"मेरे अंदर एक स्त्री मन भी है, जो बहुत ही कोमल और संवेदनशील है." महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने अपनी आत्मकथा 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' में लिखा है. वे स्वयं को एक ऐसा व्यक्ति मानते थे, जो न तो एक स्त्री थे, न ही एक पुरुष. बल्कि वे खुद को एक मानव के तौर पर देखते थे. स्त्रीत्व उनके भीतर ऐसी मजबूती लेकर आई, जिनकी बदौलत गांधी, 'महात्मा' बनें.
महिला सशक्तिकरण में महात्मा गांधी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, लेकिन महात्मा गांधी को सशक्त बनाने में भी महिलाओं की भूमिका अहम रही है. गांधी ने महिलाओं को ताउम्र प्रेरित भी किया और महिलाओं से ताउम्र प्रेरित भी होते रहे. मां और पत्नी से लेकर सहकर्मी और परपौत्र वधु तक, उनके जीवन में कई ऐसी महिलाएं रहीं, जिन्होंने उन्हें बेहद प्रभावित किया.
मां पुतलीबाई साबित हुई पहली गुरु
गांधी हर उस व्यक्ति से प्रभावित हुए, जिनके विचार सत्य, धर्म (मानवता) और अहिंसा के करीब थे. महिलाओं में उन्हें प्रेरित करने वाली पहली महिला व्यक्तित्व उनकी मां पुतलीबाई का रहा. अनुशासन और नैतिक शिक्षा के अलावा जीवन की बुनियादी सीख उन्हें मां से ही मिली.
ICAR की फेलोशिप पर गांधीजी के वर्धा काल पर शोध कर रहे सीनियर रिसर्च एसोसिएट और गांधीवादी डॉ पंकज कुमार सिंह ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा, 'पुतलीबाई, हिंदू धर्म को मानती थीं पर जैन मुनि से भी परामर्श लेती थीं. सर्वधर्म समभाव की भावना, कठिन से कठिन उपवास की प्रेरणा गांधी के भीतर उनकी मां से ही आई. स्वराज आंदोलन के दिनों में उपवास की साधना उनके बहुत काम आई, जिससे बीमारी और कमजोरी में भी वे टूटे नहीं.
बाल सखा और पत्नी कस्तूरबा ने तराशा
'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' में बताया गया है कि गांधी महज 13 वर्ष के थे और कस्तूरबा कपाड़िया भी, जब दोनों की शादी हो गई. दोनों किशोर ही थे. कस्तूरबा स्वतंत्र विचार की थीं. उन दिनों उनका मायके आना-जाना चलता रहता था. किसी काम से बाहर भी जाना होता तो वो बेधड़क जाया करती थीं. मोहनदास, तब तक कहीं न कहीं पुरुषवादी मानसिकता के थे. उन्हें लगता कि पत्नी होकर कस्तूरबा उनसे बिना पूछे क्यों आया-जाया करती हैं!
इस प्रसंग का जिक्र करते हुए ICSSR से पोस्ट डॉक्टरल फेलो, अहिंसा-शांति ग्रंंथमाला पुस्तक के गांधीवादी लेखक डॉ सत्यम सिंह ने कहा, ' महात्मा गांधी ने एक बार ऐसे ही किसी अवसर पर कस्तूरबा को टोक दिया- कहीं जाना हो, तो मुझसे पूछकर जाया करो. कस्तूरबा ने तुरंत पलट कर जवाब दिया- आप कहीं जाते हैं तो मुझसे पूछकर जाते हैं क्या? किशोर मोहनदास को ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी. वे झेंप गए और तुरंत नम्र हो गएं.'
यहां गांधी ने स्त्री-पुरुष की बराबरी का पहला पाठ पढ़ा.
ऐसे ही कई और अवसरों व प्रसंगों के जरिये डॉ पंकज भी समझाते हैं कि गांधी को तराशने में पत्नी कस्तूरबा का कितना बड़ा और महत्वपूर्ण योगदान है.
