सतीश नारायण फोन पर बताते हैं, "अगर स्कूल नहीं खुलेंगे और पेरेंट्स फीस नहीं जमा करेंगे, तो मुझे स्कूल बंद कर देना पड़ेगा."
लखनऊ निवासी सतीश क्लास एक से आठ तक का एक बजट स्कूल चलाते हैं. सतीश का कहना है कि अप्रैल से उन्हें ऑनलाइन क्लास बंद करनी पड़ीं क्योंकि मार्च से फीस आनी बंद हो गई थी.
तीन साल पहले 2017 में शुरू हुए स्कूल में करीब 150 छात्र पढ़ते हैं. लेकिन अब ये स्कूल सतीश पर 'बोझ' बन गया है. सतीश नारायण को इमारत के मालिक को हर महीने 8000 रुपये किराया देना होता है.
यूपी की एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट स्कूल के मुताबिक, लगभग 50 फीसदी प्राइवेट बजट स्कूलों को क्लास बंद करनी पड़ेंगी क्योंकि टीचरों को सैलरी देने के लिए पैसे नहीं बचे हैं.
ये नंबर इसलिए भी मत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन की भारत में प्राइवेट स्कूलों के स्टेटस पर एक रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 64 फीसदी छात्र प्राइवेट स्कूलों में हैं.
WhatsApp के जरिए ऑनलाइन लेसन देने को जब छात्रों के बीच पसंद नहीं किया गया, तो नारायण बताते हैं कि उन्होंने छात्रों तक फोटोकॉपी डिलीवर कराई. लेकिन इसका भी कुछ फायदा नहीं हुआ.
स्कूल खोलने से कर्जा बढ़ सकता है
नारायण की तरह ही प्रकाश शर्मा ने भी अपने स्कूल के करीब 200 छात्रों को मार्च में ऑनलाइन पढ़ाने की कोशिश की थी. लेकिन इन क्लासेज में सिर्फ 50 फीसदी छात्र ही आए, जिनमें से किसी ने भी इस साल अप्रैल से फीस नहीं दी है. जब टीचरों ने बिना पेमेंट के पढ़ाने से मना कर दिया तो प्रकाश ने ऑनलाइन क्लासेज बंद कर दीं. टीचरों को मार्च से पेमेंट नहीं मिला है.
प्रकाश का कहना है कि अगर उत्तर प्रदेश में स्कूल आंशिक रूप से खुल भी गए तो उन्हें रेगुलर तौर पर सैनिटाइज करना होगा और कई और कदम उठाने होंगे, जिसके लिए खर्चा होगा और स्कूल अभी इस स्थिति में नहीं है.
अगर बच्चे वापस नहीं आए?
आदिल (बदला हुआ नाम) ने मास्क और सैनिटाइजर बेचने का बिजनेस शुरू कर दिया है. ये काम आदिल ने उनके स्कूल के ऑनलाइन होने की कोशिश नाकाम होने के बाद शुरू किया.
स्कूल में क्लास एक से पांच तक के 60 से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं. जुलाई में स्कूल ने बच्चों को वापस बुलाने की कोशिश भी की थी, जब बच्चों ने कह दिया था कि उनके पास डिवाइस या इंटरनेट कनेक्शन नहीं है.
आदिल से जब पूछा गया कि अगर स्कूल बंद करना पड़ा तो वो क्या करेंगे, तो उन्होंने कहा कि वो इसे शायद कोचिंग सेंटर बना देंगे.
ये समझने के लिए बच्चे कैसे शिक्षा से दूर हो गए हैं, क्विंट ने तीन स्कूलों के कम से कम 10 बच्चों के पेरेंट्स से बात की. इनमें से ज्यादातर ने स्कूल फीस न देने के सवाल का जवाब नहीं दिया.
एक पैरेंट ने बताया कि वो हाउस पेंटर हैं और लॉकडाउन में उन्हें आर्थिक नुकसान हुआ है और अब उनके पास स्कूल फीस के लिए पैसे नहीं हैं.
10 फीसदी बंद पड़े बजट स्कूल हमेशा के लिए हो सकते हैं बंद
एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट स्कूल के अध्यक्ष अतुल श्रीवास्तव ने कहा कि मार्च और जुलाई के बीच राज्य के 50 फीसदी से ज्यादा बजट स्कूलों ने ऑनलाइन और ऑफलाइन क्लासेज बंद कर दीं. इन स्कूलों में खासकर ग्रामीण इलाके के स्कूल शामिल हैं.
श्रीवास्तव ने कहा कि कई स्कूलों पर लोन चल रहे हैं और अगर फीस नहीं मिली तो मालिकों को उन्हें बंद करना होगा और EMI देने के लिए कुछ और बिजनेस के लिए इस्तेमाल करना होगा.
श्रीवास्तव ने कहा कि क्लास 9 से 12 के स्कूलों की वित्तीय हालत प्राइमरी स्कूलों से बेहतर है क्योंकि पेरेंट्स बोर्ड एग्जाम देने जा रहे बच्चों के लिए किसी भी तरह पैसे का जुगाड़ करते हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)