भारत के वैज्ञानिकों ने एक बार फिर बड़ी उपलब्धि हासिल की है. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल (MIRV) तकनीक से लैस स्वदेशी रूप से विकसित अग्नि -5 मिसाइल तैयार की है और उसकी पहली टेस्ट फ्लाइट सफल रही है. इसे मिशन दिव्यास्त्र (Mission Divyastra) नाम दिया गया है.
पीएम मोदी ने मिशन दिव्यास्त्र की सफलता के लिए DRDO के सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी है.
चलिए आपको बताते हैं कि मिशन दिव्यास्त्र क्या है? MIRV तकनीक आखिर है क्या? अग्नि -5 मिसाइल का पहला सफल उड़ान क्यों बड़ी उपलब्धि है?
Mission Divyastra: MIRV तकनीक से लैस देश में तैयार अग्नि-5 मिसाइल- यह बड़ी उपलब्धि क्यों?
1. मिशन दिव्यास्त्र क्या है?
मिशन दिव्यास्त्र DRDO का एक प्रोजेक्ट है जिसमें मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल (MIRV) तकनीक के साथ स्वदेशी रूप से अग्नि -5 मिसाइल को विकसित किया गया है. अब पीएम मोदी ने जानकारी दी है कि अग्नि -5 मिसाइल की पहली टेस्ट फ्लाइट सफल रही है. इसे और समझने के लिए हमें जानना होगा कि MIRV तकनीक क्या है?
Expand2. MIRV तकनीक क्या है?
मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल (MIRV) एक प्रकार का पेलोड है जो लंबी दूरी की टार्गेटेड मिसाइलों पर लगाया जाता है. MIRV पेलोड एक मिसाइल को कई परमाणु हथियार ले जाने और दुश्मन के इलाके में एक के बाद एक कई लक्ष्यों पर हमला करने की अनुमति देता है.
इस कॉनसेप्ट की शुरुआत 1960 के दशक की शुरुआत में अमेरिका द्वारा बैलिस्टिक मिसाइलों को ले जाने वाली अपनी परमाणु पनडुब्बियों की सीमित क्षमता को बढ़ाने के लिए की गई थी. इसने शीत युद्ध काल के दो प्रमुख विरोधियों, अमेरिका और रूस (तब USSR) के बीच हथियारों की होड़ को और बढ़ा दिया. सोवियत ने ऐसी ही तकनीक विकसित करके उसे अपने बड़े रॉकेटों पर लगाया और जवाबी कार्रवाई की. इसके बाद, बाकी बचे 'परमाणु हथियार वाले देशों' ने भी अपनी खुद की स्वदेशी क्षमताओं को विकसित करके इस तकनीक को फॉलो किया.
मिशन दिव्यास्त्र के पहले सफल टेस्ट परीक्षण से अब भारत के पास भी मिशन MIRV तकनीक से लैस मिसाइल - अग्नि -5 है.
Expand3. MIRV तकनीक अहम क्यों?
लॉन्च होने के बाद जैसे ही मिसाइल अपने बैलिस्टिक आर्क के टॉप पर पहुंचती है, एक MIRV पेलोड उससे अलग हो जाता है फिर जब यह पृथ्वी की ओर गिरते हैं तो इसमें मौजूद अलग-अलग वॉरहेड/हथियार को कई अलग-अलग टारगेट की ओर भेजा जा सकता है.
MIRV तकनीक से लैस बैलिस्टिक मिसाइल हमले से बचाव करना अधिक कठिन हो जाता है.
यहां तक कि अगर कुछ वॉरहेड बीच में खराब भी हो जाते हैं या एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस द्वारा रोक लिए जाते हैं तो MIRV पेलोड से इतने वॉरहेड बरसाए जाते हैं कि टारगेट के नष्ट होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है.
Expand4. मिशन दिव्यास्त्र भारत के लिए बड़ी उपलब्धि क्यों है?
भारत इस सफलता के साथ अब अमेरिका, रूस और चीन जैसी महाशक्तियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है.
आज, अमेरिका की सभी पनडुब्बी से दगने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों (SLBMs) और कुछ इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों (ICBMs) में MIRV वॉरहेड लगे हुए हैं. रूस भी अपने ICBM और SLBM पर भी इस तकनीक का उपयोग करता है. वहीं फ्रांस और यूके केवल पनडुब्बी से दगने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों पर MIRV वॉरहेड लगाता है.
