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लॉकडाउन में ऑनलाइन पढ़ाई, दो तिहाई आबादी के लिए ये बात हवा-हवाई

ऑनलाइन एजुकेशन के लिए देश का इंफ्रास्ट्रक्चर कितना तैयार है? हर एक पहलू

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

  • देश की राजधानी दिल्ली के उत्तम नगर में शांति (बदला हुआ नाम) रहती हैं. घर में न स्मार्टफोन है न लैपटॉप. उनकी बेटी का एडमिशन प्राइवेट स्कूल में EWS कोटे से हुआ था. अब स्कूल ने ऑनलाइन क्लासेज शुरू कर दी हैं. अब शांति अपनी बेटी के लिए पढ़ाई का बंदोबस्त कैसे करें, उन्हें समझ नहीं आता.
  • अब दूसरा केस यूपी के गोरखपुर का है, अबरार* छठी क्लास में पढ़ते हैं, स्कूल में ऑनलाइन क्लासेज शुरू हो चुकी हैं, घर में स्मार्टफोन तो है लैपटॉप नहीं है, इंटरनेट कनेक्शन के नाम पर वोडाफोन का सिम है, जिससे पढ़ाई होती है. अबरार* के चाचा कहते हैं कि जो भी हो रहा है बस नाम के लिए हो रहा है. टीचर वॉट्सअप ग्रुप बनाकर कोई काम दे देती हैं कभी तो कभी किसी चीज का पीडीएफ डाल दिया जाता है. इंटरेक्शन जैसी कोई बात नहीं है.

इन दो केस का मतलब क्या है? कोरोना वायरस की महामारी वाले इस दौर में केंद्र, राज्य सरकारों, एजुकेशन बोर्ड्स ने ऑनलाइन पढ़ाई का शोर तो कर दिया है, लेकिन क्या हमारे पास पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर है? बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी तो छोड़िए, क्या गांव-कस्बों-शहरों-महानगरों तक में सबके पास स्मार्टफोन या लैपटॉप है? अगर है तो हमारे स्टूडेंट या टीचर इसके लिए कितने तैयार हैं?

आंकड़ों का आईना

जरा आंकड़ों से देश में ऑनलाइन एजुकेशन के हालात समझते हैं
UNESCO के आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में COVID-19 के कारण लॉकडाउन का असर कुल 32 करोड़ छात्रों पर पड़ा है. ये छात्र प्री-प्राइमरी से लेकर ग्रेजुएशन-पीजी तक के छात्र हैं. वहीं दुनियाभर की बात करें तो 191 देशों में स्कूलों के बंद होने से करीब 150 करोड़ छात्र और 6.3 करोड़ प्राइमरी और सेकेंडरी टीचर प्रभावित हुए हैं.

Indian Statistical Institute के प्रोफेसर अभिरूप मुखोपाध्याय लॉकडाउन में पढ़ाई के लिए जद्दोजहद कर रही बड़ी आबादी की अहम मुसीबत के बारे में अपने आर्टिकल में बताते हैं. नेशनल सैंपल सर्वे (2014) के हवाले से वो बताते हैं कि देश की 27 फीसदी आबादी के पास ही इंटरनेट एक्सेस है और इंटरनेट एक्सेस का मतलब ये नहीं कि घर पर इंटरनेट की सुविधा हो. इस 27% आबादी में से सिर्फ 47% लोगों के पास ही स्मार्टफोन या लैपटॉप या दूसरा कोई कम्प्यूटिंग डिवाइस है.  इसमें गांव और शहर दोनों हैं.

अगर आपको लग रहा है कि इस सर्वे को आए काफी वक्त हो गया. तो साल 2018 में आए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में हर 100 में से सिर्फ 38 लोगों के पास इंटरनेट कनेक्शन है. जिसमें 84 लोग शहरी क्षेत्र के हैं और महज 16 लोग गांव से हैं. साफ है कि शहरों के मुकाबले गांव इंटरनेट की पहुंच से काफी दूर है.

अब जिनके पास इंटरनेट एक्सेस है वो भी इंटरनेट कनेक्टिविटी को लेकर परेशान रहते हैं. देश में ज्यादातर लोग इंटरनेट के लिए 3G या 4G बेस्ड स्मार्टफोन की मदद लेते हैं.

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इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी से जूझ रहे हैं हम

Quacquarelli Symonds (QS) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर अभी ऑनलाइन लर्निंग पर शिफ्ट होने के लिए तैयार नहीं है. QS दुनियाभर के विश्वविद्यालयों की रैंकिंग तैयार करता है. "COVID-19: A wake up call for telecom service providers" नाम की ये रिपोर्ट QS के एक सर्वे पर आधारित है. रिपोर्ट में कनेक्टिविटी और सिग्नल की दिक्कतों पर बात की गई है. बताया गया है कि ऑनलाइन क्लासेज के दौरान छात्र इन दिक्कतों का सबसे ज्यादा सामना करते हैं.
द क्विंट से खास बातचीत में देश के पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल कहते हैं,

हमारे यहां फायबर ऑप्टिक नेटवर्क पूरे देश में नहीं पहुंचा है. हमने जो प्रोजेक्ट शुरू किया था, 6 साल गुजरने के बाद भी सरकार इसे पूरा नहीं कर पाई. इसलिए तकनीक का शिक्षा में बहुत ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. लॉकडाउन के बाद आईआईटी और दूसरे संस्थानों में पढ़ाई कराकर परीक्षाएं करवानी चाहिए. लेकिन यह कुछ कॉलेज में ही हो पाएगा. ग्रामीण इलाकों और शहरों के भी बड़े हिस्से फायबर ऑप्टिक नेटवर्क से अलग रह गए हैं. स्थितियों को देखते हुए लगता है कि शिक्षा में गैप ईयर ही जाएगा.

पहले तो हमें इंफ्रास्ट्रकचर की ही दिक्कतों से गुजरना है. ये लड़ाई जब पूरी हो तो बात होगी कि हमने ऑनलाइन एजुकेशन के लिए कौन-कौन से मॉडल तैयार किए हैं, जो अभी भी बनने के ही दौर में हैं. ये भी साफ है कि जिन देशों में इन्फॉर्मेशन और कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी की सुविधा अच्छी है, वहां भी शिक्षकों के लिए ऑनलाइन टीचिंग जल्दी से शुरू करना चुनौतीपूर्ण रहा है. ऐसे ही जिन देशों में ये सुविधा कम मौजूद हैं, वहां ये चुनौती और भी बड़ी है.
ऐसे में कोरोना वायरस महामारी के दौर में वक्त है देश को ऑनलाइन एजुकेशन की खामियों पर रिसर्च करने का और उसपर काम करने का, जिससे आगे जब कभी ऐसा कुछ हो तो हम पूरी तरह तैयार रह सकें.

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