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अंबानी की फ्रेंच कंपनी को मिली 14 करोड़ यूरो की टैक्स छूटः रिपोर्ट

अनिल अंबानी के रिलायंस समूह से ताल्लुक रखने वाली फ्रेंच कंपनी को फ्रांस के अधिकारियों ने बकाया टैक्स में छूट दी थी?

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राफेल जेट डील से जुड़ा एक नया खुलासा सामने आया है. एक फ्रेंच अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप से ताल्लुक रखने वाली एक फ्रेंच कंपनी को फ्रांस के अधिकारियों ने टैक्स में 143.7 मिलियन यूरो की छूट दी थी.

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अखबार ले मोंडे ने दावा किया है कि, मोदी सरकार के फ्रांस के साथ 36 दसॉ राफेल फाइटर जेट के सौदे पर बातचीत करने के कुछ महीनों के बाद कंपनी को टैक्स में यह छूट दी गई. फ्रांस के टैक्स अधिकारी सालों से इस टैक्स को वसूलने की फिराक में थे. अनिल अंबानी, पीएम मोदी द्वारा घोषित फ्रांस के साथ भारत के राफेल जेट सौदे में एक ऑफसेट साझेदार हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, अनिल अंबानी की रिलायंस अटलांटिक फ्लैग फ्रांस कंपनी के भीतर अन्य विदेशी कंपनियों से भी लेनदेन में विसंगतियां पाई गई थीं. कंपनी पर ट्रांसफर प्राइस का पालन न करने का आरोप लगाते हुए, फ्रांस के अधिकारियों ने कंपनी की दो बार अलग-अलग जांच की. इन जांचों में कंपनी पर एक बार 60 मिलियन यूरो और दूसरी बार 91 मिलियन यूरो का जुर्माना भी लगाया गया था.

पहली जांच के बाद, कंपनी ने फ्रेंच अधिकारियों के सामने इस मामले को निपटाने के लिए 7.6 मिलियन यूरो की पेशकश की थी, जिसे फ्रेंच अधिकारियों ने ठुकरा दिया था. लेकिन, राफेल सौदे पर हस्ताक्षर होने के कुछ महीनों बाद फ्रेंच अधिकारियों ने इस पुरानी पेशकश को स्वीकार कर लिया था.

आखिर विवाद क्या है?

ट्रांसफर प्राइसेज ही इस विवाद की असल जड़ हैं. ट्रांसफर प्राइसेज एक सिस्टम होता है, जिसका इस्तेमाल एक बड़ी कंपनी द्वारा नियंत्रित विभिन्न डिवीजनों या कंपनियों के बीच लेनदेन को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है.

किसी सिंगल कंपनी के अंतर्गत होने के लाभ का इस्तेमाल करते हुए डिजीवन टैक्स बचाने के लिए अपनी कीमतों में बदलाव कर सकते हैं. लेनदेन के बाजार का अध्ययन करने के लिए एक ऑडिटर नियुक्त किया जाता है, जो विभिन्न डिवीजनों के बीच एक-दूसरे से लेनदेन करने में ट्रांसफर प्राइज निर्धारित करता है.

फ्रांसीसी टैक्स अधिकारियों के मुताबिक, रिलायंस अटलांटिक फ्लैग फ्रांस कंपनी ने ट्रांसफर प्राइज के नियमों का पालन नहीं किया था.

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टैक्स अधिकारियों को मिली अनियमितताएं

रिपोर्ट में 30 जनवरी 2015 को एक स्टेट ऑडिटर की रिपोर्ट का हवाला दिया गया, जिसे कंपनी से जुड़ी दो प्रमुख टैक्स अनियमितताएं मिली. पहला, कंपनी ने रिलायंस ग्रुप के भीतर अन्य कंपनियों के साथ लेनदेन का डॉक्यूमेंटेशन गलत तरीके से किया था. दूसरी, ग्रुप की मूल कंपनी, रिलायंस ग्लोबकॉम लिमिटेड, बरमूडा में रजिस्टर्ड है, जिसे यूरोपीय संघ ने टैक्स हैवन के रूप में ब्लैकलिस्ट किया हुआ है.

पहला टैक्स ऑडिट

अपनी जांच फ्रेंच अधिकारियों ने 1 अप्रैल 2007 से 31 मार्च 2010 के बीच पहला टैक्स ऑडिट किया. इस ऑडिट में अधिकारियों ने रिलायंस अटलांटिक फ्लैग फ्रांस की रिलायंस समूह के भीतर अन्य कंपनियों से लेनदेन में विसंगतियां पाईंं. इसके लिए कंपनी पर 60 मिलियन यूरो का जुर्माना लगाया गया.

साल 2013 में कंपनी ने इसका विरोध किया, जिसने इस मामले को निपटाने के लिए 7.6 मिलियन यूरो की पेशकश की थी. फ्रेंच टैक्स अधिकारियों ने कंपनी की इस पेशकश को ठुकरा दिया था, इसके बाद कंपनी ने अपील दाखिल की थी.

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दूसरा टैक्स ऑडिट

1 अप्रैल 2010 से 31 मार्च 2012 के बीच टैक्स अधिकारियों ने दूसरा टैक्स ऑडिट किया. ट्रांसफर प्राइसेज को लेकर एक बार फिर समस्याएं खड़ी हो गईं और रिलायंस फ्लैग अटलांटिक फ्रांस पर 91 मिलियन यूरो का जुर्माना थोप दिया गया.

