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अयोध्या और साउथ कोरिया का कनेक्शन क्या है? 

अयोध्या के दीपोत्सव में शामिल होने आ रही हैं साउथ कोरिया की प्रथम महिला

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भारत
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अयोध्या में छह नवंबर को भव्य दीपोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. इस कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में शामिल होने के लिए साउथ कोरिया के राष्ट्रपति की पत्नी किम जोंग सूक सोमवार को अयोध्या पहुंच रहीं हैं. यह पहला मौका होगा जब अयोध्या की दिवाली की गवाह किसी देश की प्रथम महिला होंगी.

वैसे तो अयोध्या को भगवान राम की जन्मभूमि के तौर पर जाना जाता है. लेकिन कुछ दक्षिण कोरियाई लोगों के लिए अयोध्या खास महत्व रखता है. दरअसल, दक्षिण कोरिया के लोगों का मानना है कि अयोध्या से दो हजार साल पहले अयोध्या की राजकुमारी सुरीरत्ना यानी हु ह्वांग ओक अयुता (अयोध्या) से दक्षिण कोरिया के ग्योंगसांग प्रांत के किमहये शहर आई थीं. यहां उनका विवाह कोरिया के कारक वंशी राजा किम सोरो से हो गया, जिसके बाद वह कोरिया की महारानी बन गईं. कहते हैं कि जिस वक्त राजकुमारी का विवाह हुआ, उस वक्त वे 16 साल की थी. इसके बाद वह कभी अयोध्या नहीं लौटीं.

इस यात्रा के दौरान किम जोंग-सूक प्राचीन कोरियाई राज्य कारक के संस्थापक राजा किम सू-रो की भारतीय पत्नी, महारानी हौ के स्मारक पर भी जाएंगी. महारानी हौ का स्मारक अयोध्या में सरयू नदी के किनारे बना हुआ है.

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अयोध्या की राजकुमारी से दक्षिण कोरिया की महारानी बनने का किस्सा?

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, राजकुमारी सुरीरत्ना, जिन्हें हु-ह्वांग-ओक भी कहा जाता है, करीब 2000 साल पहले में 48 ईस्वी में कोरिया गईं थीं. इसके बाद उन्होंने वहां के राजा से शादी करके करक राजवंश शुरू किया.

चीनी भाषा में मौजूद दस्तावेजों में कहा गया है कि अयोध्या के राजा को सपने में भगवान ने निर्देश दिया कि वो अपनी 16 साल की बेटी को राजा किम सूरो से विवाह करने के लिए किमहये शहर भेजें.

एक लोकप्रिय दक्षिण कोरियाई किताब, समगुक युसा में कई ऐतिहासिक कहानियों और तथ्यों का जिक्र हैं. इसी किताब में उल्लेख है कि रानी ह्वांग-ओक "अयुता" यानी अयोध्या साम्राज्य की राजकुमारी थी. किम ब्यूंग-मो नाम के एक मानवविज्ञानी ने इस बात की पुष्टि की, कि वास्तव में 'अयुता' ही अयोध्या है. क्योंकि दोनों नामों के उच्चारण में भी काफी समानता है.

हालांकि, इसे लेकर कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है कि क्या वाकई में राजकुमारी का कोई अस्तित्व था. इसके अलावा इस बात का भी कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं कि राजकुमारी भगवान राम के पिता राजा दशरथ की वंशज थीं.

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कारक वंश का इतिहास

कोरिया में किम सरनेम आम है और किंग किम सुरो को किम साम्राज्य का जनक माना जाता है. पारंपरिक तौर पर कोरिया में बच्चे को पिता का सरनेम मिलता है. ऐसा माना जाता है कि इस परंपरा से रानी को दुख हुआ कि उसके बच्चे उनका सरनेम नहीं ले सकते. इस पर राजा किंग सुरो ने इस बात की इजाजत दे दी कि उनके दोनों बेटे रानी के सरनेम हियो का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके बाद से ही साउथ कोरिया में यह सरनेम चल रहा है.

आज कोरिया में कारक गोत्र के तकरीबन साठ लाख लोग खुद को राजा सुरो और अयोध्या की राजकुमारी का वंशज का बताते हैं. इस पर यकीन रखने वाले लोगों की संख्या साउथ कोरिया की आबादी के दसवें हिस्से से भी ज्यादा है.

दक्षिण कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति किम डेई जंग और पूर्व प्रधानमंत्री हियो जियोंग और जोंग पिल-किम इसी वंश से आते थे. इस वंश के लोगों ने उन पत्थरों को भी सहेजकर रखा है, जिनके बारे में माना जाता है कि अयोध्या की राजकुमारी अपनी समुद्र यात्रा के दौरान नाव को संतुलित रखने के लिए साथ लाई थीं.

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साउथ कोरिया और भारत के संबंधों में अयोध्या की भूमिका

अयोध्या और साउथ कोरिया के बीच का संबंध साल 2000 से ही शुरू हो गया था. इसके बाद साल 2001 में सौ से ज्यादा इतिहासकार और सरकार के प्रतिनिधि साउथ कोरिया के अंबेसडर के साथ भारत आए. यहां उन्होंने अयोध्या में सरयू नदी के तट पर महारानी हु ह्वांग ओक के स्मारक का उद्घाटन किया.

इसके बाद से ही खुद को कारक वंश का मानने वाले लोग हर साल महारानी के स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित करने अयोध्या पहुंचते हैं. साल 2016 में कोरिया के प्रतिनिधिमंडल ने उत्तर प्रदेश सरकार को स्मारक का सौंदर्यीकरण कराने के लिए प्रस्ताव भेजा था.

(इनपुटः BBC)

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