ADVERTISEMENT

अखिलेश,तेजस्वी, अभिषेक, आदित्य, सचिन-5 युवा नेताओं के लिए 2024 का चांस और चुनौती

5 Young Political face: ये वो नेता हैं जो न सिर्फ पार्टी का चेहरा हैं बल्कि राष्ट्रीय पटल पर इनकी बड़ी भूमिका है.

Published
भारत
7 min read
अखिलेश,तेजस्वी, अभिषेक, आदित्य, सचिन-5 युवा नेताओं के लिए 2024 का चांस और चुनौती
i

रोज का डोज

निडर, सच्ची, और असरदार खबरों के लिए

By subscribing you agree to our Privacy Policy

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) की तारीखों के ऐलान में अब सिर्फ एक साल का वक्त बचा है. लेकिन राजनीतिक जोर आजमाइश अभी से शुरू हो गई है. सत्तारूढ़ बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए विपक्ष कितना एकजुट होगा, इस पर कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी. लेकिन 5 ऐसे युवा नेता हैं जो 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी के लिए गेम चेंजर साबित हो सकते हैं.

ADVERTISEMENT

ये वो नेता हैं जो न सिर्फ अपनी पार्टी का चेहरा हैं बल्कि राष्ट्रीय पटल पर इनकी बड़ी भूमिका है. आखिर कौन हैं वो नेता और 2024 के चुनाव में क्यों उनकी भूमिका इतनी अहम है, आइये आपको समझाते हैं.

अखिलेश यादव

उत्तर प्रदेश पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की 2024 के लोकसभा चुनाव में बड़ी भूमिका होगी. अखिलेश जिस प्रदेश से आते हैं वहां लोकसभा की सबसे अधिक 80 सीटें हैं. 2014 के चुनाव में NDA को यहां 73 सीट और 2019 में 64 सीट मिली थी जबकि दोनों चुनाव में समाजवादी पार्टी 5 सीट ही जीत पाई थी. इसमें 5 उम्मीदवार मुलायम सिंह यादव के परिवार के थे.

लोकसभा चुनाव का रिजल्ट.

(फोटो-क्विंट हिंदी)

2024 के चुनाव में अगर विपक्ष को बीजेपी के विजय रथ को रोकना है तो उसमें यूपी की अहम भूमिका होगी. BSP और कांग्रेस का जिस तरीके से जनाधार घट रहा है उसके बाद अकेले समाजवादी पार्टी ही दिख रही है, जो प्रदेश में बीजेपी का मुकाबला कर सकती है. लेकिन अखिलेश यादव के लिए ये राह आसान नहीं है. उनके सामने कई ऐसे चुनौतियां है जिससे उन्हें पार पाना होगा.

लोकसभा चुनाव का रिजल्ट.

(फोटो-क्विंट हिंदी)

विधानसभा चुनाव का रिजल्ट.

(फोटो-क्विंट हिंदी)

ADVERTISEMENT

अखिलेश यादव के सामने क्या चुनौती?

  • समाजवादी पार्टी और यादव कुनबे को आगे भी एकजुट रखना होगा

  • मुलायम के MY समीकरण को साधे रखने की चुनौती होगी.

  • युवाओं के साथ पुराने नेताओं को तवज्जो देनी होगी.

  • मजबूत विपक्ष के तौर पर बीजेपी का डटकर सामना करना होगा.

  • पारंपरिक सीटों को बचाए रखना होगा.

अखिलेश यादव ने यूपी की राजनीति को दो ध्रुवों में बांटा है. ये BJP के लिए नुकसानदायक हो सकता है. अगर वोटों का ध्रुवीकरण BJP और समाजवादी पार्टी के बीच हो गया तो ये अखिलेश यादव की सबसे बड़ी सफलता होगी.
मुकेश कौशिक, वरिष्ठ पत्रकार

राजनीतिक जानकारों की मानें तो, अखिलेश यादव बीजेपी के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के एजेंडे का जातिगत राजनीति के आधार पर किस तरह से मुकाबला करेंगे, ये बहुत अहम होगा. वहीं, अन्य बैकवर्ड क्लास का कितना वोट समाजवादी पार्टी के पाले में आ पाएगा, ये भी बड़ी चुनौती होगी.

