क्लास रूम में CCTV लगाया जाएगा और अभिभावकों को फुटेज का लाइव लिंक दिया जाएगा. रोहिणी के सेक्टर 9 के एक सरकारी स्कूल की 12वीं कक्षा की छात्रा स्नेहा पांडे ने कहा कि, ''यह अच्छी बात है कि माता-पिता के पास हमारी कक्षाओं का सीसीटीवी फुटेज होगा- छात्र अब क्लास बंक नहीं कर पाएंगे.'' लेकिन वो आगे कहती हैं कि, "लेकिन अगर ऐसा तब किया जाता जब मैं कक्षा 2 या 3 में थी, तो मैं बहुत डर जाती. मैं तब शायद स्वाभाविक नहीं रह पाई होती".
स्नेहा उन कई स्टूडेंट में शामिल हैं, जो अभिभावकों को छात्रों की सीसीटीवी फुटेज मुहैया कराने की दिल्ली सरकार की योजना के दायरे में आएंगी.
प्राइवेसी का सवाल बनाम बच्चों की सुरक्षा
इस मसले पर जहां छात्रों और अभिभावकों की राय मिलीजुली है, वहीं विशेषज्ञ प्राइवेसी को लेकर सवाल उठाते हैं. साथ ही निगरानी बढ़ने से बच्चों के व्यवहार में जो कुछ बदलाव हो सकते हैं उसको लेकर भी चिंता जताते हैं. द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी अधिकारियों ने 5 जुलाई को कहा कि वे क्लासरूम में सीसीटीवी कैमरे लगाएंगे और लाइव फुटेज देखने के लिए माता-पिता और अभिभावकों को एक लिंक देंगे. दिल्ली सरकार ने साल 2019 में इस योजना की घोषणा की थी. 2019 में एक अधिकारी ने कहा था कि माता-पिता ऐप से लाइव फीड देख सकते हैं.
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तब कहा था कि ," सीसीटीवी न केवल अपराधियों को पकड़ने और सख्त सजा सुनिश्चित कराने में जरूरी सबूत देने में मददगार हैं, बल्कि वे एक सिस्टम भी बनाते हैं जो अपराध रोकने में भी कारगर है. आज के परिवेश में जब बच्चे घर से बाहर कदम रखते हैं तो माता-पिता इस बात से चिंतित हैं कि क्या उनका बच्चा सुरक्षित घर लौट पाएगा? इस सीसीटीवी परियोजना से वे दिन के दौरान जांच सकते हैं कि उनका बच्चा कक्षा के अंदर सुरक्षित है या नहीं".
केजरीवाल ने लाजपतनगर के शहीद हेमू कॉलोनी सर्वोदय विद्यालय में उद्घाटन के साथ योजना की शुरुआत की थी. उन्होंने कहा था कि यह योजना बच्चों को कक्षा बंक करने से रोकेगी और अनुशासन बनाए रखने में मदद करेगी.
क्या इससे बच्चे ज्यादा सेफ होंगे ?
दिल्ली के कराला गांव के सरकारी स्कूल में उर्मिला देवी की बेटी क्लास 5 और बेटा क्लास 6 में पढ़ता है. उर्मिला ने क्विंट से कहा,
"मुझे यह जानकर खुशी होगी कि मेरे बच्चों की कक्षाओं में क्या हो रहा है. वे सुरक्षित रहेंगे. इससे उन्हें अधिक अनुशासित होने में भी मदद मिलेगी."
हालांकि, इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन में एसोसिएट पॉलिसी काउंसिल (सर्विलांस एंड ट्रांसपेरेंसी) अनुष्का जैन इससे अलग राय रखती हैं. उनके अनुसार, बच्चों की सुरक्षा और भी बड़ा सवाल बन जाती है क्योंकि परिवार में कोई भी फोन और कंप्यूटर के माध्यम से फुटेज तक पहुंच सकता है. हैकिंग का खतरा अलग से है.
‘भले ही सिस्टम हैक भी ना हुआ हो, आप नहीं जानते कि कौन अपराध करने के बारे में सोच रहा है. उदाहरण के लिए, एक कॉलेज जाने वाले वयस्क को अपने छोटे भाई की कक्षा में एक स्कूली छात्रा से प्यार हो जाता है.
क्या आप चाहते हैं कि वह माता-पिता के फोन के माध्यम से उसके फुटेज तक पहुंच सके?"
अनुष्का बताती हैं कि इस स्थिति में कई नफे नुकसान हैं. इस बात की भी आशंका है कि अभिभावकों के मन में दूसरे बच्चों के लिए कुछ दुर्भावनाएं आ जाएं.
बच्चों की प्राइवेसी के अधिकार का क्या ?
द डायलॉग के प्राइवेसी एंड डेटा गवर्नेंस वर्टिकल में प्रोग्राम मैनेजर कामेश शेखर ने कहा कि भारत में डाटा प्रोटेक्शन और सर्विला सुधार पर ठोस मैकनिज्म नहीं होने से पहले से ही काफी परेशानी बनी हुई है.
