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'वे हमारे साथ रूम शेयर नहीं करते'-IIT बॉम्बे सर्वे में SC/ST स्टूडेंट का दर्द

IIT-Bombay 2022 Survey:388 SC/ST छात्रों ने सर्वे में बताया कि कैसे उन्होंने कैंपस में जातिगत भेदभाव का सामना किया.

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"सामान्य श्रेणी के कई स्टूडेंट एससी / एसटी के छात्रों को ‘ओए @*#%… तुम्हारे पास तो टिकट है…’ कहकर बुलाते हैं, टिकट से उनका मतलब कास्ट सर्टिफिकेट (जाति प्रमाण पत्र) से रहता है. इसके अलावा 'साले च***र'... जैसी चीजें लगभग हर दिन होती हैं."

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) प्रकोष्ठ द्वारा फरवरी 2022 में एक सर्वे कराया गया था, जिसमें 18 साल के दलित छात्र दर्शन सोलंकी (जिसने एक साल पहले कैंपस में आत्महत्या कर ली थी) ने फीडबैक देते हुए ये लिखा था.

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दर्शन के परिवार ने आरोप लगाया था कि दर्शन को आईआईटी-बॉम्बे में जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा था, जबकि इस प्रतिष्ठित संस्थान ने उनके दावे को खारिज कर दिया था. मुंबई के पवई पुलिस स्टेशन में कुछ दिनों पहले 30 मार्च को SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(2)(V) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत एक FIR दर्ज की गई है.

उस इंटरनल सर्वे के परिणाम जोकि सेल द्वारा फरवरी 2022 में एससी और एसटी छात्रों के बीच वितरित किए गए थे, वे क्विंट हाथ लगे हैं. सर्वे में कुल 388 छात्रों (कैंपस के कुल एससी और एसटी छात्रों का लगभग 20 प्रतिशत) ने हिस्सा लिया था, इनमें से कईयों ने इस बारे में विस्तार से बताया था कि कैसे कैंपस में उन्हें जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

सर्वे में यह भी पता चला कि जाति के बारे में पता लगाने के लिए साथी छात्रों द्वारा तीन में से एक एससी और एसटी छात्र से उनकी रैंक पूछी गई थी.

दर्शन की मौत ने कैंपस में कथित जाति-आधारित भेदभाव से जुड़ी कई खराब स्थितियों को उजागर कर दिया. द क्विंट ने आईआईटी-बॉम्बे में हाशिये पर रहने वाले समुदायों से आने वाले छात्रों के बयानों की पड़ताल की और इससे पता चला कि किस तरह वहां खुले तौर पर भेदभाव किया जाता है, जहां हाशिए पर खड़े समुदायों के छात्रों के लिए जातिसूचक शब्द इस्तेमाल किये जाते हैं, इसके अलावा कुछ परोक्ष तरीके भी देखने को मिलें, उन तरीकों से इस वर्ग के छात्र खुद को बहिष्कृत और अलग-थलग महसूस करते हैं.

सर्वे से क्या सामने आया?

आईआईटी-बॉम्बे के एससी/एसटी सेल द्वारा सर्वे कराया गया था. सर्वे प्रश्नावली (questionnaire) फॉर्मेट में था और इसे गूगल फॉर्म के माध्यम से वंचित समुदायों से संबंधित छात्रों के बीच जारी किया गया था. सर्वे में 388 स्टूडेंट्स ने हिस्सा लिया था, जिसमें से 70 फीसदी छात्र एससी कम्युनिटी से थे और बाकी के एसटी समुदाय से थे. सर्वे में हिस्सा लेने वालों में से कम से कम 65 फीसदी स्टूडेंट पुरुष छात्र थे.

सर्वे से निकले कुछ ऑब्जर्वेशन इस तरह से हैं :-

  1. इस सवाल पर कि क्या किसी ने "आपको जाति/आदिवासी सूचक गालियां दी हैं या कैंपस में आपके साथ भेदभाव किया है." 83.5 प्रतिशत छात्रों ने अपने जबाव में कहा 'नहीं'.

  2. 70.4 फीसदी स्टूडेंट्स ने कहा कि उन्होंने कैंपस में किसी और के साथ भेदभाव होते नहीं देखा है. जबकि 16.5 फीसदी छात्रों ने कहा हां भेदभाव होता है, यहां तक कि उन्होंने खुद ऐसे मामलों के उदाहरणों को देखा है.