दक्षिण अफ्रीका में 'बा' की भूमिका
एक वाकया है, दक्षिण अफ्रीका का, जहां महात्मा गांधी सेवा आश्रम चलाते थे. बीमार और जरूरतमंद लोगों के खानपान, स्वास्थ्य और देखभाल में पत्नी कस्तूरबा भी हाथ बंटाती थीं. वो छूत-अछूत का दौर हुआ करता था. एक बार कस्तूरबा ने एक अस्पृश्य क्लार्क का पॉट साफ करने से इनकार कर दिया, तो गांधीजी ने उन्हें धमकाया- साफ नहीं कर सकती तो निकल जाओ आश्रम से. कस्तूरबा झटकते हुए बोलीं- ये भारत होता तो मैं मायके चली जाती. यहां कहां जाऊंगी. इस साहस और विद्रोह भरे लहजे को देख शांत रहने की बारी महात्मा गांधी की थी.'
दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दिनों की ही एक घटना का जिक्र करते हुए डॉ पंकज बताते हैं कि भारतवासियों को वहां की नागरिकता तो दी जा रही थी, लेकिन उन्हें दीन-हीन बनाने के लिए दक्षिण अफ्रीका की सरकार नए-नए नियम बना रही थी. एक नियम था- बिना रजिस्ट्रेशन वाली शादी को अवैध घोषित करते हुए नागरिकता का प्रमाण पत्र न देना.
गांधी ने इस नए नियम का जिक्र किए बगैर कस्तूरबा से कहा- तुम मेरी पत्नी नहीं, रखैल हो. ये सुनते ही कस्तूरबा तिलमिला उठीं. तब गांधीजी ने उन्हें नए नियम के बारे में बताते हुए शादी का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी बताया. डॉ पंकज ने बताया, इस नियम के विरोध में कस्तूरबा गांधी ने ही आंदोलन का नेतृत्व किया और आंदोलन कामयाब रहा.
महात्मा गांधी में स्वतंत्र व्यक्तित्व, सहनशीलता, हठ का गुण पत्नी कस्तूरबा गांधी से ही प्रेरित होकर आया. उन्होंने अपनी किताब 'दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह' में कस्तूरबा बाई के व्यक्तित्व का जिक्र करते हुए लिखा है कि मेरी पत्नी ने अपने अद्भुत सहनशीलता से मुझपर विजय प्राप्त किया.
ब्रह्मचर्य और त्याग में मिला 'बा' का साथ
गांधी को 'महात्मा' बनाने में कस्तूरबा ने बहुत साथ दिया, खासकर त्याग और ब्रह्मचर्य के पालन में. बापू से जुड़े विषय पर सोशल वर्क में पीएचडी (PhD) रिसर्च एसोसिएट डॉ वरुण कुमार कहते हैं, 'ब्रह्मचर्य के फैसले में, मूलत: पति-पत्नी दोनों की सहमति जरूरी होती है, पर गांधीजी ने इसके लिए कस्तूरबा से पूछा तक नहीं! लेकिन कस्तूरबा ने ब्रह्मचर्य के पालन में भी पूरा साथ दिया.'
एक अन्य वाकया है, जब दक्षिण अफ्रीका से लौटते समय गांधीजी को लोगों से पैसे, सामान और गहनों के रूप में खूब सारा भेंट मिला, तो उन्हें लगा कि सेवा के बदले भेंट क्यों लेना? कस्तूरबा से उन्होंने कहा तो वो बोलीं कि सेवा मैंने भी की है, आप अपने हिस्से के पैसे छोड़ दीजिए, पर गहने ले चलिए. डॉ पंकज कहते हैं, 'चूंकि महिलाओं को गहना बेहद प्रिय होता है और बा अपनी बहुओं के लिए गहना ले जाना चाहती थीं. लेकिन गांधीजी के समझाने पर वो मान गईं.'
बेटे हरिलाल से गांधीजी का टकराव जगजाहिर है. ऐसे कई मौके आए, जब बा ने बेटे की बजाय पति का साथ देने का चुनाव किया. इस तरह त्याग के और भी कई अवसरों पर उन्होंने गांधीजी का साथ दिया.
गांधीजी की जान बचाने में 'बा' का योगदान
गांधीजी की जान बचाने में भी बा का बड़ा योगदान रहा. जब गांधीजी केा पेचिस हो गया और वे बेहद कमजोर हो गए थे तो उनके लिए मांस का शोरबा और गाय का दूध जरूरी था. मांस वो कभी खाते नहीं और दूध को भी बछड़े का अधिकार मानते थे, सो दूध से भी परहेज था.
बा बोलीं- गाय का मत पीजिएगा पर बकरी का दूध पीजिए. गांधीजी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि तथ्यात्मक रूप से ये भी गलत ही था, लेकिन बा की जिद पर उन्होंने बकरी का दूध पीना शुरू किया. वे बीमारी से उबरे और उनकी जान बच पाई.
