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अयोध्या: क्यों खारिज हुआ विवादित जमीन पर निर्मोही अखाड़े का दावा

दावे के खारिज होने पर बोला निर्मोही अखाड़ा- दुख नहीं है

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निर्मोही अखाड़ा को अयोध्या मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कोई दुख नहीं है. बता दें निर्मोही अखाड़े के दावे को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ''रामलला विराजमान'' के दावे को माना है.

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निर्मोही अखाड़े से जुड़े एक शख्स ने बताया कि कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि निर्मोही अखाड़ा रामलला का ‘’सेवादार या शबैत (उपासक)‘’ नहीं है. हमें कोई गिला नहीं है, क्योंकि हम रामलला के पक्ष में खड़े थे. कोर्ट ने रामलला का पक्ष माना है और इस तरह हमारी इच्छा भी पूरी हो गई.
महंत धर्मदास, निर्मोही अखाड़ा सदस्य

वहीं मुस्लिम पक्ष को अलग से पांच एकड़ जमीन मस्जिद बनाने के लिए देने का निर्देश दिया है.

क्या होता है शबैत

उत्तरभारत में एक मंदिर के प्रतिनिधि(उपासक) को कानूनी भाषा में शबैत कहा जाता है. मंदिर में जो भी संपत्ति होती है, उसका मालिकाना हक आदर्श या प्रतीकात्मक तौर पर ही ''ईश्वर की मूर्ति'' के पास होता है. इसमें मंदिर का प्रबंधन, उसकी संपत्ति का मालिकाना हक और दूसरी चीजें शामिल होती हैं. इसका अधिकार प्रायोगिक स्तर पर किसी एक व्यक्ति के पास होता है.

इस धारणा को अंग्रेजी में ‘’Shebaitship’’ कहा जाता है और जिस व्यक्ति के पास अधिकार होता है, उसे कानूनी भाषा में शबैत(उपासक) कहा जाता है. दक्षिण भारत के मंदिरों में इस व्यक्ति को ‘धर्मकर्ता’ माना जाता है.

निर्मोही अखाड़ा कोर्ट में खुद को मंदिर का शबैत साबित नहीं कर पाया. इसके कारण ''समय सीमा से वर्जना (Barring Of Limitation)'' के चलते निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज हो गया है. मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि राम जन्मभूमि एक ''जूरिसटिक पर्सन'' नहीं है.

कोर्ट ने 5-0 से यह फैसला लिया है. बेंच में रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एस ए बोबड़े, डी वाय चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर शामिल थे.

पढ़ें ये भी: अयोध्या फैसले पर भागवत- अतीत भूलकर मिलकर मंदिर निर्माण में जुटें

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