अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर सुप्रीम कोर्ट में अब अगली सुनवाई 13 जुलाई को होगी. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से सीनियर वकील राजीव धवन ने तीन जजों वाली बेंच के सामने दलील पेश की. उन्होंने कहा, ‘मस्जिद कोई मजाक के लिए नहीं बनायी गयी थी, हजारों लोग यहां नमाज अदा करते है. क्या ये काफी नहीं है?’
इससे पहले 17 मई को कोर्ट ने 6 जुलाई तक के लिए मामले की सुनवाई को स्थगित कर दी थी. कोर्ट ने कहा था गर्मी की छुट्टियों के बाद इस पर फिर से सुनवाई शुरू होगी.
हिंदू पक्षकारों की दलील-नहीं किया जाए विस्थापित
17 मई को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और एसए नजीर की पीठ ने मामले की सुनवाई की थी. रामलला की ओर से पेश हुए वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढांचे का कोई धार्मिक महत्व नहीं है, जबकि भगवान राम का जन्मस्थान ऐसी जगह है जिसके साथ हिंदुओं की धार्मिक आस्था जुड़ी हुई है.
हिंदू पक्षकारों ने दलील दी कि राम के जन्मस्थान को विस्थापित नहीं किया जा सकता है. जबकि मुसलमान अवाम के लिए इस मस्जिद का कोई विशेष महत्व नहीं है क्योंकि इससे अन्य मस्जिदों में नमाज अदा करने के अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. वहीं मुस्लिम समुदाय ने इस मामले को संवैधानिक पीठ को भेजने की सिफारिश की थी.
क्या है पूरा मामला?
बता दें बता दें कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कारसेवकों ने विवादित बाबरी मस्जिद को ढहा दिया था. जिसके बाद मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा.
इस मामले में ये तीनों हैं पक्षकार
- सुन्नी वक्फ बोर्ड
- निर्मोही अखाड़ा
- राम लला
2010 में इलाहबाद हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला
साल 2010 में इलाहबाद हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ के इस विवादित स्थल को तीनों पक्षकार के बीच बांटने का आदेश दिया था.
इस फैसले में कहा गया था कि विवादित जमीन को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए. जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए. सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए, जबकि बाकी का एक तिहाई जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी. अब सुप्रीम कोर्ट की पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 13 अपीलों पर सुनवाई करेगी.
कोर्ट ने यह पहले ही साफ कर दिया है कि इस मामले को आस्था की तरह नहीं बल्कि जमीनी विवाद के तौर पर देखेगा.
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