चीन ने अपने ICBMs पर लगाने के लिए इस तकनीक को विकसित किया है. यह इस क्षमता को अपने चीन एसएलबीएम तक भी बढ़ा सकता है.
जब भारत अपने पास को एक महाशक्ति के रूप में पेश करना चाहता है, उसका दो परमाणु हथियार रखने वाले देशों से सीमा विवाद है, ऐसे में MIRV तकनीक की मदद से स्वदेशी रूप से तैयार मिसाइल उसकी ताकत को बहुत बढ़ा देती है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
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मिशन दिव्यास्त्र क्या है?
मिशन दिव्यास्त्र DRDO का एक प्रोजेक्ट है जिसमें मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल (MIRV) तकनीक के साथ स्वदेशी रूप से अग्नि -5 मिसाइल को विकसित किया गया है. अब पीएम मोदी ने जानकारी दी है कि अग्नि -5 मिसाइल की पहली टेस्ट फ्लाइट सफल रही है. इसे और समझने के लिए हमें जानना होगा कि MIRV तकनीक क्या है?
MIRV तकनीक क्या है?
मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल (MIRV) एक प्रकार का पेलोड है जो लंबी दूरी की टार्गेटेड मिसाइलों पर लगाया जाता है. MIRV पेलोड एक मिसाइल को कई परमाणु हथियार ले जाने और दुश्मन के इलाके में एक के बाद एक कई लक्ष्यों पर हमला करने की अनुमति देता है.
इस कॉनसेप्ट की शुरुआत 1960 के दशक की शुरुआत में अमेरिका द्वारा बैलिस्टिक मिसाइलों को ले जाने वाली अपनी परमाणु पनडुब्बियों की सीमित क्षमता को बढ़ाने के लिए की गई थी. इसने शीत युद्ध काल के दो प्रमुख विरोधियों, अमेरिका और रूस (तब USSR) के बीच हथियारों की होड़ को और बढ़ा दिया. सोवियत ने ऐसी ही तकनीक विकसित करके उसे अपने बड़े रॉकेटों पर लगाया और जवाबी कार्रवाई की. इसके बाद, बाकी बचे 'परमाणु हथियार वाले देशों' ने भी अपनी खुद की स्वदेशी क्षमताओं को विकसित करके इस तकनीक को फॉलो किया.
मिशन दिव्यास्त्र के पहले सफल टेस्ट परीक्षण से अब भारत के पास भी मिशन MIRV तकनीक से लैस मिसाइल - अग्नि -5 है.
MIRV तकनीक अहम क्यों?
लॉन्च होने के बाद जैसे ही मिसाइल अपने बैलिस्टिक आर्क के टॉप पर पहुंचती है, एक MIRV पेलोड उससे अलग हो जाता है फिर जब यह पृथ्वी की ओर गिरते हैं तो इसमें मौजूद अलग-अलग वॉरहेड/हथियार को कई अलग-अलग टारगेट की ओर भेजा जा सकता है.
MIRV तकनीक से लैस बैलिस्टिक मिसाइल हमले से बचाव करना अधिक कठिन हो जाता है.
यहां तक कि अगर कुछ वॉरहेड बीच में खराब भी हो जाते हैं या एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस द्वारा रोक लिए जाते हैं तो MIRV पेलोड से इतने वॉरहेड बरसाए जाते हैं कि टारगेट के नष्ट होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है.
मिशन दिव्यास्त्र भारत के लिए बड़ी उपलब्धि क्यों है?
भारत इस सफलता के साथ अब अमेरिका, रूस और चीन जैसी महाशक्तियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है.
आज, अमेरिका की सभी पनडुब्बी से दगने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों (SLBMs) और कुछ इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों (ICBMs) में MIRV वॉरहेड लगे हुए हैं. रूस भी अपने ICBM और SLBM पर भी इस तकनीक का उपयोग करता है. वहीं फ्रांस और यूके केवल पनडुब्बी से दगने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों पर MIRV वॉरहेड लगाता है.
चीन ने अपने ICBMs पर लगाने के लिए इस तकनीक को विकसित किया है. यह इस क्षमता को अपने चीन एसएलबीएम तक भी बढ़ा सकता है.
जब भारत अपने पास को एक महाशक्ति के रूप में पेश करना चाहता है, उसका दो परमाणु हथियार रखने वाले देशों से सीमा विवाद है, ऐसे में MIRV तकनीक की मदद से स्वदेशी रूप से तैयार मिसाइल उसकी ताकत को बहुत बढ़ा देती है.
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