"पीएम मोदी की आलोचना करने वाले पोस्टर लगाने के लिए हमारी गिरफ्तारी की सुर्खियां जरूर गायब हो गई होंगी. हमारा इस्तेमाल एक राजनीतिक स्टंट के तौर पर किया गया, लेकिन हम लोग जिंदा इंसान हैं. हमारी समस्याएं उसी दिन शुरू हुईं और किसी को इसकी परवाह नहीं है."
ये 39 साल की रजनी के शब्द हैं जो अब भी आम आदमी पार्टी के किसी नेता के अपने घर आने और ये सबकुछ ठीक हो जाने का आश्वासन उनके पति को देने का इंतजार कर रही हैं. उनके पति मयंक पाठक को दो महीने पहले, 15 मई को दिल्ली पुलिस ने पीएम मोदी की आलोचना करने वाले एक पोस्टर लगाने के विवाद में गिरफ्तार किया था. पोस्टर में लिखा था कि “मोदी जी हमारे बच्चों की वैक्सीन विदेश क्यों भेज दिए.”
42 साल के मयंक जो गिरफ्तारी के बाद से डिप्रेशन से जूझ रहे हैं, वे अकेले नहीं हैं. उनके साथ 41 साल के संतोष के खिलाफ भी उसी एफआईआर के तहत नेब सराय थाने में मामला दर्ज किया गया था. आम आदमी पार्टी की तरफ से साल 2017 में एमसीडी चुनाव लड़ने वाले संजय चौधरी ने मयंक और संतोष से पोस्टर लगाने को कहा था. इन दोनों को गिरफ्तार करने के बाद छोड़ दिया गया लेकिन संजय चौधरी की इस मामले में न तो अब तक गिरफ्तारी हुई है और न ही उनसे पूछताछ हुई है.
नेता और मीडिया का ध्यान दूसरे मुद्दों की ओर बढ़ गया है लेकिन संतोष और मयंक को कानूनी मामले के असली परिणामों से जूझने के लिए छोड़ दिया गया है. हमारी पहली ग्राउंड रिपोर्ट मंगोलपुरी इलाके के उन तीन लोगों के बारे में थी जिन्हें महसूस हुआ कि गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी ने उन्हें मंझधार में छोड़ दिया है. ये ग्राउंड रिपोर्ट दिल्ली के खानपुर इलाके से है और ये बताती है कि कैसे इस केस का उनके जीवन पर असर पड़ रहा है.
‘डिप्रेशन में हैं मेरे पति, उनके सेहत को लेकर डर लग रहा है’
जिस तरह से रजनी के पति मयंक को पुलिस घर से लेकर गई उसे याद करते हुए वो निराशा दिखती है. रजनी ने पूछा, “मेरे पति को गिरफ्तार करने 20-22 पुलिसवाले क्यों आए? पूरा पुलिस थाना मेरे दरवाजे पर क्यों था? उन्होंने नहीं बताया कि क्यों, कोई वारंट या आदेश नहीं दिखाया या ये भी नहीं बताया कि उन्हें किस थाने लेकर जा रहे हैं. उन्होंने हमसे झूठ बोला, उन्होंने हमसे झूठ बोला.”
लेकिन रजनी हमेशा से इस रिपोर्टर के साथ इतना खुल कर बात नहीं करती थीं. पहली बार जब ये रिपोर्टर उनसे उस दिन मिली थीं जब मयंक को गिरफ्तार किया गया था तब खानपुर एक्सटेंशन के तंग फ्लैट की खिड़की से झांकते हुए उन्होंने कहा था कि मयंक घर पर नहीं है. कई मुलाकात और सवालों के बाद उनका भरोसा जगा और वो द क्विंट के साथ अपनी कहानी साझा करने के लिए तैयार हुईं.
रजनी ने कहा “मीडिया में से किसी ने भी हमसे मिलने की कोशिश नहीं की, इसलिए जब हमने आपको देखा तो हम चिंतित हो गए और कहा कि वो घर पर नहीं हैं.”
