2002 गुजरात दंगे के दौरान नरोदा गाम में हुए नरसंहार मामले (Naroda Gam Massacre Case) में सभी आरोपियों को बरी किया गया है जिसके बाद कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ शमा मोहम्मद ने कहा, "बहुत जल्द, हम यह भी सुनेंगे कि कोई जनसंहार नहीं हुआ था."
भारत में हुए ऐसे कई दंगों में न तो दोषियों का पता लग सका है और न ही किसी को सजा हुई है. कई मामलों में आरोपी बरी हो जाते हैं तो क्या पुलिस गलत लोगों को दंगों में शामिल होने का आरोपी बनाती है. आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ मामले जहां लोगों की जान चली गई लेकिन इंसाफ नहीं मिल सका.
नरोदा गाम नरसंहार
20 अप्रैल 2023 को अहमदाबाद की एक स्पेशल कोर्ट ने 2002 गुजरात दंगे के दौरान हुए नरोदा गाम नरसंहार मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया. आरोपियों की लिस्ट में गुजरात की पूर्व मंत्री और बीजेपी नेता माया कोडनानी और बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी समेत 86 आरोपी शामिल थे. 86 अभियुक्तों में से 18 की मौत हो चुकी है.
28 फरवरी 2002 को, अहमदाबाद के नरोदा गाम क्षेत्र में कुंभार वास नामक इलाके के एक मुस्लिम महोल्ले में भीड़ ने घरों में आग लगाकर 11 मुसलमानों को जलाकर मार डाला था. इसके एक दिन पहले गोधरा ट्रेन जलाने के विरोध में बुलाए गए 'बंद' के दौरान, 58 यात्री मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर कारसेवक अयोध्या से लौट रहे थे.
कोर्ट के फैसले में आरोपी तो बरी हो गए, लेकिन फिर इस नरसंहार का असल दोषी कौन है?
गैंगरेप और हत्या (कलोल, गुजरात दंगा)
गुजरात की एक अदालत ने 2002 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान कलोल में अलग-अलग मामलों में अल्पसंख्यक समुदाय के 12 से अधिक सदस्यों की हत्या और गैंगरेप के सभी 26 आरोपियों को 2 अप्रैल 2023 को बरी कर दिया था. इन मामलों में 39 आरोपी थे, केस 20 साल तक चला, 39 में से 13 आरोपियों की मौत हो चुकी थी.
इसमें डेलोल गांव से भागकर कलोल की ओर आ रहे 38 लोगों पर हमला किया गया था और उनमें से 11 को जिंदा जला दिया गया था. FIR के अनुसार, एक महिला के साथ उस समय सामूहिक बलात्कार किया गया जब वह और अन्य लोग भागने की कोशिश कर रहे थे.
इस मामले में भी पुलिस अब तक किसी दोषी को नहीं पकड़ पाई.
दिल्ली दंगों के दौरान घर और दुकान को आग लगा कर फूंका
दिल्ली की एक अदालत ने 30 जनवरी 2023 को पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों के दौरान एक दुकान और घर में आग लगाने के आरोपी नौ लोगों को बरी कर दिया. अदालत ने आरोपियों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी दर्ज करने में पुलिस द्वारा देरी सहित संदेह का फायदा देते हुए आरोपियों को राहत दी. सभी नौ लोगों पर दंगा, गैरकानूनी रूप से जमा होना, आगजनी और अन्य अपराधों का आरोप लगाया गया था.
हालांकि यह घटना तो घटी थी लेकिन किसी पर दोष साबित नहीं हो सका और आरोपी बरी हो गए.
मलियाना नरसंहार
36 साल पहले हुए मलियाना नरसंहार मामले में मेरठ की एडीजे कोर्ट ने सबूत के अभाव में 40 आरोपियों को बरी कर दिया था. सुनवाई के दौरान ही 23 आरोपियों की मौत हो चुकी थी. जबकि 30 आरोपियों का आज तक पता नहीं चल सका है.
23 मई 1987 को यूपी के मलियाना दंगे में 63 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 100 से ज्यादा लोग घायल हुए. हाशिमपुरा कांड के ठीक दूसरे दिन ही मलियाना में दंगे हुए थे. उपद्रवियों ने कई घरों को आग के हवाले करते हुए लूटपाट को अंजाम दिया था.
जयपुर बम विस्फोट
राजस्थान हाईकार्ट ने 13 मई, 2008 को जयपुर में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोट मामले में 23 मार्च को चार दोषियों को बरी कर दिया. इस पूरे मामले पर 48 दिन से सुनवाई चल रही थी. खंडपीठ ने अपने फैसले में कथित तौर पर कहा कि जांच अधिकारी को कानूनी ज्ञान नहीं था. इसलिए जांच अधिकारी के खिलाफ भी कार्रवाई के निर्देश डीजीपी को दिए गए हैं.
13 मई 2008 को जयपुर में 8 जगहों पर सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे. इनमें 71 लोगों की मौत हो गई, जबकि 185 लोग घायल हो गए थे.
अब ये मान सकते हैं कि बरी हुए आरोपी दोषी नहीं है लेकिन इन विस्फोट के पीछे कोई तो दोषी होगा ही.
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