अयोध्या को सजाया जा रहा है, रंग-रोगन का काम चल रहा है, राम मंदिर निर्माण की तैयारी जोरों पर है. 5 अगस्त को राम मंदिर का भूमि पूजन होना है जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने की भी बात कही जा रही है. लेकिन दूसरी ओर अयोध्या से करीब 25 किलोमीटर दूर धन्नीपुर गांव में सब कुछ पहले जैसा ही है. न मस्जिद बनने की कोई तैयारी दिख रही है, न ही कोई प्लानिंग.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर 2020 को बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद पर फैसला सुनाया था. इसमें अयोध्या की 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर राम मंदिर बनाने और मस्जिद के लिए अयोध्या में ही पांच एकड़ जमीन देने का फैसला सुनाया था. जिसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने 5 फरवरी को राम मंदिर से करीब 25 किलोमीटर दूर धन्नीपुर गांव में मस्जिद के लिए सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पक्ष को जमीन दी है.
मंदिर का भूमि पूजन, मस्जिद की जमीन पड़ी है खाली
धन्नीपुर के रहने वाले गब्बर खान कहते हैं,
“कोर्ट ने ऑर्डर दिया है तो मंदिर बन रहा है, मस्जिद के लिए हमारे गांव की जमीन को चुना गया है, लेकिन कोर्ट के फैसला के बाद जो कुछ लोग जमीन की नापी के लिए आए थे, उसके बाद अबतक फिर कभी कोई नहीं आया. हमें पता नहीं है कि यहां मस्जिद कब तक बनेगी?”
2500-3000 की आबादी वाला धन्नीपुर गांव. मस्जिद के लिए सरकार ने कृषि विभाग की जमीन दी है. जिसपर फिलहाल गेहूं की फसल लगी हुई है. ये इलाका लखनऊ-गोरखपुर हाइवे के नजदीक है, मस्जिद के लिए जो जमीन दी गई है उससे सटे हुए एक सूफी अब्दुर्रहमान शाहगदा शाह बाबा की मजार है. इस इलाके में मुसलमानों की अच्छी-खासी आबादी है.
धन्नीपुर और रौनाही दोनों में करीब 13-14 मस्जिद हैं. दोनों कस्बों की आबादी जोड़ दे तो सात हजार के आसपास होगी.
"हमने मस्जिद के बदले कोई जमीन नहीं मांगी थी"
सालों तक जमीन विवाद में मस्जिद पक्ष की तरफ से केस लड़ने वकील वाले और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी मस्जिद के लिए मिली जमीन से खुद को अलग कर चुके हैं. क्विंट से बात करते हुए जफरयाब जिलानी ने कहा,
“हम लोगों का कोई ताल्लुक उस जमीन से नहीं है, हम लोगों ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि हम मस्जिद के बदले कोई जमीन नहीं लेंगे. हमने रिव्यू पेटिशन डाली थी वो खारिज हो गई. फिर हम खामोश हो गए, हमने न जमीन ली है न हमसे कोई राब्ता किया गया है. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा था वो जमीन लेगी. अब सुन्नी वक्फ बोर्ड ही जाने की उन्हें कागज मिला है या नहीं. हमें मतलब नहीं है.”
बनेगी मस्जिद और इंडो-इस्लामिक रिसर्च सेंटर
सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जफर अहमद फारुकी ने मस्जिद बनने को लेकर क्विंट से कहा, "जिस जगह हमें जमीन मिली है वहां पर मस्जिद तो बननी है. साथ ही वहां पर एक हॉस्पिटल, इंडो-इसलामिक रिसर्च सेंटर, लाइब्रेरी और म्यूजियम बनेगा. इन सब चीजों के लिए एक ट्रस्ट बनाया गया है. जब हालात कोरोना के बाद नॉर्मल होंगे तो फिर काम शुरू किया जाएगा.”
अयोध्या शहर से 25 किलोमीटर दूर जमीन देने पर लोगों में नाराजगी
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद के मुस्लिम पक्षकारों में जमीन को अयोध्या शहर से दूर देने की बात को लेकर नाराजगी है. बाबरी मस्जिद की जमीन केस में अहम पक्षकार रहे हाजी महबूब कहते हैं,
“अब इस बारे में हम क्या कहें, हमें कहा गया था कि मस्जिद की जमीन अयोध्या में दी जाएगी, लेकिन इतनी दूर जमीन दे दी गई. जमीन देने को लेकर किसी मुस्लिम पक्ष से कोई सलाह भी नहीं ली गई. हम लोगों को तो अब इससे मतलब नहीं है, सुन्नी वक्फ बोर्ड ही जाने. मंदिर बना रहे हैं तो हिंदुओं में उत्साह तो होगा ही, प्रधानमंत्री आ रहे हैं, लेकिन मुसलमानों के दिल में कोई खुशी नहीं है. हर चीज हमारी होने के बावजूद भी अदालत ने हर चीज मंदिर को दे दी. हम लोगों ने कोई आवाज नहीं उठाई.””
सुन्नी वक्फ बोर्ड से भी नाराजगी
सुन्नी वक्फ बोर्ड से नाराज पक्षकार इकबाल अंसारी कहते हैं, "70 साल हम लोग मुकदमा देखते रहे, अब जमीन धन्नीपुर में मिली है. इसके मालिक सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के जफर अहमद फारुकी हैं. हमें मतलब नहीं है. अगर अयोध्या में जमीन मिलती तो हम लोग हॉस्पिटल और स्कूल दोनों बनाते. लेकिन हमें अब इन चीजों से मतलब नहीं है."
“बाबरी मस्जिद अयोध्या में थी, तब अयोध्या 5 किलोमीटर के दायरे में था. अब अयोध्या का दायरा बढ़ा दिया गया. अब जिला फैजाबाद को अयोध्या कर दिया गया. तो क्या मतलब हुआ.”इकबाल अंसारी
धन्नीपुर गांव के गब्बर खान बताते हैं कि धन्नीपुर इलाके में दो मदरसे हैं, दो इंटर कॉलेज हैं, प्राइमरी स्कूल हैं, साथ ही एक दसवीं तक का स्कूल है, लेकिन अस्पताल 20 किलोमीटर दूर है. इसके अलावा इंटर की पढ़ाई के बाद बच्चों के पढ़ने के लिए फैजाबाद या फिर कहीं और जाना होता है. टेक्निकल पढ़ाई के लिए भी कोई कॉलेज नहीं है, ऐसे में गांव के लोगों का मानना है कि अगर बड़ा मेडिकल कॉलेज या कोई टेक्निकल कोर्स कराने वाला कॉलेज खुले तो ज्यादा फायदा होगा."
बता दें कि छह दिसंबर 1992 को कार सेवकों की एक भीड़ ने बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया था. जिसके बाद करीब 27 साल तक केस चलता रहा और फिर 9 नवंबर को कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया.
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