आदित्य ठाकरे

उद्धव ठाकरे के बेटे और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री रहे आदित्य ठाकरे की पहचान युवा नेता के तौर पर होती है. आदित्य जिस प्रदेश से आते हैं वो यूपी के बाद सबसे अधिक लोकसभा सीटों वाला राज्य है. यहां से 48 सांसद चुनकर संसद जाते हैं. 2019 के चुनाव में बीजेपी ने यहां पर 23 सीट पर जीत हासिल की थी जबकि महाराष्ट्र में बदली राजनीतिक स्थितियों के बाद अब उद्धव गुट के पास केवल 6 सांसद हैं.

ADVERTISEMENT

25 साल तक बीजेपी के साथ गठबंधन में रही शिवसेना ने 2019 विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद अपनी राह अलग कर ली थी और यहीं से पार्टी की मुसीबत शुरू हो गई. वर्तमान समय में आदित्य ठाकरे के पास न शिवसेना का सिंबल है और न ही पार्टी का नाम. एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना का दर्जा मिलने के बाद से आदित्य ठाकरे के सामने तमाम चुनौती हैं. जैसे-

  • नई पार्टी को मजबूती से महाराष्ट्र में खड़ा करना.

  • बाला साहब ठाकरे की विरासत को बचाना.

  • वर्कर्स के मनोबल को बनाए रखना.

राजनीतिक जानकारों की मानें तो, आदित्य ठाकरे की सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा हासिल करना है, क्योंकि उद्धव गुट अभी शरद पवार के कंधे पर हाथ रखकर चल रहा है और इससे उसे जल्द बाहर आना होगा.

महाराष्ट्र में जिस तरीके से BJP बढ़ रही है, वो निश्चित तौर पर उद्धव गुट के लिए चुनौती है. ऐसे में आदित्य ठाकरे को बीजेपी विरोधी ताकतों को एकजुट करना होगा और जनता से सीधा संवाद स्थापित करना होगा. उन्हें अपने दादा और पिता के साये से निकलकर अपना अलग नेतृत्व युवाओं में स्थापित करना होगा.
रंजनी रंजन झा, पॉलिटिक्ल साइंस, BHU

अभिषेक बनर्जी

35 वर्षीय अभिषेक बनर्जी TMC के राष्ट्रीय महासचिव हैं. वह जिस प्रदेश से आते हैं वहां लोकसभा की 42 सीट हैं यानी यूपी और महाराष्ट्र के बाद तीसरे नंबर पर सबसे अधिक सांसद पश्चिम बंगाल से चुनकर जाते हैं. पश्चिम बंगाल में टीएमसी पिछले 12 सालों से सत्ता में हैं लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से बीजेपी का प्रदेश में सफलता का ग्राफ बढ़ता दिख रहा है.

लोकसभा चुनाव का रिजल्ट.

(फोटो-क्विंट हिंदी)

विधानसभा चुनाव का रिजल्ट.

(फोटो-क्विंट हिंदी)

ADVERTISEMENT

अभिषेक बनर्जी के सामने क्या चुनौतियां?

अभिषेक बनर्जी अभी युवा हैं. उनके सामने कई चुनौतियां हैं जिससे उन्हें पार पाना होगा. जैसे-

  • अभिषेक बनर्जी की TMC में खुलकर स्वीकार्ता नहीं दिखती है. ऐसे में कार्यकर्ताओं के बीच पैठ बनानी होगी, जिससे पार्टी वर्कर्स के बीच संदेश जाए कि ममता बनर्जी के बाद पार्टी में नंबर 2 वही हैं.

  • पार्टी में गुटबाजी को रोकना होगा.

  • ममता बनर्जी के साये से निकलकर खुद को स्थापित करना होगा.

  • BJP के बढ़ते ग्राफ को रोकना होगा.

  • कथित भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी पार्टी की छवि को साफ बनाए रखना होगा.

  • TMC के जनाधार को लोकसभा चुनावों में और मजबूत करना होगा.

हाल ही में बंगाल की सागरदिघी सीट पर हुए उपचुनाव में हुई हार के बाद TMC के लिए बंगाल लोकसभा चुनाव में एकतरफा होते नहीं दिख रहा है.

तेजस्वी यादव

बिहार के डिप्टी सीएम और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव बहुत ही कम समय में प्रदेश की राजनीति में अहम किरदार बन गए हैं. 26 साल की उम्र में उपमुख्यमंत्री बने तेजस्वी यादव अपने पिता लालू प्रसाद के नक्शेकदम पर चलते हुए उनकी सियासी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. RJD ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में शानदार प्रदर्शन किया और नंबर वन पार्टी बनी. लेकिन लोकसभा चुनावों में RJD का प्रदर्शन निराशाजनक था.