  3. 25 फीसदी या हर चार में से एक स्टूडेंट ने कहा कि पहचान उजागर होने के डर ने उन्हें एससी/एसटी फोरम या सामूहिक में शामिल होने से रोका है.

  4. 15.5 फीसदी स्टूडेंट्स ने कहा कि जाति आधारित भेदभाव के कारण उन्हें मेंटल हेल्थ (मानसिक स्वास्थ्य) संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा है.

  5. लगभग 37 फीसदी स्टूडेंट्स ने कहा कि उनकी (जाति) पहचान का पता लगाने के लिए कैंपस में साथी स्टूडेंट्स द्वारा उनकी JEE/GATE/JAM/(U)CEED रैंक पूछी गई थी.

  6. 26 फीसदी स्टूडेंट्स ने कहा कि उनकी जाति जानने के इरादे से उनका सरनेम (उपनाम) पूछा गया.

  7. 21.6 फीसदी, या हर पांच छात्रों में से एक ने कहा कि उन्हें इस बात का डर था कि अगर वे जातिगत भेदभाव के खिलाफ बात करेंगे तो फैकल्टी उनके साथ कैसा बर्ताव करेगी.

  8. 31.2 फीसदी या हर तीन छात्रों में से एक ने कहा कि उन्हें लगता है कि एससी/एसटी सेल को कैंपस में जातिवाद को एड्रेस करने के लिए जो कुछ कर रही उससे कहीं अधिक करने की जरूरत है.

  9. 388 छात्रों में से करीब 25 प्रतिशत, यानी हर चार छात्रों में से एक स्टूडेंट ने कहा कि वे कक्षा 10 में इंग्लिश मीडियम स्कूल में नहीं जाता था.

  10. 22 फीसदी स्टूडेंट्स अपने परिवार से पहली पीढ़ी के ग्रेजुएट हैं.

  11. करीब 36 फीसदी स्टूडेंट्स ने महसूस किया कि ओपन कैटेगरी के छात्र अपनी शैक्षणिक क्षमता को 'औसत' मानते हैं. यह 51 प्रतिशत एससी/एसटी छात्रों के विपरीत है जो ओपन कैटेगरी के छात्रों की अकादमिक क्षमता को 'बहुत अच्छा' मानते हैं.

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'मेरे साथी मुझसे मेरा सरनेम पूछते हैं, मैं इससे असहज होती हूं. यह मुझे रुला देता है' : सर्वे में हिस्सा लेने वाले एक स्टूडेंट की प्रतिक्रिया

एससी/एसटी समुदाय से संबंधित कई छात्रों ने "विशेष तौर पर फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट्स के बीच आरक्षण विरोधी भावना" के बारे में शिकायत की है. अधिकांश छात्रों ने दावा किया है कि यह सब ओपन कैटेगरी के स्टूडेंट्स से शुरू होता है जो या तो उनकी जेईई रैंक या उनके सरनेम (उपनाम) पूछते हैं.

एक स्टूडेंट ने सर्वे में लिखा कि "यहां पहले दिन से ही आपसे आपकी रैंक पूछी जाती है. यह काफी हद तक तय करता है कि दूसरे लोग आपके बारे में कैसा महसूस करते हैं. समय के साथ-साथ, आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से आरक्षण-विरोधी चर्चाओं का सामना करते हैं... कभी-कभी, जब आप नए लोगों से मिलते हैं और आप उन्हें अपना पहला नाम (फर्स्ट नेम) बताते हैं तो अक्सर सामने वाले की प्रतिक्रिया होती है - आपका सरनेम (उपनाम) क्या है? मैं इसके साथ सहज महसूस नहीं करता, लगभग मेरी आंखों में आंसू आ जाते हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि जैसे कोई भी स्थिति की गंभीरता को समझना ही नहीं चाहता है."

कई स्टूडेंट्स ने कहा कि उन्होंने तब खुद को बहिष्कृत महसूस किया जब उनके सहपाठियों को पता चला कि वे एक हाशिए के समुदाय से संबंधित हैं. एक स्टूडेंट ने लिखा कि "रैंक कम होने की वजह से मेरे दोस्त मुझसे किसी भी विषय पर चर्चा नहीं करते. अगर मैं उनकी चर्चा में शामिल हो जाऊं तो वे चुप हो जाते हैं या चर्चा छोड़ देते हैं. हमारे नजरिए या राय को आसानी से नजरअंदाज कर दिया जाता है."

