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अयोध्या विवाद पर फैसला देने वाले CJI गोगोई समेत 5 जज कौन हैं?

भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं

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देश के सबसे विवाद मामले का फैसला सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज कौन हैं? जिन्होंने 40 दिन तक अयोध्या मामले पर सुनवाई की वो पांच जज कौन हैं.. भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस रंजन गोगोई समेत जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एस अब्दुल नजीर इस बेंच का हिस्सा हैं.

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खास बात ये है कि CJI जस्टिस गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं और उनके बाद भारत के नए CJI जस्टिस बोबडे ही बनेंगे जो इस बेंच का हिस्सा हैं.   

जानिए इन सभी 5 जजों को और उनके कुछ यादगार फैसलों को-

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई

जस्टिस रंजन गोगोई के पिता केशब चंद्र गोगोई असम के पूर्व मुख्यमंत्री थे. जस्टिस गोगोई ने 1978 में गुवाहाटी हाई कोर्ट से वकालत शुरू की और 2001 में इसी हाई कोर्ट में जज बने. 12 फरवरी 2011 को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने. एक साल बाद 2012 में ही उन्हें सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त कर दिया गया. 3 अक्टूबर 2018 को वो भारत के मुख्य न्यायाधीश बने.

  • जस्टिस गोगोई की छवि एक सख्त जज के रूप में सामने आई है. जस्टिस गोगोई ने ही असम में ऐतिहासिक NRC पर फैसला दिया था.
  • जनवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट में कार्यशैली के विरोध में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले 4 जजों में जस्टिस गोगोई भी शामिल थे.
  • इतना ही नहीं, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के ही पूर्व जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू और जस्टिस सीएस कर्णन को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का दोषी माना था.

जस्टिस एस.ए. बोबडे

जस्टिस शरद अरविंद बोबडे ने 1978 में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच से अपनी वकालत शुरू की. सुप्रीम कोर्ट में भी कई साल तक इन्होंने वकालत की. मार्च 2000 में बॉम्बे हाईकोर्ट की बेंच में एडिशनल जज बने.

अक्टूबर 2012 को उन्हें मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया. वहीं अप्रैल 2013 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया. 17 नवंबर को रिटायर हो रहे चीफ जस्टिस गोगोई के बाद जस्टिस बोबडे ही भारत के मुख्य न्यायाधीश होंगे.
  • जस्टिस बोबडे 3 जजों की उस बेंच का हिस्सा थे, जिसने ये फैसला दिया था कि आधार कार्ड नहीं होने की स्थिति में भी किसी नागरिक को सरकारी फायदों से नहीं रोका जा सकता.
  • 2016 में दिल्ली-एनसीआर में पटाखों पर बैन लगाने वाली सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच का हिस्सा थे जस्टिस बोबडे.
  • कर्नाटक की लेखिका मेट महादेवी की किताब पर कर्नाटक सरकार ने बैन लगाया था दिया था. मेट महादेवी इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं, जहां 2017 में जस्टिस बोबडे और एल नागेश्व राव की बेंच ने उनकी याचिका खारिज़ हो गई. कर्नाटक सरकार ने इस किताब पर प्रभु बसवन्ना के भक्तों की धार्मिक भावना भड़काने के आरोप में प्रतिबंधित किया था.

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़

जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने अमेरिका के हारवर्ड लॉ स्कूल से ज्यूरिडिकल साइंस में पीएचडी की. बॉम्बे हाई कोर्ट में वकालत से शुरुआत की. 1998 में उन्हें भारत सरकार में एडिशन सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया. जून 2000 में बॉम्बे हाई कोर्ट के जज बने. वहीं अक्टूबर 2013 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुए.

वहां से मई 2016 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने. जस्टिस चंद्रचूड़ ऐसी कई बेंच का हिस्सा रहे जिन्होंने समाज से जुड़े कई बड़े फैसले दिए.

  • 6 सितंबर 2018 को जस्टिस चंद्रचूड़ उस संवैधानिक बेंच का हिस्सा थे जिसने समलैंगिक सेक्स को को गैरकानूनी बनाने वाली IPC की धारा 377 को असंवैधानिक ठहराया था.
  • इतना ही नहीं, जस्टिस चंद्रचूड़ ने निजता के अधिकार को भी भारतीय नागरिकों का संवैधानिक अधिकार बताने वाला फैसला दिया था.
  • इसके अलावा सितंबर 2018 में ही जस्टिस चंद्रचूजड़ ने व्यभिचार (एडलट्री) को कानूनी जुर्म बनाने वाली IPC की धारा 497 को भी असंवैधानिक घोषित किया था. खास बात ये है कि ये एडलट्री के खिलाफ धारा 497 को 1985 में जस्टिस चंद्रचूड़ के पिता जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ ने ही संवैधानिक माना था.
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जस्टिस अशोक भूषण

उत्तर प्रदेश के जौनपुर में जन्मे जस्टिस अशोक भूषण ने 1979 में वकालत शुरू की. इस दौरान उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी वकालत की. अप्रैल 2001 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थायी जज नियुक्त हुए. 2015 में उन्हें केरल हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया. यहां से करीब 14 महीने बाद मई 2016 में उन्हें प्रमोट कर सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त किया गया.

  • जस्टिस अशोक भूषण सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की उस बेंच का हिस्सा थे जिसने 2018 में दिल्ली में प्रशासन के अधिकार से जुड़ा फैसला दिया था. इस फैसले के तहत बेंच ने मुख्यमंत्री को ही दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का कार्यकारी मुखिया माना था और कहा था कि जिन मामलों दिल्ली सरकार को कानून बनाने का अधिकार है, उन पर लेफ्टिनेंट गवर्नर को मंत्री परिषद की सलाह से काम करना होगा.
  • जस्टिस भूषण और जस्टिस एके सीकरी की बेंच ने आधार को पैन कार्ड से लिंक करने के केंद्र सरकार के फैसले पर अस्थायी रोक लगाई थी. इसके बाद ही 9 जजों की बेंच ने निजता के अधिकार पर फैसला दिया था.
  • इसके अलावा आतंकवाद निरोधी कानून (UAPA) में भारत सरकार ने इस साल कुछ जरूरी संशोधन किए और बिलो को संसद से पार करा दिया. इन संशोधनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गई हैं, जिन पर जस्टिस भूषण और चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने केंद्र सरकार को नोटिस दिया है.
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एस अब्दुल नजीर

जस्टिस नजीर ने 1983 में बतौर एडवोकेट बार से जुड़े और कर्नाटक हाई कोर्ट में उन्होंने प्रैक्टिस की. वहीं मई 2003 में उन्हें कर्नाटक हाई कोर्ट में ही एडिशनल जज नियुक्त किया गया. जस्टिस नजीर को फरवरी 2017 में सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया.

  • जस्टिस नजीर 5 जजों की उस बेंच का हिस्सा थे जिसने 22 अगस्त 2017 को विवादास्पद तीन तलाक को गैर कानूनी ठहराया था. 5 जजों की बेंच ने 3:2 से तीन तलाक को गैर कानूनी ठहराया था. हालांकि जस्टिस नजीर और वक्त भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे जस्टिस खेहर ने तीन तलाक को धार्मिक मान्यता का हिस्सा मानते हुए इसको सही ठहराया था.

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