क्या अब बस एक ही एंट्रेंस टेस्ट के जरिए देश के बड़े यूनिवर्सिटी में एडमिशन होगा? 2022-23 एकेडमिक सेशन से, अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में पढ़ने के लिए भारत के सेंट्रल यूनिवर्सिटी में एक सामान्य प्रवेश परीक्षा (common entrance test) लागू होने की संभावना है. इस एंट्रेंस एग्जाम का नाम होगा सेंट्रल यूनिवर्सिटी कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (CUCET).
26 नवंबर को, यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) ने 45 सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को लिखा कि
“विस्तृत विचार-विमर्श के बाद, यह फैसला लिया गया कि शैक्षणिक सत्र 2022-23 से केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए यूजी और पीजी के लिए सामान्य प्रवेश परीक्षा राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) के माध्यम से आयोजित की जा सकती है."
बता दें कि सेंट्रल यूनिवर्सिटीज कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (CUCET) 2010 में लॉन्च किया गया था, केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 के तहत 12 नए केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना के एक साल बाद. इसके रोलआउट के साल में, सात नए केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने CUCET को अपनाया. इन वर्षों में, लिस्ट बढ़ती गई, और इस साल असम से केरल तक 12 केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने एनटीए की सहायता से सीयूसीईटी आयोजित किया, जो शिक्षा मंत्रालय के तहत काम करता है.
सात सदस्यीय समिति का गठन हुआ था गठन
जब से राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 ने इसकी वकालत की है, यूजीसी ज्यादा से ज्यादा केंद्रीय विश्वविद्यालयों को सीयूसीईटी के दायरे में लाना चाहता है.
पिछले दिसंबर में, 2021-22 से CUCET को लागू करने की योजना तैयार करने के लिए यूजीसी ने पंजाब के सेंट्रल यूनिव्रसिटी के वाइस चांसलर आरपी तिवारी की अध्यक्षता वाली एक सात सदस्यीय समिति का गठन किया था.
समिति की रिपोर्ट ने प्रस्ताव को आगे बढ़ा दिया, लेकिन यूजीसी को कोविड-19 महामारी के कारण योजना को स्थगित करना पड़ा. लेकिन इस 22 नवंबर को यूजीसी ने 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर के साथ बैठक की, जिसके बाद पत्र भेजा गया.
अब कहा जा रहा है कि इस रिपोर्ट के आधार पर शिक्षा मंत्रालय परीक्षा की जानकारियों को अंतिम रूप दे रहा है.
क्या बदल जाएगा?
फिलहाल में, CUCET पेपर में दो सेगमेंट होते हैं. पार्ट ए उम्मीदवार की भाषा, सामान्य जागरूकता (general awareness), गणितीय योग्यता (mathematical aptitude) और विश्लेषणात्मक कौशल (analytical skills) का परीक्षण करता है, जबकि पार्ट बी कोर्स पर आधारित होता है. दोनों पेपर में बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) होते हैं.
वहीं कुछ यूनिवर्सिटी में MBA, LLB और MCA पाठ्यक्रमों में एडमिशन के लिए, एक पेपर होता है जिसमें अंग्रेजी, रिजनिंग, संख्यात्मक क्षमता (numerical ability), सामान्य जागरूकता और एनालिटिकल स्किल को कवर करते हुए 100 MCQ शामिल होते हैं.
हालांकि इन टेस्ट के दायरे में इंजीनियरिंग और मेडिकल कोर्स नहीं आते हैं. माना जा रहा है कि इन कोर्स को भी नए पैटर्न में शामिल नहीं किया जाएगा. कुल मिलाकर नए कॉमन एंट्रेंस टेस्ट में साइंस, मानविकी (Humanities), भाषा, कला और वोकेशनल सब्जेक्ट को कवर करेगी, और हर साल कम से कम दो बार टेस्ट आयोजित होने की संभावना है.
हालांकि यूजीसी ने अभी तक एग्जाम के पैटर्न की घोषणा नहीं की है, लेकिन तिवारी समिति की रिपोर्ट में कुछ बातों पर जोर दिया गया है. इसमें कहा गया है कि अंडर ग्रेजुएट लेवल के एग्जाम दो पार्ट में होगी. सेक्शन ए एक सामान्य योग्यता परीक्षा होगी जिसमें 50 सवाल होंगे, जबकि सेक्शन बी एक कोर्स पर आधारित होगी जिसमें चुने हुए सब्जेक्ट में से 30 सवाल होंगे.
तिवारी समिति ने यह भी सिफारिश की है कि कोटा, विषय संयोजन, वरीयता आदि के संबंध में मौजूदा नीतियां कॉमन टेस्ट के रोलआउट के बाद भी लागू रहेंगी.
कॉमन एंट्रेंस टेस्ट पर सब सहमत नहीं
वहीं कई लोगों ने इस कॉमन एंट्रेंस टेस्ट के विचार का स्वागत नहीं किया है. इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए दिशा नवानी, प्रोफेसर, स्कूल ऑफ एजुकेशन, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (मुंबई) ने सहमति व्यक्त की कि मौजूदा बोर्ड-परीक्षा आधारित स्क्रीनिंग अवास्तविक कट-ऑफ की ओर ले जा रही है, लेकिन उन्हें लगता है कि एक कॉमन एंट्रेंस टेस्ट से सुधार नहीं होगा. दिशा कहती हैं, “बच्चे बहुत अलग सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हैं और उनसे एक साथ बैठने और केंद्र द्वारा निर्धारित पेपर को हल करने की अपेक्षा करना उचित नहीं होगा. जब तक हम सीखने के बजाय मूल्यांकन के तरीकों पर ध्यान देना जारी रखेंगे, यह अन्यायपूर्ण व्यवस्था जारी रहेगी.”
इनपुट- इंडियन एक्सप्रेस
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