'वे हमारे साथ रूम शेयर करना पसंद नहीं करते' : एससी/एसटी स्टूडेंट ने सर्वे में लिखा

एक स्टूडेंट ने यह भी लिखा कि भले ही एक ओपन कैटेगरी (OC) के छात्र को एससी / एसटी समुदाय के एक छात्र के साथ रखने का एक सामान्य नियम है, "लेकिन वे हमारे साथ रूम शेयर करना पसंद नहीं करते हैं."

एक अन्य स्टूडेंट ने यह शिकायत की कि ओपन कैटेगरी के स्टूडेंट उन्हें अपने फ्रेंड सर्कल में शामिल नहीं करते हैं, या लैब में ग्रुप असाइनमेंट में शामिल नहीं करते हैं, या उनके "सोशल मीडिया पर फ्रेंड रिक्वेस्ट" स्वीकार नहीं करते हैं.

सर्वे में एक कॉमन समस्या जो सामने आई वह यह थी कि ट्यूशन फीस में छूट को लेकर ओपन कैटेगरी के स्टूडेंट्स के द्वारा एससी / एसटी के छात्रों पर ताना मारा जाता है.

फरवरी 2020 की एक घटना को याद करते हुए एक स्टूडेंट ने कहा "सरकारी नीतियों के कारण,एससी / एसटी के छात्रों को आय के बावजूद ट्यूशन फीस का भुगतान नहीं करना पड़ता है. इसको लेकर एक ओपन कैटेगरी के स्टूडेंट ने एससी / एसटी समुदाय से आने वाले अपने दोस्त से कहा, 'आप तो बड़े लोग हो, एडमिशन भी ऐसे हो गया और फीस भी नहीं देना पड़ता, अच्छा है'."

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"मेरे दोस्त सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर जातिवादी मीम्स शेयर करते हैं" : आईआईटी-बॉम्बे का स्टूडेंट

सर्वे में कई स्टूडेंट्स ने व्हाट्सएप और सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे जातिवादी मीम्स और जोक्स को अनुचित ठहराया है.

एक स्टूडेंट ने लिखा कि "मैंने अपने कई दोस्तों को आरक्षण विरोधी कंटेंट सहित सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर जातिवादी मीम/पोस्ट शेयर करते हुए देखा है. मेरे कुछ दोस्तों ने खुले तौर पर कहा है कि उन्हें लगता है कि आरक्षित श्रेणी के छात्र करदाताओं (टैक्सपेयर्स) के पैसे बर्बाद करते हैं. खुले तौर की जाने वाली इस तरह की टिप्पणियां बहुत असहज करने वाली होती हैं."

सिस्टम की खामियों से उजागर हो जाती है जाति की पहचान : सर्वे में हिस्सा लेने वाले स्टूडेंट्स

कुछ स्टूडेंट्स ने सिस्टम की खामियों की ओर इशारा किया है, जो अनजाने में उनकी जाति की पहचान को सामने ला देते हैं.

उदाहरण के तौर पर प्लेसमेंट के दौरान या किसी भी प्रकार की डेटा एकत्र करने की प्रक्रिया के दौरान, जिसमें सभी बैचमेट्स के बीच एक सामान्य शीट शेयर की जाती है और उसमें कैटेगरी वाला एक कॉलम भरना अनिवार्य होता है.

इस तरह की प्रैक्टिस से खीझे हुए एक स्टूडेंट ने सर्वे में लिखा "इसकी एक्सेस हर किसी तक होती है. इसकी जरूरत क्यों है! भले ही मैंने इसके खिलाफ बोला, लेकिन कुछ भी नहीं बदला, कोई फर्क नहीं पड़ा. मैंने ऐसी बहुत सी चीजें देखी हैं, जो हमें भीड़ में भी अलग खड़ाकर देती हैं."

एक स्टूडेंट ने इसका भी उल्लेख किया कि जब एडमिशन के बाद रोल नंबर अलॉट किए जाते हैं उस समय एससी / एसटी समुदाय के छात्रों को पहले के कुछ शुरुआती नंबर मिलते हैं, उस स्टूडेंट ने यह सवाल उठाया कि ये रोल नंबर रैंडम तरीके ये क्यों अलॉट नहीं किए जाते हैं.

स्टूडेंट ने लिखा कि "मुझे लगता है, कहीं न कहीं, यह पहचानने का एक अपरोक्ष तरीका है. जहां जाति के बारे में कोई स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं करता है लेकिन एक अदृश्य बाउंड्री या टैग बनाता है."

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क्या एससी / एसटी सेल अपने उद्देश्य में विफल हो रहा है?

