एक आसान सा फॉर्मूला है, अगर नदी में बहता पानी होगा तो उसकी सफाई का काम बेहद आसान हो जाता है. गंगा नदी को साफ करने में जुटी केंद्र सरकार को इस चुनौती को ध्यान में रखना होगा क्योंकि गंगा नदी में सर्दी और गर्मी के मौसम में भी कई जगहों पर पानी का प्रवाह रुक जाता है.
आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक प्रो. विनोद तारे इस फॉर्मूले की पैरवी करते हुए कहते हैं,
गंगा को अपने प्राकृतिक रुप में बहना चाहिए और गंगा में जल का प्रवाह होगा तभी उसकी सफाई की बात की जा सकती है
‘मंत्रालय इसी दिशा में काम कर रहा है’
जल संसाधन, नदी विकास और गंगा जीर्णोद्वार पर प्राक्कलन समिति के सामने मंत्रालय के सचिव ने भी स्वीकार किया, मंत्रालय का कहना है कि,
साफ करने के लिए नदी में पानी तो होना चाहिए. केवल निर्मलता के कारण ही नदी को अपने पारिस्थितिकीय कार्य जारी रखने में सहायता नहीं मिलेगी. पर्याप्त प्रवाह और स्वच्छता दोनों को ही एक दूसरे की सहायता करनी होगी. परंतु यदि जल प्रवाह आता है और इस नदी को गंदा करना जारी रखता है तो जल जीवन नहीं बचेगा... इसलिए सरकार ने व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है.
जल संसाधन मंत्रालय ने देवप्रयाग, रिषिकेश, हरिद्वार, गढमुक्तेश्वर, वथुर, कानपुर, इलाहाबाद और बनारस जैसे शहरों के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की है. संसद की एक समिति ने भी अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि जल के दोहन, बढते प्रदूषण से शुष्क हुई गंगा को निष्ठापूर्वक साफ करने की पहल हो और समय एवं लागत में वृद्धि के बिना जुलाई 2018 तक लाखों लोगों की जीवनदायनी गंगा का जीर्णोद्वार किया जा सके.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में बताया गया है कि नदी के ऊपरी हिस्से में अक्सीकरण की क्षमता सबसे अधिक होती है, गंगा नदी में वहां भी प्रदूषण बढ़ने के संकेत मिले हैं. इस क्षेत्र में भी जल विद्युत के लिए जल निकासी गंगा के हितों के लिए खतरा बनती जा रही है.
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