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अकाल तख्त प्रमुख बोले- हिंदू राष्ट्र की बात गलत, RSS पर लगे बैन  

ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने का संघ का उद्देश्य देश के हितों के खिलाफ है.

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भारत
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अकाल तख्त के कार्यवाहक जत्थेदार (प्रधान पुजारी) ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बैन लगाने की मांग करते हुए कहा है कि भारत को 'हिंदू राष्ट्र' बनाने का संघ का उद्देश्य देश के हितों के खिलाफ है.
अकाल तख्त प्रमुख ने सोमवार को अमृतसर में कथित तौर पर मीडिया से कहा, "आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. मेरा मानना है कि आरएसएस जो कर रहा है वह देश में विभाजन पैदा करेगा. आरएसएस के नेताओं की ओर से दिए गए बयान देश के हित में नहीं हैं."

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अपने बयान में हरप्रीत सिंह ने ये भी कहा, “भारत में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, सिख, यहूदी, पारसी हैं. लोग यहां अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं. यह कहना गलत है कि इसे हिंदू राष्ट्र बनाया जाएगा."

अकाल तख्त प्रमुख का ये बयान आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत के विजयदशमी संबोधन की प्रतिक्रिया में आया है, जिसमें उन्होंने भारत को हिंदू राष्ट्र कहा था. साथ ही उन्होंने लिंचिंग को ईसाई और मुस्लिम धर्म के ग्रंथों से जोड़ा था.  

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने इससे पहले भागवत के बयान की निंदा की थी और कहा था कि "हिंदू राष्ट्र के लिए आरएसएस का आह्वान संविधान की अवमानना

है". उन्होंने कहा था कि भारत एक बहु-धार्मिक, बहु-जातीय देश है और हर तरह की मान्यताओं को संविधान द्वारा अधिकारों की गारंटी दी गई है.

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अकाल तख्त बनाम RSS

अकाल तख्त और आरएसएस के संबंध हमेशा से खराब नहीं रहे. लेकिन कई बार अकाल तख्त ने आरएसएस की आलोचना की है. 2004 में अकाल तख्त ने एक हुक्मनामा जारी किया था, जिसमें सिखों को आरएसएस से जुड़े संगठन 'राष्ट्रीय सिख संगत' से दूर रहने और संगठन को "पंथ-विरोधी" कहने का निर्देश दिया गया था.
आरएसएस के खिलाफ सिख निकायों की मुख्य शिकायत यह है कि यह सिखों की अलग पहचान से इनकार करता है और सिख गुरुओं, खास तौर पर गुरु गोविंद सिंह को हिंदू महापुरुष के रूप में पेश करने की कोशिश करता है.

2017 में, अकाल तख्त के तत्कालीन जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह ने राष्ट्रीय सिख संगत द्वारा गुरु गोविंद सिंह की 350 वीं जयंती के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम को रद्द कर दिया था.

ज्ञानी गुरबचन सिंह ने कहा था, “किसी को भी सिख इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है और इस तरह के काम को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. सिख एक अलग कौम हैं और उनकी एक अलग पहचान है और एक अनोखा इतिहास है. वे किसी अन्य धर्म के रीति-रिवाजों, मान्यताओं और आचार संहिता में हस्तक्षेप नहीं करते हैं. वे अपने विश्वास और इसके स्वभाव में दूसरों का हस्तक्षेप कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं,"

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