ADVERTISEMENTREMOVE AD

अजित सिंह का निधन, वाजपेयी से लेकर मनमोहन सरकार में थे मंत्री

चौधरी अजित सिंह बागपत से 7 बार सांसद और केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री रह चुके हैं.

Updated
छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता

करीब 2 महीने पहले जब किसान आंदोलन अपनी उरूज पर था, तब उम्र से 'बूढ़े' हो चुके एक नेता ने हजारों की भीड़ के सामने माइक संभाला. हाथ हवा में लहराते हुए कहा, 'पगड़ी संभाल लो वरना इज्जत खत्म हो जाएगी.' मंच से पूरे जोश से सामने बैठी युवा पीढ़ी से कहते हैं कि हम क्यों अपने पुर्वजों को याद करते हैं, क्योंकि उन्हें याद करने से हमें बल मिलता है, हमें संघर्ष के दौर में हिम्मत मिलती है. अब वो नेता चौधरी अजित सिंह याद बन चुके हैं. कोरोना ने उन्हें भी अपनी चपेट में ले लिया.

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे, राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह का निधन हो गया है.

चौधरी अजित सिंह बागपत से 7 बार सांसद और केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री रह चुके हैं. वो कोरोना संक्रमित हो गए थे. मंगलवार रात उनकी तबीयत बिगड़ी तो उन्हें गुरुग्राम के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था.

अजित सिंह की सियासत

IIT खड़गपुर से कंप्यूटर इंजीनियरिंग करने वाले जाटों के नेता अजित सिंह विदेश में कई साल तक नौकरी भी की. लेकिन पिता चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद उनकी राजनीतिक विरासत संभालनी थी.

1986 में अपनी राजनीतिक जिंदगी की शुरुआत करने वाले चौधरी अजित सिंह सीधे राज्यसभा भेजे गए. हालांकि उसके बाद साल 1989 से उत्तर प्रदेश के बागपत से वो लगातार सांसद रहे. पहली बार 1998 में उन्हें हार से सामना करना पड़ा. लेकिन अगले ही साल फिर से लोकसभा में उनकी वापसी हुई.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

मोदी छोड़ करीब हर सरकार में रहे मंत्री

कहा जाता है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय रामविलास पासवान के बाद अजित सिंह ही इस देश में ऐसा नेता हैं, जो करीब-करीब हर सरकार में मंत्री रहे हैं. चाहे 1989 में वीपी सिंह की सरकार हो या 1991 में नरसिंह राव की कांग्रेस की सरकार. या फिर 1999 की वाजपेयी सरकार हो. यही नहीं बीजेपी से ठीक उलट विचारधारा वाली मनमोहन सिंह की सरकार में भी वो मंत्री रहे हैं. वह दिसंबर 2011 से मई 2014 तक नागरिक उड्डयन मंत्री भी रहे.

लेकिन फिर कभी संसद नहीं पहुंच सके. उनकी दूसरी हार साल 2014 में हुई. जाटों के नेता अजित सिंह को मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर और बागपत के ही रहने वाले जाट समुदाय के सत्यपाल सिंह से हार का सामना करना पड़ा. ये वक्त था जब मुजफ्फरनगर दंगे की आग झेल रहा था और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट आरएलडी के हाथों से निकलकर बीजेपी के साथ खड़े थे.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×