2014 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने चार सीट जीती थीं जबकि 2019 में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली. ऐसे में तेजस्वी यादव के सामने 2024 चुनाव से पहले कई चुनौती है, जिसका जल्द हल निकालना होगा.
ADVERTISEMENT

तेजस्वी यादव के सामने चुनौती

  • कथित भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे तेजस्वी यादव को जल्द इससे बाहर निकलना होगा.

  • RJD के पारंपरिक मुस्लिम-यादव वोटबैंक के अलावा अन्य वर्गों का वोट पार्टी के पाले में लाना होगा.

  • बिहार में महागठबंधन को बनाए रखना होगा.

  • RJD की छवि कथित तौर पर अराजकता फैलाने वाली पार्टी की रही है. तेजस्वी को इस पर लगाम लगाना होगा.

  • युवाओं और वरिष्ठ नेताओं के बीच समन्वय स्थापित करना होगा. कई वरिष्ठ नेता तेजस्वी यादव पर पुराने नेताओं की अनदेखी का आरोप लगाते रहे हैं.

  • बिहार में लोकसभा की 40 सीट है, ऐसे में आरजेडी को अधिक सीट पर जीत हासिल करनी होगी.

तेजस्वी यादव को बिहार की जनता ने लालू-नीतीश की साझी विरासत के तौर पर स्वीकार कर लिया है. वो प्रदेश में नीतीश कुमार के बाद नंबर दो के नेता बन चुके हैं. उनकी छवि किसान नेता के तौर पर उभरनी चाहिए, इस पर वो जितना ध्यान देंगे उतना उनकी पूंजी बढ़ेगी.
प्रो. आनंद कुमार, JNU

सचिन पायलट

राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की पहचान कांग्रेस में बगावती नेता के तौर पर रही है. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले प्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. लेकिन राजस्थान कांग्रेस के अंदर नेतृत्व को लेकर आंतरिक कलह जारी है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के विवाद से कांग्रेस कार्यकर्ता पशोपेश में हैं, उन्हें समझ नहीं आ रहा कि क्या करें? कांग्रेस ने अभी तक सचिन पायलट की भूमिका तय नहीं की है, ऐसे में सवाल है कि क्या पार्टी उन्हें राजस्थान विधानसभा चुनाव में सीएम फेस बनाएगी?

ADVERTISEMENT
ऐसा नहीं लग रहा है कि अशोक गहलोत नेतृत्व से हटा दिए जाएंगे और पायलट सरकार का नेतृत्व करेंगे. उन्हें कार्यकर्ताओं को एकजुट करना और कांग्रेस के नेतृत्व में काम करना होगा.
रंजनी रंजन झा, BHU

राजस्थान में लोकसभा की 25 सीट हैं. बीजेपी ने 2014 में क्लीन स्वीप किया तो 2019 में 24 सीट पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस का दोनों चुनाव में खाता तक नहीं खुला था. ऐसे में अगर, सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच का विवाद जल्द नहीं सुलझा तो 2023 और 2024 में भी पहले के नतीजे दोहराये जा सकते हैं.

राजनीतिक जानकारों की मानें तो सचिन पायलट की छवि कांग्रेस के अनुशासित कार्यकर्ता की नहीं हो पाई है. उनकी छवि कुर्सी के लिए बेचैन युवा कांग्रेस की है जो जात-पात के नाम पर अपनी दावेदारी कर रहा है. उन्हें कांग्रेस के जननेता के तौर पर काफी सफर तय करना है.
2024 लोकसभा चुनाव राजनीति में नई पीढ़ी का दरवाजा खोलेंगे क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति में सभी दलों में नए नेताओं का प्रवेश हो चुका है. उनके लिए लोकसभा चुनाव लड़ना और अपने प्रभाव से विजय दिलाना बड़ी कसौटी है. वो अगर सफल हुए तो नेतृत्व की भूमिका पर आसीन हो सकेंगे.
प्रो. आनंद कुमार, JNU

इन नेताओं पर गौर फरमाएं तो सचिन पायलट को छोड़कर सभी अपनी पार्टी के नंबर एक या दो नेता हैं. उनके ऊपर न सिर्फ पार्टी को बचाने की जिम्मेदारी है बल्कि अपने मूल वोटर्स को रोके रखना भी एक बड़ी चुनौती है. अगर ये नेता अपनी पार्टी के लिए बेहतर प्रदर्शन कर पाए तो यकीकन 2024 चुनाव के बाद की तस्वीर अलग होगी.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×