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शिक्षा का बुरा हाल,8वीं के 56% स्टूडेंट्स को नहीं आता मैथ्स: ASER 

प्राइमरी के साथ-साथ सेकेंडरी स्कूलों में भी शिक्षा का बुरा हाल

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भारत
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राइट टु एजुकेशन भले ही ज्यादा से ज्यादा बच्चों का स्कूल में पंजीकरण कराने में कामयाब रहा हो और इस कानून से स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या में कमी आई हो. लेकिन पढ़ाई के स्तर में कोई खास सुधार नहीं हुआ है. एनजीओ प्रथम की द एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) 2018 के मुताबिक, आठवीं पास करने वाले वाले ज्यादातर छात्रों को सामान्य गणित भी नहीं आता है. इसके अलावा करीब 27 फीसदी छात्रों की संख्या ऐसी है, जो हिंदी भी नहीं पढ़ सकते.

रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में शिक्षा के स्तर में बहुत ही मामूली सुधार हुआ है. जैसे, आठवीं कक्षा के 56 फीसदी छात्रों को 3 अंकों की संख्या को एक अंक की संख्या से भी भाग देना नहीं आता, पांचवी कक्षा के 72 फीसदी छात्रों को भाग देना नहीं आता. वहीं कक्षा तीन के 70 फीसदी छात्रों को घटाना नहीं आता.

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सामान्य सुविधाओं में हुआ सुधार

बीते आठ सालों में प्राइमरी स्कूलों की स्थिति में मामूली सुधार हुआ है. छात्रों को स्कूलों में दी जाने वाली सामान्य सुविधाओं पर नजर डालें तो-

मिड-डे-मील

  • साल 2010 में 84.6 फीसदी स्कूलों में बच्चों को मिड-डे-मील दिया जा रहा था
  • साल 2014 में मिड-डे-मील देने वाले स्कूलों की संख्या बढ़कर 85.1 फीसदी पहुंच गई
  • साल 2018 में 87.1 फीसदी स्कूलों में बच्चों को मिड-डे-मील दिया जा रहा है

गर्ल्स टॉयलेट

  • साल 2010 में 32.9 फीसदी स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग टॉयलेट की व्यवस्था थी
  • साल 2014 में 55.7 फीसदी स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग टॉयलेट की व्यवस्था थी
  • साल 2018 में 66.4 फीसदी स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग टॉयलेट की व्यवस्था है
मैं इसकी शुरुआत आज से करना चाहता हूं. देश के सभी स्कूलों में लड़कियों के लिए अगल टॉयलेट की व्यवस्था होनी चाहिए. इस लक्ष्य को राज्य सरकारों की मदद से एक साल के भीतर पूरा करना है. अगले साल 15 अगस्त को हम उस स्थिति में हों, कि हम कह सकें कि देश में ऐसे एक भी स्कूल नहीं है, जहां लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है. 
15 अगस्त 2014 को स्वतंत्रता दिवस पर दिए गए पीएम मोदी के भाषण का अंश

कम्प्यूटर

  • साल 2010 में 8.6 फीसदी स्कूल ऐसे थे, जहां बच्चे कम्प्यूटर का इस्तेमाल करते थे.
  • साल 2014 में ये संख्या घटकर 7.0 फीसदी पहुंच गई
  • साल 2018 में ये संख्या घटकर 6.5 फीसदी पर पहुंच गई
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लेकिन क्या शिक्षा की स्थिति में हुआ कोई सुधार?

दूसरी कक्षा तक छात्रों से ये उम्मीद की जाती है कि वह साधारण सा पाठ पढ़ सकें और साधारण गणित, जैसे-जोड़-घटाना कर सकें. लेकिन असल स्थिति क्या है-

  • साल 2010 में 19.5 फीसदी कक्षा तीन के छात्र कक्षा दो की किताब पढ़ पाते थे
  • साल 2014 में ये संख्या बढ़कर 23.6 हुई
  • साल 2018 में भी इसमें मामूली सुधार हुआ और संख्या सिर्फ 27.2 फीसदी तक ही पहुंच सकी

जाहिर है कि देश का भविष्य साधारण पाठ पढ़ने से जूझ रहा है. देशभर में चार बच्चों में से एक बच्चा साधारण सा पाठ पढ़े बिना ही आठवीं कक्षा तक पहुंच जाता है. जबकि साल 2008 में आठवीं कक्षा के 84.4 फीसदी कक्षा दो की किताब बमुश्किल पढ़ पाते थे. साल 2018 में ये संख्या गिरकर सिर्फ 72.8 फीसदी तक पहुंच सकी है.

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देश में कक्षा तीन के पांच में से केवल एक छात्र को आता है सामान्य गणित

केरल में कक्षा तीन के आधे से भी कम छात्र बमुश्किल घटाना कर पाते हैं, और वो भी तब जब केरल इस कैटेगरी में देश का सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला राज्य है. वहीं, अगर पूरे देश की बात करें तो पांच में से सिर्फ एक छात्र को सामान्य गणित आता है.

  • देशभर में कक्षा तीन के कुल 20.9 फीसदी छात्रों को जोड़-घटाना आता है
  • केरल में कक्षा तीन के सबसे ज्यादा 44.7 फीसदी छात्रों और राजस्थान में सबसे कम 8.1 फीसदी छात्रों को सामान्य गणित आता है
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जूनियर एजुकेशन का और भी बुरा हाल

कक्षा आठ के आधे से ज्यादा छात्रों को सामान्य भाग भी नहीं आता. कक्षा 6 से 8 तक के छात्र कक्षा दो कि किताब बमुश्किल पढ़ पाते हैं. देखिए- चार सालों में क्या बदला?

सामान्य गणित में क्या है हाल?

कक्षा 6-

  • साल 2014 में 32.2 फीसदी छात्र
  • साल 2018 में 34.7 फीसदी छात्र

कक्षा 7-

  • साल 2014 में 37.8 फीसदी छात्र
  • साल 2018 में 39 फीसदी छात्र

कक्षा 8-

  • साल 2014 में 44.1 फीसदी छात्र
  • साल 2018 में 43.9 फीसदी छात्र

किताब पढ़ने के स्तर में क्या सुधार हुआ?

  • साल 2010 में छठी से आठवीं तक के 83.5 फीसदी छात्र कक्षा दो की किताब पढ़ पाते थे
  • साल 2014 में ये संख्या घटकर 74.6 फीसदी पर पहुंच गई
  • साल 2018 में ये संख्या और भी गिरकर 72.8 पर पहुंच गई

‘प्रथम’ ने ये रिपोर्ट 28 राज्यों के 596 पिछड़े जनपदों में किए गए सर्वे के आधार पर तैयार की है. इस सर्वे में 3.5 परिवारों और 3 से 16 साल के करीब 5.5 लाख बच्चों को शामिल किया गया है.

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