इसी तरह कंपनी ने दूसरे ऑडिट को भी चुनौती दी. साल 2012 के अंत तक, रिलायंस फ्लैग अटलांटिक फ्रांस का कुल बकाया टैक्स 151 मिलियन यूरो हो गया.

आश्चर्यजनक समझौता

ले मोंडे के मुताबिक, 29 सितंबर 2015 की एक ऑडिट रिपोर्ट में, कंपनी रिलायंस फ्लैग अटलांटिक फ्रांस ने दावा किया कि यह ‘7.5 से 8 मिलियन यूरो के बीच कुल रकम के लिए एक बड़े समझौते के प्रस्ताव के लिए टैक्स अधिकारियों के साथ एक समझौते पर पहुंचने के बारे में था.’

यह फ्रेंच अधिकारियों द्वारा पहली जांच के दौरान खारिज की गई राशि थी.

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समयसीमा की कमी

रिपोर्ट के मुताबिक, इस विवाद को फरवरी और अक्टूबर 2015 के बीच के समय में सुलझाया गया था, जब भारत और फ्रांस के बीच 36 राफेल लड़ाकू विमानों की बिक्री को लेकर बातचीत जारी थी.

ले मोंडे के एक रिपोर्टर ने ट्वीट करके इस विवाद की पूरी कहानी का खुलासा किया.

कांग्रेस बोली मोदी है तो मुमकिन है'

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने पीएम मोदी पर निशाना साधा. ले मोंडे की रिपोर्ट पर मीडिया को जानकारी देते हुए, उन्होंने कहा कि यह तथ्य कि एक ही विशेष कंपनी ने कई मौकों का फायदा उठाया है, इस बात को साबित करता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे सौदे में एक ‘बिचौलिए’ के रूप में काम कर रहे हैं.

पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा- ‘मोदी है तो मुमकिन है.’

इससे पहले, उन्होंने ट्वीट कर यह सुझाव दिया था कि कथित राफेल घोटाले में ‘भ्रष्टाचार’ तथा ‘मनी ट्रेल’ को भी रिपोर्ट में उजागर किया गया है.

CPI (M) के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी ने भी कई ट्वीट कर इस मुद्दे को उठाया. उन्होंने दावा किया कि इस घपलेबाजी के बारे में सबको पता चल गया है और इससे यह बात साफ तौर पर जाहिर होती है कि मोदी सरकार को एक ‘क्रोनी बिजनेसमैन’ का फायदा मिला है.

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रिलायंस कम्युनिकेशन ने आरोपों पर दी प्रतिक्रिया

इस बीच, रिलायंस कम्युनिकेशन ने रिपोर्ट पर सफाई दी है. कंपनी ने किसी भी 'तरफदारी' या 'लाभ' से ये कहते हुए इनकार कर दिया कि इसकी सहायक कंपनी रिलायंस फ्लैग अटलांटिक फ्रांस ने फ्रांस के कानूनी ढांचे के अनुसार टैक्स विवादों का निपटारा कर लिया है.

इसने आगे कहा कि टैक्स डिमांड 'अल्पकालिक और अवैध' थीं.

रिलायंस कम्युनिकेशन ने एक आधिकारिक बयान में कहा, ‘फ्रांस के टैक्स अधिकारियों द्वारा विचाराधीन अवधि (2008 से 2012 तक या लगभग 10 साल पहले) के दौरान, फ्लैग फ्रांस को 20 करोड़ रुपये (यानी यूरो 2.7 मिलियन) का परिचालन घाटा हुआ था. फ्रेंच टैक्स अधिकारियों ने इसी अवधि के लिए 1,100 करोड़ रुपये से अधिक की कर मांग उठाई थी. कानूनन फ्रेंच टैक्स निपटान प्रक्रिया के अनुसार, एक कानूनी निपटान समझौते पर अंतिम निपटान के रूप में 56 करोड़ रुपये का भुगतान करने के लिए हस्ताक्षर किए गए थे.

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रक्षा मंत्रालय ने भी दिया जवाब

रक्षा मंत्रालय ने भी बयान जारी करते हुए कि टैक्स पीरियड में छूट और राफेल खरीद में रियायत आपस में संबंधित नहीं है.

बयान के मुताबिक, टैक्स के मुद्दे और राफेल मामले के बीच कोई भी कनेक्शन बनाना पूरी तरह से गलत, विवादित है और इसे गुमराह करने की एक शरारती कोशिश है.

पहले के विवाद

द हिंदू में 10 फरवरी को प्रकाशित एक रिपोर्ट में आंतरिक रक्षा मंत्रालय की एक टिप्पणी का हवाला देते हुए सुझाव दिया गया है कि पीएमओ द्वारा फ्रेंच पक्ष के साथ ‘समानांतर वार्ता’ की गई थी.

रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि रक्षा मंत्रालय ने इन वार्ताओं पर आपत्ति जताई थी, जिसने कथित तौर पर राफेल सौदे में भारत की बातचीत की स्थिति को कमजोर बना दिया.

24 नवंबर 2015 को जारी की गई इस टिप्पणी पर तत्कालीन रक्षा सचिव जी मोहन कुमार और उप सचिव एसके शर्मा ने हस्ताक्षर कर दिए और फिर इसे तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के संज्ञान में भी लाया गया.

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि रिपोर्ट से साफ हो गया था कि प्रधानमंत्री राफेल डील घोटाले में शामिल थे. उन्होंने पीएम मोदी पर अनिल अंबानी की ओर से बातचीत आगे बढ़ाने का आरोप लगाया.

(ले मोंडे के इनपुट से)

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