सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) से बची हुई बोर्ड परीक्षाओं को लेकर अपना रुख साफ करने के लिए कहा है. कोर्ट ने बुधवार को कहा कि CBSE 23 जून तक रुख साफ कर गाइडलाइंस जारी करे. सुप्रीम कोर्ट ने ये निर्देश कुछ पेरेंट्स की तरफ से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया. पेरेंट्स ने बची परिक्षाएं रद्द करने को लेकर कोर्ट में याचिका दाखिल की है.
पेरेंट्स की तरफ से ऋषि मल्होत्रा के मुताबिक, तीन जजों की बेंच- जस्टिस एएम खानविलकर, दिनेश महेश्वरी और संजीव खन्ना ने उनसे उनकी याचिका के बारे में पूछा.
मल्होत्रा ने कहा कि परीक्षाएं आयोजित कराने की बजाय, CBSE को पहले आयोजित हो चुकीं परीक्षाओं में मिले नंबर और बची परीक्षाओं के प्रैक्टिकल एग्जाम के आधार पर छात्रों का मूल्यांकन करना चाहिए.
कोर्ट ने इसके बाद CBSE से कहा कि 1-15 जुलाई के बीच होने वाली परीक्षाओं को लेकर अपना रुख साफ करे और निर्देश दे.
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश ऐसे समय में आया है जब एचआरडी मंत्रालय (सूत्रों के मुताबिक), CBSE की लंबित परीक्षाओं के आयोजन को लेकर एक 'बड़ा फैसला' ले सकता है, अगर स्थिति में सुधार नहीं होता है तो.
याचिका में परीक्षा रद्द करने की मांग, CBSE पर भेदभाव का आरोप
इस साल CBSE कक्षा 12 परीक्षाओं में बैठने वाले एक छात्र के पेरेंट्स द्वारा दायर याचिका में मांग की गई है कि CBSE की बची हुई परीक्षाओं को रद्द कर दिया जाए और छात्रों को लंबित परीक्षाओं के इंटरनल एसेसमेंट के आधार पर मार्क किया जाए.
याचिका के मुताबिक, जुलाई में परीक्षाएं आयोजित होने से हजारों छात्रों की जान खतरे में पड़ सकती है, क्योंकि उस दौरान कोरोना वायरस के मामले पीक पर होने की संभावना है.
इसके अलावा, याचिका में कहा गया है कि क्योंकि ऐसा हो सकता है कि बड़ी संख्या में संक्रमित लोगों में लक्ष्ण नहीं दिखे, छात्र वायरस के कैरियर बन सकते हैं, और इस तरह दूसरे छात्रों को संक्रमित करते हैं, और अपने परिवार को भी.
याचिका में CBSE पर भेदभाव का भी आरोप लगाया गया है. देश में दूसरे कई बोर्ड्स ने बची हुई परीक्षाएं रद्द कर दी हैं. साथ ही ये भी कहा गया है कि बोर्ड ने उन विदेशों में इससे संबंधित स्कूलों में बची परीक्षाओं को रद्द कर दिया है.
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