ADVERTISEMENTREMOVE AD

Kurella Vittalacharya: दान मांग पढ़ाई की, अब बने पद्मश्री.. कुरेला विट्ठलाचार्य कौन हैं?

डॉ कुरेला विट्ठलाचार्य को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में अहम योगदान के लिए पद्म श्री पुरस्कार दिया गया है.

Published
न्यूज
2 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

तेलंगाना (Telangana) की पांच हस्तियों को कला, साहित्य और शिक्षा के संबंधित क्षेत्रों में उनकी विशिष्ट सेवाओं के लिए पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. इसमें से एक नाम डॉ कुरेला विट्ठलाचार्य (Dr Kurella Vittalacharya) का है, जिनको साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में अहम योगदान के लिए पुरस्कार दिया गया है.

आइए जानते हैं कि कुरेला विट्ठलाचार्य कौन हैं?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 दिसंबर 2021 को रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में तेलंगाना के 84 वर्षीय रिटायर्ड कॉलेज प्रिंसिपल कुरेला विट्ठलाचार्य का जिक्र करते हुए कहा था कि "किसी की इच्छाओं को पूरा करने में कभी देर नहीं होती है और सीखने की खुशी को आगे बढ़ाने से बड़ी कोई खुशी नहीं है."

वह (डॉ कुरेला विट्ठलाचार्य) इस तथ्य का उदाहरण देते हैं कि जब अपने सपनों को पूरा करने की बात आती है, तो उम्र बिल्कुल भी मायने नहीं रखती.
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

कौन हैं डॉ कुरेला विट्ठलाचार्य?

84 वर्षीय डॉ कुरेला, यदाद्रि भुवनागिरी जिले के एक प्रतिष्ठित तेलुगु कवि और लेखक हैं. उन्होंने गांवों में पुस्तकालय स्थापित किए और 22 किताबें लिखीं, जिनमें विट्टलेश्वर सतकम (100 कविताओं का संकलन) भी शामिल है. डॉ. कुरेला विट्ठलाचार्य का जन्म 9 जुलाई, 1938 को यदाद्री भुवनगिरि जिले के रमन्नापेट मंडल में उनके ननिहाल गांव नीरनेमु में कुरेला वेंकटराजैया और लक्ष्मम्मा के घर हुआ था.

0

गरीबी में गुजरा बचपन, जन्म के बाद ही पिता का निधन

विट्ठलाचार्य के पिता का निधन साल 1938 में उसी वर्ष हो गया, जिस वर्ष विट्ठलाचार्य का जन्म हुआ था. पिता के गुजर जाने के बाद उन्होंने बेहद गरीबी में जिंदगी गुजारी.

भुवनागिरी में विश्वकर्मा छात्रावास में रहकर विट्ठलाचार्य ने अपनी शिक्षा जारी रखी और हर रविवार को क्षेत्र के सभी घरों में जाकर भोजन, आपूर्ति और किताबों जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए लोगों से दान मांगा.

विट्ठलाचार्य, किताबें खरीदने का खर्च नहीं उठा सकते थे. इस वजह से वो किताबें पढ़ने के लिए दोस्तों से उधार लिया करते थे और पढ़कर अगली सुबह वापस किया करते थे.

विट्ठलाचार्य ने 1977 में 'तेलुगु लो गोलुसुकट्टू नवलालु' पर एम फिल और 1988 में तेलुगु उपन्यासों में 'स्वतंत्र उदयमाला चित्रना' पर उस्मानिया विश्वविद्यालय से पीएचडी की.

विट्ठलेश्वर शतकम् (Vittaleshwara Shatakam) उनके द्वारा लिखी गई 22 किताबों में से एक है. उन्हें मिले कई पुरस्कारों में से 2019 में तेलंगाना सरकार द्वारा प्रदान किया गया प्रतिष्ठित दशरधि पुरस्कार भी है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

2014 में शुरू किया पुस्तकालय

साल 2014 में, विट्ठलाचार्य ने अपने कलेक्शन से पांच हजार किताबों के साथ अपने घर पर एक पुस्तकालय शुरू किया. इसके बाद उन्होंने बैठकों में पर्चे बांटना शुरू कर दिया और लोगों से किताबों के रूप में दान मांगा.

कई मशहूर लेखक, कवि और प्रोफेसर इस कदम से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी सभी किताबें विट्ठलाचार्य के पुस्तकालय को दान करना शुरू कर दिया. कुछ ही वक्त में यह कलेक्शन बढ़कर दो लाख किताबों तक पहुंच गया.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×