सेना के सियासी इस्तेमाल पर चिंता जताते हुए पूर्व सैनिकों के राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखने के मामले में नया मोड़ आ गया है. दरअसल, चिट्ठी में जिन पूर्व सैन्य अफसरों का नाम लिखा है, वो दो भागों में बंट गए हैं. उधर, राष्ट्रपति भवन ने भी इस तरह की कोई चिट्ठी मिलने से इनकार किया है.
सोशल मीडिया पर वायरल हो रही इस चिट्ठी में 150 से ज्यादा सशस्त्र बलों के पूर्व जवानों का नाम दिया गया है. इनमें आठ पूर्व सेना प्रमुख भी शामिल हैं. बताया जा रहा है कि ये चिट्ठी राष्ट्रपति और कमांडर इन चीफ रामनाथ कोविंद को 11 अप्रैल को भेजी गई थी.
चिट्ठी पर बंटे पूर्व सैनिक
इस मामले में नया मोड़ उस वक्त आया जब, चिट्ठी ने लिखे नामों में से कुछ पूर्व अफसरों ने राष्ट्रपति को लिखी गई चिट्ठी का हिस्सा होने से इनकार कर दिया. इन अफसरों का कहना है कि उन्हें इस तरह की चिट्ठी की कोई जानकारी नहीं है. इस बीच, कुछ अन्य पूर्व सैनिकों ने पुष्टि की है कि उन्होंने वास्तव में सेना के सियासी इस्तेमाल पर चिंता जताते हुए राष्ट्रपति को लिखी गई चिट्ठी पर अपनी सहमति दी थी और उस पर हस्ताक्षर किए थे.
पूर्व सेनाध्यक्ष रोड्रिग्स का चिट्ठी से इनकार
चिट्ठी पर लिखे नामों की लिस्ट में सबसे पहला नाम रिटायर्ड जनरल एसएफ रोड्रिग्स का है. पूर्व सेनाध्यक्ष रोड्रिग्स ने न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा, ‘मुझे चिट्ठी के बारे में कुछ नहीं पता. हम पूरे जीवन राजनीति से दूर रहे हैं. एक अफसर के रूप में 42 साल बाद, इसे बदलने में थोड़ी देर हो गई है. मैंने हमेशा भारत को पहले स्थान पर रखा. मुझे नहीं पता कि ये लोग कौन हैं, यह फेक न्यूज है.’
सर्विस में रहने के दौरान हमने हमेशा वही किया है जो सरकार ने हमें आदेश दिया. हम देश का एक हिस्सा हैं. हमारा राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. कोई भी कुछ भी कह सकता है और फिर इसे फेक न्यूज बनाकर बेच सकता है, मुझे नहीं पता कि यह सज्जन कौन हैं, जिसने इसे लिखा है.रिटायर्ड जनरल एसएफ रोड्रिग्स, पूर्व सेनाध्यक्ष
पूर्व एयरचीफ मार्शल निर्मल चंद्र सूरी ने एएनआई को बताया कि ये चिट्ठी मेजर चौधरी ने लिखी है. उन्होंने दावा किया, "ये एडमिरल रामदास की चिट्ठी नहीं है, ये किसी मेजर चौधरी ने लिखी है. उन्होंने ही ये चिट्ठी लिखी थी, और ये व्हाट्सऐप और ईमेल पर आई थी.
उन्होंने कहा कि उन्हें गलत बताया गया था. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि चिट्ठी के लिए उनकी सहमति नहीं ली गई थी. उन्होंने कहा,
‘इस पर विराम लगाने के लिए, मैंने लिखा कि सशस्त्र बल गैर-राजनीतिक हैं और राजनीतिक रूप से चुनी हुई सरकार का समर्थन करते हैं. और नहीं, ऐसी किसी भी चिट्ठी के लिए मेरी सहमति नहीं ली गई. उस चिट्ठी में जो कुछ भी लिखा गया है, उससे मैं सहमत नहीं हूँ. हमें गलत बताया गया है.’पूर्व एयरचीफ मार्शल निर्मल चंद्र सूरी
पूर्व उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एमएल नायडू का नाम भी चिट्ठी में लिखे नामों में शामिल है. नायडू ने कहा, 'ना मैंने कोई चिट्ठी लिखी है और ना ही किसी चिट्ठी के लिए मेरी कोई सहमति ली गई.'
रक्षा मंत्री ने कहा- बिना अनुमति के नाम लिखा जाना आपत्तिजनक
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी चिट्ठी को फर्जी बताते हुए इस विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा, “उन्होंने (सेना के पूर्व अफसरों) राष्ट्रपति को भेजी गई चिट्ठी पर अपनी सहमति नहीं दी है. यह बहुत चिंताजनक है कि अगर लोगों की सहमति भी नहीं ली जा रही है और कुछ निहित स्वार्थी लोगों की ओर से फर्जी चिट्ठी और फर्जी आरोप लगाए जा रहे हैं, तो यह पूरी तरह से निंदनीय है.”
उन्होंने कहा कि लोगों से उनकी सहमति न लिया जाना आपत्तिजनक है.