सरोजिनी नायडू ने किया प्रेरित
बचपन से ही बुद्धिमान और प्रतिभाशाली रहीं सरोजिनी नायडू ने अपनी वाक्पटुता और ज्ञान से गांधी को बेहद प्रभावित किया था. युवा शक्ति को आगे बढ़ाने की प्रेरणा गांधी को सरोजिनी नायडू से ही मिली. वो सरोजिनी नायडू के व्यक्तित्व से शक्ति, साहस और ऊर्जा पाते थे. किताब 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' में सरोजिनी नायडू का जिक्र करते हुए गांधी लिखते हैं, "वे इतनी ज्ञानी और बुद्धिमान हैं कि सामने वाले को खरी-खरी सुना देंगी, लेकिन बात इतनी तर्कसम्मत होती है कि कोई उनका बुरा नहीं मानता." मद्रास विश्वविद्यालय, किंग्स कॉलेज लंदन और फिर कैम्ब्रिज के गिर्टन कॉलेज से पढ़ी सरोजिनी नायडू स्वतंत्र विचार की महिला थीं.
आभा, मनु, मीराबेन और अन्य महिलाएं
आभा, महात्मा गांधी के परपोते कनु गांधी की पत्नी थीं. गांधीजी की प्रार्थना सभा में आभा अक्सर भजन गाती थीं और कनु फोटोग्राफी करते थे. आभा ने हर आंदोलन में गांधीजी का साथ दिया. जब गोडसे ने गांधीजी को गोली मारी, तब भी वहां आभा मौजूद थीं.
मनु, महात्मा गांधी के दूर के रिश्ते में आती थीं और बहुत छोटी उम्र से ही उनके साथ रहीं. वे मनु को अपनी पोती कहते थे. वृद्धावस्था में आभा और मनु दोनों ही गांधीजी का ध्यान रखती थीं. दोनों की सेवा-सुश्रूषा ने बापू को खूब प्रभावित किया.
इसी कड़ी में मेडलीन उर्फ मीराबेन की चर्चा करना भी जरूरी है, क्योंकि ब्रिटिश नागरिक मेडलीन ने आश्रम में रहकर जिस निष्ठा, त्याग और पवित्रता से लोगों की सेवा की, वो गांधीजी की नजर में अतुलनीय रही.
स्वाधीनता आंदोलन में 'एनी बेसेंट' का साथ
एनी बेसेंट ने भी गांधीजी को बेहद प्रभावित किया. डॉ वरुण बताते हैं, 'एनी भारतीय नहीं थीं, लेकिन भारतीयता से प्रभावित होकर यहीं रह गईं. गांधी एनी बेसेंट को उसी समय से जानना-सुनना चाहते थे, जब वे लंदन में रहकर वकालत की पढ़ाई कर रहे थे.' एनी बेसेंट ने एक बार अपने भाषण के अंत में कहा था, 'यदि मेरी कब्र पर केवल इतना लिख दिया जाए कि ये महिला सत्य के लिए जीवित रही और सत्य के लिए मरी तो मुझे पूर्ण संतोष हो जाएगा.'
उनके आह्वान पर कस्तूरबा गांधी, सरोजिनी नायडू के अलावा सुचेता कृपलानी, विजयालक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, सुशीला नायर, उषा मेहता, राजकुमारी अमृत कौर, सरलादेवी चौधरानी समेत कई महिलाओं ने स्वाधीनता आंदोलन में भाग लिया और गांधीजी का पूरा साथ दिया. इन सभी महिलाओं ने उन पर प्रभाव छोड़ा.
अपनी बायोग्राफी में गांधी ने लिखा है, 'पुरुष को नारी का स्पर्श अपवित्र नहीं करता बल्कि प्राय: वो स्वयं इतना अपवित्र रहता है कि नारी का स्पर्श करने योग्य नहीं रहता. जिस तरह मेरे भीतर ब्रह्मचर्य का उदय हुआ, उस कारण मैं माता के रूप में स्त्रियों के प्रति दुर्निवार रूप से आकृष्ट हुआ, स्त्रियां मेरे लिए इतनी पवित्र हो गई कि मैं उनके प्रति वासनामय प्रेम का ख्याल ही नहीं कर सकता.' गांधी का संपूर्ण व्यक्तित्व स्त्री संवेदना और उनके प्रति श्रद्धा से भरा हुआ प्रतीत होता है.
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