अमर्त्य सेन, रघुराम राजन और अभिजीत बनर्जी ने 16 अप्रैल को इंडियन एक्सप्रेस में एक स्तंभ में लिखा, "अब जब ये साफ हो गया है कि लॉकडाउन कुछ समय चलेगा, तो सबसे बड़ी चिंता ये है कि बड़ी संख्या में लोग गरीबी और भूख से तड़पेंगे क्योंकि उनकी आजीविका नहीं होगी."
तीनों ने लिखा, "हमें कुछ भी करके लोगों को आश्वस्त करना पड़ेगा कि समाज को फर्क पड़ता है और उनकी देखभाल की जाएगी."
फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) के पास खाने के स्टॉक के बारे में उन्होंने लिखा कि मार्च 2020 में भारत के पास 77 मिलियन टन था. ये बफर स्टॉक नॉर्म्स के तीन गुने से ज्यादा था.
सरकार असामान्य तौर से किसानों से स्टॉक खरीदने में एक्टिव रही है. सेन, राजन और बनर्जी ने लिखा, "नेशनल इमरजेंसी के समय मौजूदा स्टॉक में से देना बिल्कुल ठीक है. कोई भी ढंग का पब्लिक एकाउंटिंग सिस्टम इसे महंगा होने के तौर पर नहीं दिखाएगा."
सरकार ने 5 किलो प्रति व्यक्ति के हिसाब से PDS प्रकिया के जरिए अगले तीन महीने राशन देने का ऐलान किया है. इस पर तीनों ने लिखा,
शायद तीन महीने काफी न हों. अगर लॉकडाउन जल्दी भी खत्म हुआ, तो इकनॉमी खुलने में समय लगेगा. सबसे जरूरी बात ये है कि गरीब लोगों का एक अच्छा-खासा हिस्सा PDS प्रक्रिया में किसी न किसी कारण से नहीं आता है.
'अस्थायी राशन कार्ड जारी किए जाएं'
राशन कार्ड न होने से कई लोग सरकारी मदद से वंचित रह जाते हैं. इस समस्या पर सेन, बनर्जी और राजन ने लिखा, "छह महीने के लिए अस्थायी राशन कार्ड जारी करना चाहिए. हर उस शख्स को कार्ड देना चाहिए, जिसे जरूरत है और जो लाइन में लगकर कार्ड लेने और महीने का भत्ता लेने के लिए खड़ा हो सकता है."
इसके अलावा तीनों का कहना है कि कुछ कदम और उठाने चाहिए, जैसे कि:
- सरकार को PDS का दायरा फैलाना चाहिए, प्रवासियों के लिए पब्लिक कैंटीन बनानी चाहिए, सरकार वो सब करना चाहिए जिससे ये पक्का हो जाए कि कोई भी भूखा न रहे.
- किसानों को अगले खेती के सीजन के लिए बीज और फर्टिलाइजर खरीदने के लिए पैसे चाहिए, दुकानदारों को फैसला करना है कि वो अपनी शेल्फ कैसे भरेंगे. ये सब चिंताएं नकारी नहीं जा सकती.
सेन, बनर्जी और राजन ने कहा, "कांग्रेस नेता चिदंबरम का 2019 के MGNREGA रोल का इस्तेमाल करने वाला आइडिया, साथ ही जन आरोग्य और उज्ज्वला योजना से गरीब घरों की पहचान और फिर उनके जन धन खातों में 5000 रुपये डालना पहला अच्छा कदम लगता है."
तीनों ने लिखा कि ये ऐसी चुनौती है जिसमें बहादुरी और सोच दोनों लगेगी. सेन, बनर्जी और राजन ने कहा, "हमें समझदारी से खर्च करना होगा क्योंकि आने वाले महीनों में फिस्कल संसाधनों की भारी डिमांड हो सकती है, लेकिन जिन्हें जरूरत है उनके साथ कंजूसी करना ठीक नहीं होगा."
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