सर्वे में जब यह पूछा गया कि एससी/एसटी सेल को और क्या करने की जरूरत है? इस पर कई स्टूडेंट्स ने कहा कि आरक्षण को लेकर ओपन कैटेगरी के स्टूडेंट्स को संवेदनशील होने की जरूरत है.

एक स्टूडेंट ने लिखा कि "ज्यादातर स्टूडेंट्स को लगता है कि आरक्षित श्रेणी के छात्र अनुपयुक्त हैं और आरक्षण उन्हें अनावश्यक लगता, लेकिन उन्हें ये नहीं पता कि वे उन विशेषाधिकार को पहले से ही एक "बेहतर" समुदाय में पैदा होने से प्राप्त कर रहे हैं."

एक अन्य स्टूडेंट ने सुझाव दिया कि एससी/एसटी सेल को प्रथम वर्ष के छात्रों के लिए एक मेंटरिंग प्रोग्राम शामिल करना चाहिए ताकि अकादिमिक्स (academics) के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों और "और यहां साथियों की अति प्रतिस्पर्धी प्रकृति" में उनके परिवर्तनकाल को आसान बनाया जा सके.

स्टूडेंट ने कहा "मैं अकादमिक स्टफ से ज्यादा महसूस करता हूं, किसी के नीचे (कमतर) होने की भावना और मानसिक मुद्दे (आत्मसम्मान कम होना) ऐसे मुद्दे हैें जो इसके साथ चलते हैं. जोकि वाकई में सीपीआई के साथ-साथ समग्र रूप से विकास में बाधा डालते हैं.

स्टूडेंट्स ने यह सुझाव भी दिए कि एससी / एसटी सेल द्वारा इंग्लिश ट्रेनिंग कोर्स, आत्मविश्वास में सुधार लाने के लिए सेशन, सोशल जस्टिस और डायवर्सिटी पर सेमिनार और एक मजबूत शिकायत निवारण प्रणाली प्रदान की जानी चाहिए.

स्टूडेंट वेलनेस सेंटर द्वारा मानसिक स्वास्थ्य (मेंटल हेल्थ) पर इसी तरह का एक अन्य सर्वे जून 2022 में किया गया था.

APPSC से जुड़े एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट को बताया कि “सर्वे किए जाने के बाद, जुलाई 2022 में IIT बॉम्बे ने फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट्स के लिए एक मेंटरशिप प्रोग्राम शुरू किया है. हालांकि यह अभी तक कई कोर्सों या प्रोग्रामों तक विस्तारित नहीं हुआ है. मैं पूरी तरह से श्योर नहीं हूं कि यह रसायन विभाग (केमिकल डिपार्टमेंट जिससे दर्शन संबंधित था) तक विस्तारित है या नहीं. लेकिन क्या यह इस बात को स्वीकारना नहीं है कि कोई न कोई तो समस्या है."

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दर्शन सोलंकी कौन है?

दर्शन सोलंकी फर्स्ट ईयर का स्टूडेंट था, जो प्रतिष्ठित संस्थान से केमिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक कर रहा था, लेकिन 12 फरवरी को आत्महत्या कर ली थी. दर्शन गुजरात के अहमदाबाद का रहने वाला था, उसने अपनी रैंक बेहतर करने और आईआईटी बॉम्बे में जगह बनाने के लिए दो बार जेईई पास किया था.

दर्शन के पिता रमेश सोलंकी हैं, जोकि प्लंबर का काम करते हैं, दर्शन की मां का नाम तार्लीकाबेन हैं, जो एक गृहिणी हैं. दर्शन के परिवार ने पहले क्विंट को बताया था कि दर्शन ने अपने दम पर इस परीक्षा के लिए पढ़ाई की थी और कोई भी बाहरी कोचिंग नहीं की थी.

दर्शन के परिवार और एक स्टूडेंट बॉडी अंबेडकर फुले पेरियार स्टडी सर्कल (APPSC) ने दर्शन की मौत के साथ जाति-आधारित भेदभाव को जोड़ा था, यहां तक कि स्टूडेंट बॉडी ने इस मौत को "संस्थागत हत्या" भी कहा था.

इस दौरान, IIT बॉम्बे, जोकि कैंपस में जातिगत पूर्वाग्रह के आरोपों का खंडन कर रहा है. उसने अपनी एक अंतरिम रिपोर्ट जोकि एक आंतरिक समिति द्वारा तैयार की गई है में कहा है आत्महत्या की एक संभावित वजह 'खराब एकेडमिक परफॉर्मेंस' हो सकती है.

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