रजनी ने आगे कहा कि जब से पुलिसवाले मयंक को घर से लेकर गए, पूरी कॉलोनी उनके बारे में बात कर रही थी. मयंक के 70 साल के पिता विनय और उनकी 62 साल की मां सुनीता ने हमें बताया कि “यहां कोई एकजुटता नहीं है. लोग इस तरह की बातें कर रहे हैं कि हमारे घर में झगड़े होते रहते हैं या यहां हिंसा होती है और कैसे हमारे संबंध अपराधियों से हैं. हमारी छवि पूरी तरह से खराब हो गई है.”
विनय पोलियो से पीड़ित एक रिटायर्ड अधिकारी हैं, जबकि सुनीता के घुटनों में लगातार दर्द रहता है.
उनकी सबसे बड़ी चिंता न तो आम आदमी पार्टी की उदासीनता है न ही ये तथ्य कि उनके जब्त फोन कभी वापस नहीं मिल पाएंगे, बल्कि ये है कि मयंक अब पहले जैसा सामान्य नहीं रहा. घटना के बाद से ही मयंक डिप्रेशन में है. वो कभी-कभार ही घर से बाहर जाता है, दोस्तों से मिलता है. उसने अपना फोन और नंबर खो दिया है और अपना नंबर वापस पाने की कोशिश भी नहीं की है. वो एक बातूनी और खुशमिजाज व्यक्ति था, अब वो हर दूसरे दिन बीमार पड़ जाता है. वो कहते हैं कि मयंक हमेशा तनाव में रहता है और किसी के साथ ये बात साझा नहीं करता कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है.
घबराए और परेशान सा दिखते हुए उन्होंने कहा “हम उनको लेकर चिंतित हैं”
वो नहीं जानते कि जांच में कोई प्रगति हुई भी है या नहीं और घटना के बाद से किसी ने उनसे संपर्क भी नहीं किया है.
क्विंट के रिपोर्टर से बात करते हुए रजनी ने कहा, “मेरी जानकारी के मुताबिक हम एक लोकतंत्र में रहते हैं. सवाल पूछना क्या एक अपराधी होने जैसा है?”
किसी भी दूसरे प्रश्न के जवाब के लिए रजनी ने हमें आम आदमी पार्टी के पूर्व उम्मीदवार संजय चौधरी के पास जाने को कहा. उन्होंने कहा- वही हैं जिसने मेरे पति को पोस्टर लगाने को कहा, वही हैं जो सब कुछ देख रहे हैं.
कुछ किलोमीटर की दूरी पर, खानपुर में ही हम संतोष से उसके दफ्तर में मिले.
पुलिस आप की एकता को अंदर से कमजोर करना चाहती है-संजय चौधरी
संजय ये मानने से नहीं हिचकते कि उन्होंने ही मयंक और संतोष को पोस्टर लगाने को कहा था. एमसीडी चुनाव के पूर्व उम्मीदवार, जिन्हें स्थानीय लोग भी अच्छे से जानते हैं, संजय चौधरी ने कहा कि “वो चाहे जो भी कहें, मैं उनके साथ खड़ा हूं. मैं उनसे और पुलिस दोनों से कहा कि वो जब चाहे मुझे बुला सकते हैं और मैं वहां पहुंच जाऊंगा क्योंकि मैंने उन्हें पोस्टर लगाने को कहा था. इसके बावजूद मुझे एक बार भी पूछताछ के लिए नहीं बुलाया गया.”
एफआईआर के पीछे के मकसद को समझने के लिए उन्होंने कहा-
'आप का कैडर मजबूत है और इसके परिणामस्वरूप हमें दिल्ली में 2020 में प्रचंड बहुमत के साथ फिर से चुना गया. मेरा मानना है कि हमारे स्थानीय कार्यकर्ताओं के पीछे पड़ कर वे पार्टी की एकता को भीतर से तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. उनका मकसद आप कार्यकर्ताओं डराना है और मेरा मानना है कि उन्होंने वो हासिल कर लिया है.
