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अद्भुत मगर विचित्र:दिल्ली MCD को जिस कारण से बांटा गया,एकीकरण के लिए भी वही दलील

साल 2012 में दिल्ली MCD को तीन भागों में बांटा गया था.

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दिल्ली MCD चुनाव टाले जाने के पीछे कई मुंह कई बातें सामने आ रही हैं. AAP का कहना है कि पंजाब में मिली प्रचंड जीत से बीजेपी डर गई. बीजेपी को डर है कि कहीं MCD से भी उसका सफाया न हो जाए. वहीं, बीजेपी दिल्ली MCD एक्ट में बदलाव करने की कवायद में है. कहा जा रहा है कि बीजेपी तीनों नगर निगमों (दिल्ली ईस्ट, दिल्ली साउथ और दिल्ली नॉर्थ) को एक करने का प्लान बना रही है.

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निगमों के एकीकरण पर क्या है बीजेपी की दलील?

बीजेपी का मानना है कि अगर तीनों नगर निगमों को एक कर दिया जाएगा तो ऐसे में निगम कर्मचारियों को कम से कम समय पर वेतन मिल पाएगा. कर्मचारियों को वेतन के चलते बार-बार हड़ताल पर नहीं जाना पड़ेगा. तीनों नगर निगमों को एक किए जाने के बाद निश्चित तौर पर खर्चों में कमी आएगी. तीन की जगह एक कमिश्नर ही होगा तो बेहतर तरीके से मैनेजमेंट हो पाएगा. निगम के कामकाज को बेहतर तरीके से चलाने के लिए बनाई गई विभिन्न प्रकार की कमेटियों की संख्या कम होगी, जो अतिरिक्त IAS अधिकारी निगम में नियुक्त किए गए हैं उनकी संख्या में भी कमी आएगी.

दिल्ली MCD में और क्या बदलाव करने की तैयारी में है बीजेपी?

बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि पार्टी द्वारा जिन सुधारों पर विचार किया जा रहा है, उनमें मेयर का प्रत्यक्ष चुनाव, उनका कार्यकाल मौजूदा एक साल के बजाय कम से कम ढाई साल किया जाना और धन आवंटन सीधे केंद्र से किए जाने के प्रावधान शामिल हैं. ये भी खबर है कि दिल्ली के मेयर को मुख्यमंत्री की तरह कुछ विशेष अधिकार दिया जा सकता है. साथ ही कई और तरह के बदलाव भी होने की संभावना है, जिसके ऊपर अभी तस्वीर साफ होनी बाकी है. ड्राफ्ट में पार्षदों को सैलरी मिलने का प्रावधान और स्टैंडिंग कमेटी को खत्म करने का प्रावधान भी शामिल हो सकता है.

कैसे होगा निगमों का एकीकरण?

दिल्ली MCD के एक रिटायर्ड अधिकारी का कहना है कि तीनों नगर निगमों को दोबारा एक करने के लिए सबसे पहले DMCD एक्ट में संशोधन करना पड़ेगा. 2012 में जब तीनों नगर निगमों को अलग-अलग बांटा गया था, उस समय संसद में DMCD एक्ट में संशोधन करके उसे सर्वसम्मति से पारित किया गया था. तीनों नगर निगम का एकीकरण हो जाने के बाद नगर निगम की कार्यशैली में ना सिर्फ सुधार होगा, बल्कि जनता को भी मूलभूत सुविधाएं पहले के मुकाबले अच्छे तरीके से मिल सकेंगी. साथ ही राजस्व को लेकर जो निगम के स्रोत हैं उनका सही से इस्तेमाल हो सकेगा.

वित्तीय संकट से जूझ रहे तीनों नगर निगम

दिल्ली MCD के तीनों निगम मौजूदा समय में वित्तीय संकट की चपेट में हैं. यहां तक ​​कि पूर्वी और उत्तरी एमसीडी सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, उनका संयुक्त बजट घाटा 2,000 करोड़ रुपये से अधिक का है. साउथ एमसीडी कुछ साल पहले तक ठीक थी, लेकिन अब यह भी 500 करोड़ रुपये के बजट घाटे के साथ वित्तीय दबाव में आ गई है.

साउथ कॉरपोरेशन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि तीनों निगमों की अपने स्वयं के राजस्व से कुल वार्षिक आय लगभग 6,700 करोड़ रुपये है, जबकि उनके संयुक्त 160,000 कर्मचारियों के लिए कुल वार्षिक वेतन और पेंशन व्यय 8,900 करोड़ रुपये है. वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अगर निगमों का विलय हो जाता है, तो अधिकारियों की संख्या कम करके और खाली की जाने वाली कुछ जगहों को किराए पर देकर नगर निकाय लगभग 200 करोड़ रुपये बचा सकेगा.
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निगमों का एकीकरण सिर्फ वित्तीय संकट नहीं, इसके पीछे और भी वजह

ये जरूर है कि अगर दिल्ली MCD को अन्य सुधारों के साथ-साथ एक किया जाता है तो निगम के वित्तीय स्थिति को सुधारा जा सकता है. लेकिन, दिल्ली एमसीडी के विभाजन की तरह ही निगमों को एक करना भी केवल वित्तीय संकट ही एक कारण नहीं है.

जब तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और कांग्रेस सरकार की ओर से साल 2012 में DMCD को तीन भागों में बांटा गया था और जैसे उसकी ड्राफ्टिंग की गई थी उससे साफ झलक रहा था कि ये एक राजनीतिक कदम भी था. इसके जरिए तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस एमसीडी में प्रवेश करने की जुगत में थी, जो बीजेपी का गढ़ बन गया था. उस समय कांग्रेस ने दलील दी थी इतने बड़े डीएमसीडी को चलाना मुश्किल है, लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है. लोगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए ही DMCD को तीन भागों में बांटा गया है, जिससे लोगों को फायदा मिल सके. फिर 10 साल बाद बीजेपी भी राजनीतिक लाभ के लिए ही निगमों की नए सिरे से ड्राफ्टिंग करने की तैयारी में है और यही दलील दे रही है कि इसे एक कर लोगों को फायदा पहुंचाएंगे.

निगमों के एकीकरण से बीजेपी को मिलेगी संजीवनी!

बीजेपी के नेताओं का मानना है कि निगमों के एकीकरण से जनता को यह संदेश देने में भी मदद मिलेगी कि अगर वे फिर से सत्ता में आए तो एमसीडी के फंड संकट से कैसे निपटेंगे. साथ ही जनता को ये भी बताएंगे कि कांग्रेस का तीनों नगर निगमों को विभाजित करने का फैसला पूरी तरह से विफल साबित हुआ है और इसे एक कर बीजेपी ने ऐतिहासिक भूल को सुधारा है. यही मुद्दा है जिससे बीजेपी को उम्मीद है कि कम से कम उसे नगर निकाय चुनाव में फिर से उभर रही AAP के खिलाफ लड़ाई में मदद मिलेगी.

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