ADVERTISEMENTREMOVE AD

आदित्य ठाकरे: विरासत में मिली सियासत लेकिन खुद हासिल की ताकत

आदित्य ठाकरे ने चुनाव लड़ने वाले ठाकरे परिवार के पहले सदस्य हैं

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

महाराष्ट्र विधानसभा के नतीजों के साथ दो बातें साफ हो गई है. पहला- राज्य में एक बार फिर बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार बनेगी. दूसरा- पहली बार ठाकरे परिवार का एक सदस्य बतौर विधायक महाराष्ट्र विधानसभा में अपनी मौजूदगी दर्ज कराएगा.

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने वर्ली सीट से अपना पहला ही चुनाव जीत लिया है. आदित्य ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुरेश माणे को 67427 वोट से हरा दिया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सिर्फ 29 साल के आदित्य के लिए राजनीतिक माहौल कोई नई बात नहीं है, क्योंकि वो महाराष्ट्र की राजनीति के संभवतः सबसे ताकतवर परिवार से ताल्लुक रखते हैं. इसके बावजूद आदित्य ने धीरे-धीरे राजनीति की सीढ़ियों पर अपने कदम रखे.

शिवसेना में ‘एंट्री’, युवा सेना का गठन

वैसे तो आदित्य पार्टी के संस्थापक परिवार के ही सदस्य हैं, लेकिन पहली बार उनकी शिवसेना में आधिकारिक एंट्री हुई 2010 में. तब बाल ठाकरे ने दशहरा रैली में 19 साल के आदित्य को तलवार हाथ में देकर उन्हें शिवसेना का सदस्य बनाया था.

उसी दिन आदित्य ने शिवसेना की युवा ईकाई ‘युवा सेना’ का भी निर्माण किया. यहां से धीरे धीरे आदित्य ने खुद ही सक्रिय तौर पर राजनीति का हिस्सा बनना शुरू किया. युवा सेना का नेतृत्व करते हुए उन्होंने छात्र राजनीति में भी अपनी पकड़ बनाई.

इसी दौरान मुंबई यूनिवर्सिटी छात्रों से जुड़े मुद्दे उठाने के लिए बनी सीनेट काउंसिल में आदित्य के नेतृत्व में युवा सेना ने अपना वर्चस्व बनाना शुरू किया.

शिवसेना में युवा सेना की ताजगी

मुंबई में युवाओं के बीच आदित्य की लोकप्रियता काफी बढ़ी है. ये उनके सोशल मीडिया पर भी दिखता है, जहां उनके विचारों पर अक्सर युवा भी सकारात्मक प्रतिक्रियाएं देते हुए दिखते हैं.

छात्र नेता के रूप में अपनी छवि बनाने के साथ ही आदित्य ने बीएमसी की राजनीति में भी रुचि दिखानी शुरू की. बीएमसी में शिवसेना के दबदबे का फायदा भी हुआ और उन्होंने मुंबई में कई जगह ओपन जिम का विचार रखा.

बीएमसी ने इसमें उनका साथ दिया और वर्ली, मरीन ड्राइव समेत कई इलाकों में ओपन जिम शुरू किए. मुंबई के युवाओं के बीच इसका असर दिखा. सबने इसे पसंद किया और आदित्य की इस मुहिम को सराहा भी गया.

मुंबई के बारे में हमेशा कहा जाता है कि “ये शहर कभी रुकता नहीं”. आदित्य ने इसी पहचान को बनाए रखने के लिए मुंबई में नाइट लाइफ बरकरार रखने की मुहिम शुरू की. इसके पीछे आदित्य का विचार था मुंबई देर रात तक काम करने वाले लोगों की भी बुनियादी जरूरतें पूरी हों.

दिसंबर 2018 में आदित्य ने मुंबई, नवी मुंबई, ठाणे और पुणे में रात भर कानूनी रूप से नए साल के जश्न मनाने की इजाजत के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी थी. इसे युवाओं से लेकर फिल्म स्टार्स तक ने बड़ा समर्थन दिया

शिवसेना की जो छवि अभी तक कट्टरता और रूढिवाद की रही, उससे अलग आदित्य ने इसमें युवा जोश और नई दौर की ताजगी भरनी शुरू की.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

2014 का चुनाव और आदित्य का रोल

2014 में लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी और बीजेपी की लहर देश भर में छाई हुई थी. लोकसभा चुनावों के नतीजों ने बीजेपी को देश की सबसे मजबूत पार्टी बना दिया था. कुछ ही महीनों बाद हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी का सालों पुराना गठबंधन तनाव से भरा दिखने लगा.

ऐसा माना जाता है कि विधानसभा में सीटों के बंटवारे को लेकर जब चर्चा शुरू हुई तो ये आदित्य का ही दिमाग था कि शिवेसना ने 150 से कम सीटें लेने को तैयार नहीं थी. इसके चलते ही विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन नहीं हो सका.

इतना ही नहीं, उस वक्त गठबंधन को लेकर दोनों पार्टियों में चर्चा के लिए बीजेपी के महाराष्ट्र प्रभारी रहे ओम माथुर और पार्टी नेता देवेंद्र फडणवीस शामिल थे, लेकिन दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे ने आदित्य को उस चर्चा के लिए भेजा. इतने युवा और अनुभवहीन आदित्य को चर्चा पर भेजना भी बीजेपी नेताओं को नागवार गुजरा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

विधानसभा की चर्चाओं से विधानसभा चुनाव तक

ठाकरे परिवार से आज तक कोई भी चुनावी राजनीति में सीधे तौर पर नहीं उतरा. बाल ठाकरे से लेकर उद्धव और राठ ठाकरे तक, सबने अपने हाथों में बागडोर रखी, लेकिन कभी खुद चुनाव के लिए नहीं उतरे.

आदित्य ठाकर ने इसे बदल दिया है. आदित्य ठाकरे का विधानसभा में उतरने का फैसला चौंकाने वाला था. इस फैसले में उद्धव ठाकरे की कोई भूमिका नहीं है. ऐसा माना जाता है कि उद्धव इस फैसले से खुश नहीं थे, फिर भी उन्हें आदित्य के इस फैसले को मानना पड़ा.

लेकिन आदित्य के चुनावी जमीन पर उतरने की बुनियाद सिर्फ विधानसभा चुनाव आने के कारण नहीं हुई, बल्कि विधानसभा में होने वाली बहसों से हुई. आदित्य हर बजट सत्र में विधानसभा में मौजूद रहते हैं और बजट पेश होने से लेकर उसकी चर्चाओं को सुनते रहे हैं.

इसके कारण भी उनका संसदीय राजनीति की ओर रुख हुआ. सिर्फ बजट ही नहीं बल्कि कई महत्वपूर्ण चर्चाओं के दौरान भी वो विधानसभा में मौजूद रहते थे.

यही कारण है कि आदित्य चुनाव लड़ने वाले ठाकरे परिवार के पहले सदस्य बने. हालांकि ये आदित्य का पहला चुनाव नहीं है. इससे पहले 2017 में वो मुंबई जिला फुटबॉल एसोसिएशन का भी चुनाव लड़े थे जबां वो निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×