेश एक बेटी नहीं बल्कि बेटे के तौर पर थीं.
आगरा से कानून की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने 2004 में वकालत शुरू की. कम समय में ही उन्होंने अधिवक्ताओं के बीच अच्छी पैठ बना ली थी. साल 2012 में वह बार काउंसिल की सदस्य के तौर पर निर्वाचित हुईं.
जैसे-जैसे दरवेश का राजनीतिक रसूख बढ़ता गया, उसकी महत्वाकांक्षाएं बढ़ती गईं. जून महीने में हुए प्रतिष्ठित बार काउंसिल के चुनाव में उन्होंने अध्यक्ष के पद लिए अपनी दावेदारी पेश की और चुनाव जीत गई. उन्हें 24 में से 12 वोट मिले. दरवेश ने बेहद कम उम्र में जिस मुकाम को छूआ, उसकी चाहत में लोगों के सालों गुजर जाते हैं.
वाराणसी सेंट्रल बार के पूर्व अध्यक्ष राधेमोहन त्रिपाठी कहते हैं-
‘‘दरवेश शुरू से ही बेहद परिश्रमी थी. उसने कम उम्र में ही लोगों के बीच काफी लोकप्रियता हासिल कर ली थी. यूपी बार काउंसिल का अध्यक्ष बनना, उसकी कामयाबी को दर्शाता है.’’
दरवेश के हत्यारे ने ही दिखाया था इस कामयाबी का सपना
दरअसल, कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब दरवेश ने वकालत की शुरूआत की तो आगरा कोर्ट में उसे मनीष शर्मा ने ही प्लेटफार्म दिया. वही मनीष जिसने उन्हें 12 जून को गोली मारी.
ग्वालियर का रहने वाला मनीष शर्मा आर्थिक तौर पर काफी मजबूत बताया जाता है और कोर्ट में उसका प्रभाव भी है. मनीष ने दरवेश की खूब मदद की और उसे बार काउंसिल का चुनाव लड़ाया. न सिर्फ चुनाव लड़ाया बल्कि उसकी जीत के लिए दिन-रात एक कर दिया. मनीष की मदद से ही दरवेश ने यूपी बार काउंसिल में अपनी जगह बनाई और अध्यक्ष बनने का सपना देखा और उसे पूरा भी किया.
हालांकि, इसके पहले एसपी सरकार में मनीष की मजबूत रणनीति की बदौलत वह तीन दिनों के लिए काउंसिल की कार्यकारी अध्यक्ष भी बनीं लेकिन विपक्षियों ने कोर्ट के माध्यम से उन्हें हटा दिया था.
10 साल तक दरवेश और मनीष एक ही चैंबर से करते थे काम
आमतौर पर यूपी की कचहरियों में एक ही चैंबर में कई वकील बैठते हैं और वहीं अपने क्लाइंट से मिलते हैं. कुछ इसी तरह दरवेश भी मनीष के चैंबर में बैठती थी. और धीरे-धीरे समय बीतने के साथ दोनों ज्यादातर काम एक साथ ही करने लगे. यहां तक कि व्यवसायिक प्रतिद्वंदिता भी जो दूसरे वकीलों में देखने को मिल ही जाती है, वो इन दोनों में नहीं थी.
ये भी कहा जाता है कि मनीष अपने क्लाइंट से कहीं ज्यादा दरवेश के क्लाइंट को लेकर गंभीर रहता था. और यही दोस्ती आज इस हत्या की सबसे बड़ी उलझन है. यह समझना काफी मुश्किल हो रहा है कि मनीष ने गोली क्यों मारी. पुलिस इसे सुलझाने में लगी है.
चूंकि हत्या के बाद मनीष ने खुद को भी गोली मार ली है, इसलिए घटना का अलग-अलग तरीके से आंकलन किया जा रहा है.
- जब हमलावर मनीष ने दरवेश को मौत के घाट उतारा तो खुद को क्यों गोली मारी ?
- क्या मनीष को दरवेश की कामयाबी पसंद नहीं आ रही थी ?
- क्या हैसियत बढ़ने के साथ दरवेश ने मनीष को नजरंदाज करना शुरू कर दिया था. और ये बात उसे नागवार गुजर रही थी?
बताया जा रहा है कि पिछले कुछ महीनों से मनीष और दरवेश की दोस्ती में खटास आ गई थी. दोनों के बीच बातचीत लगभग बंद थी. यूपी बार काउंसिल में पैठ मजबूत होने के बाद दरवेश का उठना बैठना बड़े सर्कल में हो गया. उसकी संगत बड़े-बड़े लोगों के साथ होने लगी.
इस फ्रेम में मनीष कहीं न कहीं अपने आप को पीछे पा रहा था. दोनों के बीच एक ऐसे शख्स की भी एंट्री हुई थी, जिसे मनीष नापंसद करता था. और यही वजह मानी जा रही है कि दोनों के बीच दूरी बढ़ रही थी.
हालांकि, लोग ये भी बताते हैं कि इस दूरी को कम करने की कोशिश दरवेश की तरफ से हुई थी लेकिन मनीष की नाराजगी कम नहीं हुई. जो धीरे-धीरे एक टीस में बदल चुकी थी. फिलहाल पुलिस मामले की जांच कर रही है और परिवार वाले सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं. इस मामले में दरवेश के परिवार ने चेंबर का विवाद बताया है. लेकिन ये बात किसी के गले नहीं उतर रही है, क्योंकि संपत्ति या रंजिश में हमलावर खुद को गोली क्यों मारेगा ?
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