सुप्रीम कोर्ट में आधार को लेकर चल रहे प्राइवेसी का अधिकार, मौलिक अधिकार है या नहीं, मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा है कि प्राइवेसी का अधिकार मौलिक अधिकार है, लेकिन हर पहलू मौलिक अधिकार का हिस्सा नहीं माना जा सकता. केंद्र सरकार के एटॉर्नी जनरल ने कोर्ट में कहा कि प्राइवेसी का अधिकार, स्वतंत्रता के अधिकार का ही हिस्सा है, लेकिन इसके अलग-अलग पहलू हैं और यह अलग-अलग हालातों पर निर्भर करेगा.
कर्नाटक और पश्चिम बंगाल समेत चार गैर-बीजेपी शासित राज्यों ने निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित करने के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में हस्तक्षेप करने की इजाजत मांगी है. कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के अलावा कांग्रेस के नेतृत्व वाले पंजाब और पुडुचेरी ने भी इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के विपरीत रुख अपनाया है.
‘प्राइवेसी का हर पहलू मौलिक अधिकार का दर्जा नहीं पा सकता’
केंद्र सरकार ने कहा कि प्राइवेसी का हर पहलू मौलिक अधिकार का दर्जा नहीं पा सकता. प्राइवेसी का अधिकार जीवन के अधिकार के सामने कोई महत्व नहीं रखता है. अगर इस मामले में कोई भी टकराव होता है तो जीवन का अधिकार ही ऊपर रहेगा.
एटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने चीफ जस्टिस जे.एस. केहर के नेतृत्व वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ से कहा, “निजता मौलिक अधिकार है, लेकिन यह निर्बाध नहीं है, यह सशर्त है, क्योंकि निजता के अधिकार में विभिन्न पहलू शामिल होते हैं और इसके प्रत्येक पहलू को मौलिक अधिकार नहीं कहा जा सकता है.”
केंद्र सरकार की ओर से एटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कोर्ट में कहा कि क्या कोई यह कह सकता है कि उसके प्राइवेसी के अधिकार को संरक्षित रखने के लिए दूसरे के भोजन के अधिकार का उल्लंघन हो जाए. प्राइवेसी का अधिकार स्वतंत्रता के अधिकार के अंदर है और वह जीवन के अधिकार के अधीन है. आधार कार्ड, गरीबों के जीवन के अधिकार जैसे भोजन के अधिकार और आश्रय के अधिकार से जुड़ा हुआ है. अगर इससे कुछ लोगों का प्राइवेसी का अधिकार प्रभावित हो रहा है तो दूसरी तरफ यह बड़ी संख्या में लोगों के जीवन के अधिकार को सुनिश्चित भी कर रहा है.
‘प्राइवेसी के अधिकार की रुपरेखा पर नए सिरे से गौर करने की जरुरत’
कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के अलावा कांग्रेस के नेतृत्व वाले पंजाब और पुडुचेरी ने भी प्राइवेसी के मुद्दे पर केंद्र सरकार के विपरीत रुख अपनाया है. इन चार राज्यों का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीयस संविधान पीठ के समक्ष अपनी बात रखी.
सिब्बल ने कहा कि तकनीकी प्रगति को देखते हुए आज के दौर में प्राइवेसी के अधिकार और इसकी रुपरेखा पर नए सिरे से गौर करने की जरुरत है.
सिब्बल ने पीठ के सामने कहा, ‘‘प्राइवेसी एक परम अधिकार नहीं हो सकता. लेकिन यह एक मूलभूत अधिकार है. इस न्यायालय को इसमें संतुलन लाना होगा.”
इस मामले में की अगली सुनवाई कल गुरुवार को होगी. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस रोहिन्टन फली नरिमन, जस्टिस अभय मनोहर सप्रे, जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.
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