"हम एक विचारधारा के खिलाफ नारे लगा रहे थे. हम किसी जाति को टार्गेट नहीं कर रहे थे. हम तो उस सोच के खिलाफ हैं जो ये कहता है कि जो जिस जाति का है उसे वही काम करना चाहिए."
हरियाणा (Haryana) का अशोका यूनिवर्सिटी (Ashoka University) हाल ही में कैंपस में लगे कथित जातिसूचक नारे लगने के बाद से सुर्खियों में है. यूनिवर्सिटी की एक छात्रा ने नाम न छापने की शर्त पर कथित जातिसूचक नारे के आरोपों को लेकर ये बात कही है.
इस विवाद को लेकर सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में अशोका यूनिवर्सिटी में छात्रों का एक समूह 'ब्राह्मण- बनियावाद मुर्दाबाद' के नारे लगाता दिख रहा है.
पूरा मामला क्या है?
हरियाणा के सोनीपत में अशोका यूनिवर्सिटी ने विरोध प्रदर्शन और कथित जातिसूचक नारे से लोगों का ध्यान खींचा है. ये घटना 26 मार्च की है. ये विरोध प्रदर्शन सोशल जस्टिस फोरम की अगुवाई में किया जा रहा था. इसमें छात्रों की ओर से तीन मांगे रखी गई थीं.
वीडियो का संज्ञान लेते हुए यूनिवर्सिटी ने एक्स (पहले ट्विटर) पर एक पोस्ट में लिखा, "अशोका यूनिवर्सिटी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जोरदार बहस को बहुत महत्व देता है, लेकिन यह आपसी सम्मान को भी बहुत महत्व देती है. यूनिवर्सिटी किसी भी व्यक्ति या समूह के खिलाफ नफरत की अभिव्यक्ति की निंदा करती है."
यूनिवर्सिटी ने कहा, "अशोका यूनिवर्सिटी के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा पर दिशानिर्देशों में स्पष्ट रूप से कहा है कि अभिव्यक्ति की ऐसी स्वतंत्रता असीमित नहीं है और दूसरों के अधिकारों और संवेदनाओं के लिए सम्मान का आदेश देती है. यूनिवर्सिटी में समुदाय की भावना को संरक्षित करने के लिए यह आवश्यक है."
"हमारी तीन मांगें हैं"
क्विंट हिंदी ने सोशल जस्टिस फोरम के फाउंडर अनिल कुमार बहारिया से इस मामले में बातचीत की.
अनिल कुमार कहते हैं, "हमारी तीन मांगें हैं और हम लंबे समय से इस मांग को दोहराते आ रहे हैं. लेकिन हमारी बात नहीं मानी जा रही है. हमारी पहली मांग है कि हर साल अशोका यूनिवर्सिटी में छात्रों, शिक्षकों और सभी कर्मचारियों की 'जातीय जनगणना' कराई जाए. इसके आधार पर यूनिवर्सिटी की प्रवेश प्रक्रिया में आरक्षण लागू करना है. दूसरी मांग है कि हमें हर साल भीम राव अंबेडकर की सामाजिक न्याय पर आधारित लेक्चर सीरीज आयोजित करने का मौका मिले."
सोशल जस्टिस फोरम ने एक बयान जारी किया है जिसमें कहा गया है, "अशोका यूनिवर्सिटी की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध कराए गए एनआईआरएफ के आंकड़ों में राष्ट्रीय जनसंख्या में उनके अनुपात के विपरीत एससी-एसटी-ओबीसी छात्रों की संख्या गंभीर रूप से कम है. हालांकि, यूनिवर्सिटी अपनी स्थापना के समय से ही खुद को विविध और समावेशी के तौर पर प्रचारित कर रही है. सोशल जस्टिस फोरम 20 मार्च से यूनिवर्सिटी के दावों में गंभीर विरोधाभासों को उजागर करते हुए विरोध कर रहा है."
सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में शिक्षा से जुड़े मामलों की पैरवी करने वाले वकील अशोक अग्रवाल ने क्विंट हिंदी को बताया कि किसी यूनिवर्सिटी में जातिगत जनगणना कराए जाने को लेकर कानून में कोई प्रावधान नहीं है.