“ बच्चों से जुड़ा डाटा काफी सेंसेटिव होता है. चाइल्ड सेक्सुअल, अब्युज मटीरियल जहां बच्चों के फुटेज के आधार पर कई बार उन्हें प्रताड़ित किया जा सकता है...इसमें कई अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी"
दिल्ली सरकार के अधिकारियों के अनुसार, माता-पिता को फुटेज के लिंक दिए जाएंगे. फुटेज के दुरुपयोग की चेतावनी दी जाएगी. उन्हें स्कूल एक सहमति पत्र देंगे. इजाजत लेने के बाद स्कूल प्रमुख एक एक्सेल शीट में डिटेल भरेंगे. इसे लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) को देंगे जिसे प्रोजेक्ट लागू करने का काम सौंपा गया है.
वहीं अनुष्का जैन आगे पूछती हैं -हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि अगर कुछ माता-पिता कार्यक्रम के लिए सहमति नहीं देते हैं तो क्या किया जाएगा. "अगर एक कक्षा में 20 बच्चे हैं और दो के माता-पिता सहमत नहीं हैं, तो क्या उनके बच्चों को कक्षा से हटा दिया जाएगा? यह कैसे चलेगा?"
फुटेज का गलत इस्तेमाल करने पर अभिभावकों को भी कार्रवाई की चेतावनी दी जाएगी. उन्हें यह लिखित में देना होगा कि वो किसी तीसरे पक्ष के साथ पासवर्ड साझा नहीं करेंगे.
प्राइमरी एजुकेशन के क्षेत्र में काम करने वाले एडवोकेट अशोक अग्रवाल ने कहा, "यह स्पष्ट है कि दिल्ली सरकार को इस योजना के दुरुपयोग किए जाने की आशंका है. इसलिए, जब तक कि योजना फुलप्रूफ नहीं हो जाती है, यह बच्चे की शिक्षा और उनके हित में नहीं है. वास्तव में, यह बच्चों के लिए काफी हानिकारक हो सकता है."
क्या यह बच्चों के व्यवहार में बदलाव का कारण बनेगा?
अखिल भारतीय अभिभावक संघ के दिल्ली अध्यक्ष सत्यप्रकाश ने कहा कि माता-पिता इस पहल से खुश हैं क्योंकि उन्हें पता होगा कि उनके बच्चे कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं और क्या वे कक्षाओं में भाग ले रहे हैं. लेकिन वो आगे कहते हैं
""माता-पिता चिंतित भी हैं कि बच्चे कठपुतली की तरह बन सकते हैं. उन्हें आशंका है कि बच्चों को ऐसे हालात में स्कूल नहीं जाना चाहिए जहां उन्हें मशीनों की तरह व्यवहार करना पड़े ".
सत्यप्रकाश कहते हैं कि, "स्कूल में बच्चे अपने साथी छात्र या शिक्षक के साथ अपने तरीके से बातचीत करते हैं. बच्चों को भी छुट्टी का अधिकार है. कभी-कभी, वे उत्साहित होते हैं, इधर-उधर कूदते हैं - और शायद शरारत भी करते हैं. लेकिन यह क्लासरूम की बात है. यदि वे लगातार निगरानी में रहेंगे तो इससे छात्रों के बीच खुलापन कम हो सकता है और क्लासरूम के मायने बदल सकते हैं".
MIT की एक स्टडी में ये बात सामने आई है कि निरंतर निगरानी में रखने से बच्चों का स्वाभाविक विकास प्रभावित होता है. उनमें डर की भावना ज्यादा बढ़ती है और वो हर चीज को संदेह से देखने लगते हैं. निगरानी में रहने से बच्चों के भीतर लचीलेपन का गुण विकसित होना काफी कठिन हो जाएगा. यह उन प्रकार के भरोसेमंद रिश्तों को बनाने के खिलाफ भी काम कर सकता है जिसके लिए बच्चे स्वाभाविक तौर पर प्रोत्साहित होते हैं.
केर और स्टैटिन (2000) की रिपोर्ट बताती है कि निगरानी बढ़ाने से बच्चे सामाजिक होना पसंद नहीं करते. इसके बजाय जब बच्चों को खुला रखा जाता है तो वो ज्यादा सामाजिक होते हैं, वो उन बातों को साझा करना पसंद करते हैं जिनके साथ उनका अपना एक ट्रस्ट होता है लेकिन निगरानी होने पर ऐसा करना मुश्किल हो जाता है. इसके अतिरिक्त, इसका न्यूरोडिवर्जेंट बच्चों या उनकी सेक्सुएलिटी की खोज करने वाले बच्चों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है.
सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर, इंडिया की वकील राधिका झालानी बताती हैं
"स्कूल एक ऐसी जगह है जहां हम अपनी पहचान से जूझते हैं. ऐसे बच्चे हैं जिनके माता-पिता दुर्व्यवहार करते हैं. ऐसे बच्चे हैं जिन्हें मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं हैं. ऐसे बच्चे होते हैं जो अपनी यौनिकता यानी सेक्सुएलिटी की पहचान का पता लगाने की कोशिश करते हैं "
राधिका झालानी पूछती हैं कि "सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि ऐसा करने की आवश्यकता क्यों है? आप टेक्नोलॉजी से एक बिखरे समाज को जोड़ और दुरस्त नहीं कर सकते. "
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