“मैं कहना चाहूंगी कि चुनाव के समय, फर्जी शिकायतें नहीं दी जानी चाहिए. आपकी वास्तविक शिकायतों के लिए आपका स्वागत है, लेकिन प्रख्यात नागरिकों, प्रख्यात अधिकारियों की अनुमति के बिना, अगर चिट्ठी में उनका नाम शामिल किया जाता है? यह आपत्तिजनक है.”निर्मला सीतारमण, रक्षा मंत्री
चिट्ठी का विषय जानने के बाद दी थी सहमतिः मेजर जनरल
इस चिट्ठी में रिटायर्ड मेजर जनरल हर्ष कक्कर का नाम भी शामिल है. कक्कर ने कहा, कि उन्होंने चिट्ठी में उनका नाम लिखने को लेकर अपनी सहमति दी थी. उन्होंने एएनआई को बताया, "हां, मैंने चिट्ठी में अधोहस्ताक्षरी के तौर पर अपना नाम लिखे जाने की सहमति दी थी. मैंने चिट्ठी का विषय जानने के बाद ही सहमति दी थी."
इस चिट्ठी को मेरा समर्थन है. इसमें मेरा भी नाम है और मैं इस चिट्ठी का समर्थन करता हूं. सभी राजनीतिक दल सशस्त्र बलों का इस्तेमाल कर वोट मांग रहे हैं, फिर चाहे वह योगी हों, उर्मिला हों, केजरीवाल हों, कुमारस्वामी हों या फारूक अब्दुल्ला. उनके बयान सिर्फ वोट लेने के लिए हैं.मेजर जनरल हर्ष कक्कर
उन्होंने कहा कि देश के सशस्त्र बलों का राजनीति से कोई लेना देना नहीं है और ना ही उनका सरकार या किसी व्यक्ति विशेष से उनका कोई संबंध है. उनका संबंध सिर्फ देश से है.
इस बीच, जब चिट्ठी के विषय के बारे में पूछा गया और ये सवाल किया गया कि क्या वाकई में "सेना का राजनीतिकरण" किया जा रहा है, इस पर एयर वाइस मार्शल कपिल काक ने द क्विंट को बताया:
“हां, ऐसा पहले भी हो चुका है, अलग तरीके से हुआ है. लेकिन अब ये ज्यादा हो रहा है, बयान पर बयान आ रहे हैं. मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक बयान दे रहे हैं. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है.हम जिस बारे में बात कर रहे हैं वह सत्ताधारी पार्टी है. हमने सत्ताधारी पार्टी कहा है,स हमने कोई विचार नहीं बनाया है, कांग्रेस और बीजेपी दोनों से हमारा कोई लेना-देना नहीं है.’’एयर वाइस मार्शल कपिल काक
काक ने यह भी कहा कि सीबीआई और चुनाव आयोग जैसे विभिन्न संस्थानों को नष्ट किया जा रहा है. बता दें, चिट्ठी में दिए गए नामों में काक का नाम 43 वें नंबर पर हस्ताक्षरकर्ता के रूप में लिखा गया है.
जनरल शंकर रॉय चौधरी ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि ये चिट्ठी सशस्त्र बलों के कमांडर इन चीफ को लिखी गई है.
ये चिट्ठी डिफेंस फोर्सेज को नहीं लिखी गई है. ये चिट्ठी देश की राजनीति के मुखिया और हमारे कमांडर इन चीफ और सभी राजनीतिक दलों को लिखी गई है.जनरल शंकर रॉय चौधरी
मेजर चौधरी ने भी दी विवाद पर प्रतिक्रिया
रिटायर्ड मेजर प्रियदर्शी चौधरी (जिनके नाम का जिक्र पूर्व एयर चीफ मार्शल एनसी सूरी ने किया था) ने भी इस विवाद पर प्रतिक्रिया दी है.
मेजर चौधरी ने ट्विटर पर उन दोनों सवालों का जवाब दिया, जिनमें कहा जा रहा था कि चिट्ठी राष्ट्रपति भवन को नहीं मिली है और कुछ पूर्व सैनिकों से उनकी अनुमति नहीं ली गई है.
चौधरी ने ट्विटर पर ईमेल का स्क्रीनशॉट शेयर किया, जिसके मुताबिक ये चिट्ठी मेल के जरिए 11 अप्रैल को 12.26 बजे राष्ट्रपति और अन्य लोगों को भेजी गई थी.
एक अन्य ट्वीट में, उन्होंने चिट्ठी की जानकारी होने से इनकार करने वालों को जवाब दिया और दावा किया कि चिट्ठी में उनका नाम जोड़ने से पहले सहमति नहीं लिए जाने की बात गलत है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, “जनरल रोड्रिग्स और एसीएम सूरी ने राष्ट्रपति को लिखी चिट्ठी का समर्थन करने से इनकार किया है. कहने के लिए ठीक है, लेकिन हमारे पास उनके समर्थन के प्रमाण हैं.”
एक अन्य ट्वीट में, उन्होंने एडमिरल रामदास के एक मेल के स्क्रीनशॉट शेयर किए हैं, जिसमें चौधरी ने दावा किया कि उनसे सूरी और रोड्रिग्स के समर्थन की बात साबित होती है और जिससे उनके चिट्ठी में अधोहस्ताक्षरी के तौर पर जुड़ने की अनुमति मिलती है.
बता दें, 11 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग के दिन 150 से ज्यादा पूर्व सैनिकों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को चिट्ठी लिखी थी. इस चिट्ठी में पूर्व सैनिकों ने सेना का सियासी इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था.
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