संसद में 10 परसेंट आर्थिक आरक्षण बिल पास होने के 24 घंटे के अंदर एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती देते हुए रद्द करने की मांग की है.
यूथ फॉर इक्वलिटी नाम के NGO ने बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में दलील दी है कि ये संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले दोनों का उल्लंघन है.
याचिका दायर करने वाले एनजीओ की दलील है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण पर बैन के फैसले का उल्लंघन किया है. याचिका में कहा गया है कि संसद ने 103वें संविधान संशोधन के जरिए आर्थिक आधार पर आरक्षण का बिल पास किया.
याचिका दायर करने वाले NGO की दलील
- आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता
- सुप्रीम कोर्ट के 50% से ज्यादा आरक्षण पर बैन के फैसले का उल्लघंन
- संसद ने 103 वें संविधान संशोधन के जरिए आर्थिक आधार पर आरक्षण का बिल पास किया
- इसमें आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान
- समानता के संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लघंन है आरक्षण के दायरे में उन प्राइवेट शिक्षा संस्थाओं को भी शामिल किया गया है जिन्हें सरकार से मदद नहीं मिलती, ये भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है
बुधवार को संसद ने लगाई थी सामान्य वर्ग के आरक्षण पर मुहर
सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा और सरकारी नौकरी में 10 फीसदी आरक्षण देने वाले संविधान संशोधन विधेयक को बुधवार को संसद ने मंजूरी दी थी. उच्च सदन में विपक्ष समेत लगभग सभी दलों ने इस विधेयक का समर्थन किया. कुछ विपक्षी दलों ने इस विधेयक को लोकसभा चुनाव से कुछ पहले लाये जाने को लेकर सरकार की मंशा और इस विधेयक के न्यायिक समीक्षा में टिक पाने को लेकर आशंका जतायी.
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने एसटी, एससी और ओबीसी आरक्षण को लेकर कई दलों के सदस्यों की आशंकाओं को निराधार बताते हुए कहा कि उनके 49.5 प्रतिशत से कोई छेड़छाड़ नहीं की जा रही है. वह बरकरार रहेगा.
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