एक स्टडी के मुताबिक उत्तर भारत में फसल कटने के बाद बचे हुए अवशेष को जलाने से भारत को हर साल कुल 3000 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ है. पराली जलाने से आर्थिक नुकासन के अलावा इससे सांस से जुड़ी गंभीर बीमारियां भी होती रहीं हैं.
US के फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट IFPRI के रिसर्चर्स ने अपनी खोज में पाया है जिन शहरों में पराली चलाने के चलते वायु प्रदूषण ज्यादा है, उस इलाके के लोगों को सांस लेने संबंधी बीमारियां होने के ज्यादा आसार हैं.
स्टडी के मुताबिक-
“अनुमान है कि उत्तर भारत में फसल काटने के बाद बची हुई पराली को जलाने से स्वास्थ और आर्थिक तौर पर 3000 करोड़ डॉलर से ज्यादा का नुकसान हो रहा है और ये ऐतिहासिक है”
प्रदूषित वायु पूरी दुनिया के हेल्थ सिस्टम के सामने चुनौती बनकर उभर रही है. दिल्ली की हवा में कई बार इतना ज्यादा प्रदूषण हो जाता है कि हवा में पार्टिकुलेट मैचर की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन के सेफ्टी पैमाने से 20 गुना हो जाता है.सैमुअल स्कॉट, रिसर्च फेलो, IFPRI
दिल्ली में वायु प्रदूषित होने के कई सारे कारण हैं लेकिन पिछले कुछ सालों से हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने का चलन बढ़ा है, जो दिल्ली की हवा को दिनों दिन प्रदूषित किए जा रहा है.
स्टडी के मुताबिक पराली जलाने से हर साल करीब 3000 करोड़ डॉलर का नुकसान हो रहा है. भारतीय रुपए में जो करीब 2 लाख करोड़ के आस-पास है. ये प्रदूषण मुख्यतः उत्तर भारत के 3 राज्य हरियाणा, पंजाब और दिल्ली फैलाते हैं. इस स्टडी में भारत के शहरी और ग्रामीण करीब ढाई लाख लोगों का हेल्थ डाटा जुटाया गया.
इस अध्ययन में NASA सेटेलाइट से भी डाटा जुटाया गया. नासा से भारत में फायर एक्टिविटी संबंधी डाटा जुटाया गया. जिन इलाकों में पराली जलाई जाती है उसके साथ आम इलाकों की तुलना भी की गई.
प्रदूषण सिर्फ और सिर्फ पराली जलाने से नहीं हो रहा बल्कि पटाखों जलाने से भी हो रहा है. पटाखे जलाने से करीब 700 करोड़ डॉलर का नुकसान हो रहा है जो करीब 50 हजार करोड़ रुपए है.
पिछले 5 सालों में पराली और पटाखे जलाने से कुल करीब 19,000 करोड़ डॉलर का नुकसान हो रहा है जो भारत की GDP का लगभग 1.7% हिस्सा है.
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