ये मसला यूनिवर्सिटी और छात्र के बीच का है, लेकिन अगर यूनिवर्सिटी अपने स्तर पर ऐसा कोई फैसला लेती है तो इससे किसी को कोई गुरेज नहीं होना चाहिए. लेकिन हां, कानूनन उन्हें बाध्य नहीं किया जा सकता है.अशोक अग्रवाल, एडवोकेट
कथित जातिसूचक नारों से उपजा विवाद?
लेकिन अशोका यूनिवर्सिटी के छात्रों की इन मांगों के बीच एक विवाद ये भी है छात्रों ने कथित तौर पर जाति विशेष के खिलाफ नारे लगाए.
इसपर अनिल कुमार बहारिया कहते हैं, "मैं कबूलता हूं कि नारे लगे थे, लेकिन ये नारे किसी जाति विशेष को टारगेट कर नहीं लगाए गए हैं. इन नारों में ब्राह्मणवाद और बनियावाद के उस वर्चस्व का जिक्र किया है जो समाज में लंबे समय से चलता आ रहा है. हम किसी जाति के खिलाफ नहीं हैं. हम ये नारे आगे भी लगाते रहेंगे. इस यूनिवर्सिटी के शीर्ष पदों पर ब्राह्मण और बनिया समुदाय के लोग बैठे हैं और वे हमारी तकलीफ को नहीं समझते हैं."
अनिल कुमार डॉ भीम राव आंबेडकर की भाषण का जिक्र करते हुए कहते हैं, "हम किसी जाति विशेष के खिलाफ नहीं हैं. बाबा साहब आंबेडर ने अपने भाषण में कहा था, ब्राह्मणवाद से मेरा मतलब एक समुदाय के रूप में ब्राह्मणों की शक्ति, विशेषाधिकार और हितों से नहीं है. यह वह अर्थ नहीं है जिसमें मैं इस शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूं. ब्राह्मणवाद से मेरा मतलब स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना को नकारना है. इस अर्थ में यह सभी वर्गों में व्याप्त है और केवल ब्राह्मणों तक ही सीमित नहीं है, हालांकि वे इसकी मूल में रहे हैं.' हम भी नारों के सहारे बिल्कुल यही कहना चाह रहे थे."
'फीस में देरी होने पर आईडी ब्लॉक कर दिए जाते हैं, खाना-पढ़ना मुहाल हो जाता है'
नाम छापने की शर्त पर यूनिवर्सिटी की एक छात्रा कहती हैं, "कुछ छात्र मजबूरन फीस नहीं भर पाते हैं तो उनका अकाउंट ब्लॉक कर दिया जाता है. इससे छात्रों को स्टडी मैटेरियल नहीं मिल पाता. उनका पोर्टल ब्लॉक कर दिया जाता है. आईडी ब्लॉक होने से उनके खाने-पीने की भी दिक्कत हो जाती है. हम चाहते थे कि हमारी ये मांग भी मानी जाए और किसी छात्र के साथ ऐसा न किया जाए."
अनिल कुमार आईडी ब्लॉक किए जाने से रोकने को छात्रों की तीसरी मांग बताते हैं.
अनिल कुमार कहते हैं,
"हम अपनी मांगों को लंबे समय से उठा रहे थे. हमने अपनी मांगों के ध्यान में लाने के लिए यूनिवर्सिटी के को-फाउंडर संजीव बिखचंदानी के सामने गए. वे उस वक्त क्लास ले रहे थे. हमने उनके क्लास के बाहर नारे लगाए तब जाकर वाइस चांसलर ने इस मुद्दे में थोड़ी रुचि दिखाई और हमारी मांग सुनने को तैयार हुए. इसके बाद उन्होंने एक मीटिंग बुलाई जिसमें करीब 200 छात्र शामिल हुए. लेकिन तीनों मांग सुनने के बाद उन्होंने इसे मानने से इनकार कर दिया. तब से हम अपनी मांग पर अड़े हैं."
इस मामले में यूनिवर्सिटी का पक्ष जानने के लिए क्विंट हिंदी ने अशोका यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को ईमेल किया है. उनका जवाब मिलते ही इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.
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