AstraZeneca यानी वो कंपनी जो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (Oxford University) के साथ कोरोना की वैक्सीन बना रही थी और जिसे वैक्सीन (Vaccine) की रेस में सबसे आगे माना जा रहा था, उसने ट्रायल रोक दिया है. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि स्टडी में हिस्सा लेने वाला एक व्यक्ति बीमार हो गया. इस घटना से जल्दी वैक्सीन के इंतजार में बैठी दुनिया को झटका लगा है. लेकिन समस्या इतनी ही नहीं है, वैक्सीन बनने के बाद उसे लोगों तक पहुंचाना भी बड़ी चुनौती है. अगर आज भी कोरोना वैक्सीन बन जाए, तो आम लोगों तक पहुंचने में इसे कितना वक्त लगेगा और इसके लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जाएगी.
भारत बायोटेक, सीरम इंस्टीट्यूट और जाइडस कैडिला ने भारत में फेज-3 का ट्रायल शुरू कर दिया है. हालांकि विश्व की अन्य कंपनियों जैसे मॉडर्ना, फाइजर आदि वैक्सीन की रेस में बहुत आगे चल रही हैं. वैक्सीन बनने के बाद इतनी बड़ी आबादी को एक साथ वैक्सीन उपलब्ध करा पाना एक बड़ी चुनौती है. क्योंकि शुरूआत में सीमित संख्या में ही इसका उत्पादन किया जा सकेगा.
कब तक आम लोगों तक पहुंचेगी वैक्सीन?
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में इस साल के अंत तक वैक्सीन को आईसीएमआर और सरकार की स्वीकृति मिल जाएगी और 2021 के अंत तक यह आम लोगों तक पहुंचेगी. हालांकि किन लोगों को पहले वैक्सीन लगाई जाए, सभी जगह इसकी डिलीवरी कैसे की जाएगी और अन्य लॉजिस्टिक चुनौतियों के कारण वैक्सीन को सभी तक पहुंचने में समय लग सकता है.
सरकार पहले ही दे चुकी है वैक्सीन का ऑर्डर
वैक्सीन (Vaccine) तैयार होने से पहले ही दुनिया भर के देश अपनी आबादी के हिसाब से इसका ऑर्डर दे चुके हैं और यह प्राथमिकता तय करने में लगे हैं कि किस क्षेत्र या वर्ग के लोगों को वैक्सीन सबसे पहले लगाई जाएगी. संभवत: हेल्थकेयर सेक्टर के लोगों को वैक्सीन सबसे पहले लगाई जाएगी. महामारी और इमरजेंसी को देखते हुए बहुत कम समय में वैक्सीन के ट्रायल पूरे किए जा रहे हैं, जिससे इसकी प्रभावशीलता को लेकर विशेषज्ञों के मन में शंका बनी हुई है.
उत्पादन और वितरण बड़ी समस्या
कोरोना वैक्सीन (Vaccine) निर्माण में लगी कंपनियों के सामने सबसे बड़ी समस्या वैक्सीन तैयार होने के बाद उसके उत्पादन और वितरण की है, क्योंकि भारत जैसे विकासशील देशों में कोल्ड स्टोरेज और लॉजिस्टिक्स का अभाव है. यूरोपीय और विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में तय समय में आम लोगों तक वैक्सीन पहुंचाना एक बड़ी समस्या है.
लगाने होंगे 15 हजार विमानों से 2 लाख फेरे
लॉजिस्टिक कंपनी डीएचएल और कंसल्टिंग फर्म मैकेंज़ी की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले दो वर्षों में दुनिया भर में कोरोना वैक्सीन पहुंचाने के लिए 15 हजार विमानों से 2 लाख फेरे लगाने होंगे. इसके साथ ही गर्म क्षेत्रों में वैक्सीन की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए बड़े पैमाने पर कोल्ड वॉक्स और किट की आवश्यकता होगी. उपयुक्त कोल्ड चेन और लॉजिस्टिक क्षमता की कमी के कारण कोरोना वैक्सीन की बड़े पैमाने पर आसानी से आपूर्ति करना बहुत मुश्किल काम है. इसके लिए सरकारों, समाजसेवी संगठनों और लोगों को एक साथ मिलकर काम करना होगा.
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