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NEET विवाद: छात्रों की खुदकुशी से मौत, DMK ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया

छात्रों में एमबीबीएस और बीडीएस में एडमिशन के लिए दी जाने वाली NEET की प्रतियोगी परीक्षा का दबाव देखा जा रहा है.

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तमिलनाडु में NEET परीक्षा से पहले छात्रों की खुदकुशी से मौत के बाद सरकार ने इसमें छूट देने के लिए अब हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. विधानसभा में बिल पास होने के बाद, सत्तारूढ़ DMK ने 14 सितंबर को नेशनल एलिजिबिलिटी एंट्रेंस टेस्ट (NEET) से छूट को लेकर मद्रास हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है.

तमिलनाडु के थाउसैंड लाइट्स क्षेत्र से विधायक डॉ एजिलान ने 42वें संशोधन अधिनियम 1976 की धारा 57 को चुनौती देते हुए मद्रास हाईकोर्ट का रुख किया, जिसके तहत शिक्षा को स्टेट लिस्ट (संविधान की सूची II) से कनकरंट लिस्ट (सूची III) में ट्रांसफर किया गया था.

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अपनी याचिका में उन्होंने कहा कि 42वें संशोधन के माध्यम से 'शिक्षा' के विषय को सूची II से सूची III में ट्रांसफर करके, शिक्षा के मामलों में राज्य सरकारों की कार्यकारी और विधायी स्वायत्तता केंद्र सरकार के अधीन हो गई है.

विधानसभा में पास हुआ बिल

ये तमिलनाडु विधानसभा में अंडरग्रेजुएट मेडिकल डिग्री कोर्स के लिए तमिलनाडु एडमिशन बिल पास करने के एक दिन बाद आया है, जो राज्य के छात्रों के लिए NEET के आधार पर मेडिकल प्रवेश को रोकता है. राज्य में मेडिकल प्रवेश कक्षा 12 की बोर्ड परीक्षा में मिले मार्क्स के आधार पर होगा. मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 13 सितंबर को विधानसभा में बिल पेश किया था.

NEET के दबाव में खुदकुशी से मौत

छात्रों में एमबीबीएस और बीडीएस में एडमिशन के लिए दी जाने वाली NEET की प्रतियोगी परीक्षा का दबाव देखा जा रहा है. 12 सितंबर को, तमिलनाडु में 19 साल के एक छात्र की परीक्षा से कुछ घंटे पहले खुदकुशी से मौत हो गई. रिपोर्ट्स के मुताबिक, पिछले तीन दिनों में तीन छात्रों की मौत हो गई है. छात्रों की मौत के बाद से राज्य में परीक्षा को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है.

DMK 42वें संशोधन को क्यों चुनौती दे रही है?

1976 से पहले, शिक्षा राज्य सूची के अंतर्गत थी, और इसलिए राज्यों के पास सिलेबस और प्रवेश प्रक्रिया पर फैसला लेने की शक्ति थी. हालांकि, इमरजेंसी के दौरान, 42वें संशोधन के माध्यम से, इस आइटम को लिस्ट lll की 25वीं एंट्री में मूव कर दिया गया था, जो संसद को नेशनल यूनिवर्सिटी के लिए कानून बनाने, संस्थानों की स्थापना और शिक्षा की नीतियों का अधिकार देता है.

एमके स्टालिन जो बिल लेकर आए हैं, वो केंद्रीय कानून को चुनौती देता है और अकेले राज्य विधानसभा के वोट से कानून नहीं बन सकता है.

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