एक तरफ जहां मयंक ने पार्टी का काम काफी कम कर दिया है वहीं संतोष अब भी पार्टी के साथ काम कर रहे हैं लेकिन उसने संजय चौधरी के साथ बातचीत बंद कर दी है. "मैं आपको गलत नहीं बताऊंगा, वो पहले की तरह अब मेरा फोन नहीं उठाते. शायद वो ये मानते हैं कि उन्हें इस पचड़े में फंसाने के लिए मैं ही जिम्मेदार हूं क्योंकि मैंने ही उन्हें पोस्टर लगाने को कहा था...?"
‘वो तनाव में थे, लेकिन समझते हैं कि राजनीति की यही कीमत है’
गिरफ्तारी के अगले दिन कैसे संतोष ने उन्हें फोन किया था, ये याद करते हुए संजय ने कहा-12 बजे के बाद हम उन्हें घर लेकर आए, वो मेरे घर आए, हमने बात की. संतोष ने कहा कि उनके सर में दर्द हो रहा है और वो अपने घर चले गए. अगले दिन उन्होंने मुझे फोन किया और बताया “पूरी रात घर में वो कई बार उलटियां करते रहे. वो और भी कई बातें बताते रहे, वो मानसिक रूप से परेशान लग रहे थे.”
उनकी पत्नी सुनीता ने बताया कि आप कार्यकर्ता के तौर पर काम करने के अलावा, संतोष एक रिएल एस्टेट एजेंट के तौर पर भी काम करते हैं और उनकी आर्थिक स्थिति स्थिर है.
सुनीता ने कहा कि संतोष समझते हैं कि राजनीति में रहने पर कई बार ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है. "लोग चाहते हैं कि AAP नेता शर्मिंदा हों लेकिन इस घटना के बाद उन्हें ज़्यादा पब्लिसिटी मिली है. ये एक अच्छी चीज है बुरी नहीं है. इस तरह की चीजें वैसे भी होती रहती हैं."
संजय से दूरी बनाए रखने के बावजूद संतोष के फेसबुक प्रोफाइल पर लगभग हर दिन स्थानीय आप नेताओं से मुलाकात का अपडेट रहता है.
वो ज्वाइंट फैमली में रहते हैं और उनके चार बच्चे हैं-तीन लड़कियां और एक लड़का.
जिस दिन वो घर आए उस दिन को याद करते हुए सुनीता कहती हैं "वो झिझक रहे थे, इस बात से डरे हुए थे कि समाज उन्हें किस नजरिए से देखेगा, इसलिए मैं उन्हें लगातार कह रही थी कि जो कुछ हुआ है उसमें कुछ भी बुरा नहीं है. धीरे-धीरे उनका डर खत्म हो गया. जल्द ही वो पार्टी के काम के लिए जाने लगे. मुझे कभी डर नहीं लगा. मेरे पति की तरह जब कोई व्यक्ति अच्छा काम कर रहा है तो तब हमें डरने की क्या जरूरत है."
मामले की जांच जारी है: दिल्ली पुलिस
द क्विंट को पता चला है कि कई बार की कोशिश के बावजूद उनमें से किसी को भी एफआईआर की कॉपी नहीं दी गई है.
दोनों शख्स पर 15 मई को भारतीय दंड संहिता की दिल्ली प्रिवेंशन ऑफ डिफेक्शन ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट की धारा 3, धारा 188 (लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश की अवज्ञा) और 269 (लापरवाही से जीवन के लिए खतरनाक बीमारी के संक्रमण को फैलाने की संभावना), आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 51 (1) बी (बाधा के लिए सजा) और धारा 54 (झूठे अलार्म या चेतावनी के लिए सजा) और अंत में, प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम की धारा 3 (जो प्रिंटर का नाम पूछता है और छपाई का स्थान स्पष्ट रूप से दिखाई दे) के तहत मामला दर्ज किया गया था.
हमने नेब सराय थाना के एसएचओ से संपर्क किया जिनका कहना था कि वो जांच के बारे में बात नहीं करेंगे. "ये दिल्ली है, यहां डीसीपी के अलावा और कोई नहीं बात कर सकता." इसके बाद हम दक्षिणी दिल्ली के डीसीपी अतुल कुमार ठाकुर के पास पहुंचे जिन्होंने सिर्फ इतना कहा कि "मामले की जांच चल रही है."
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