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नसीर,शबाना समेत 100 मुस्लिम बुद्धिजीवियों की अयोध्या पर खास अपील

राम मंदिर पर SC के फैसले के खिलाफ याचिका दायर करने के फैसले का 100 मुस्लिमों ने किया विरोध

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राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में मुस्लिम पक्षकार सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर करने पर विचार कर रहा है. एक्टर नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी समेत देशभर के 100 मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने अयोध्या फैसले को चुनौती देने वाली इस समीक्षा याचिका के फैसले का विरोध किया है.

इन 100 मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने बयान जारी कर कहा कि इस विवाद को जिंदा रखने से समुदाय को नुकसान होगा.

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बयान पर हस्ताक्षर करने वाले मुस्लिम समुदाय के सदस्यों में इस्लामिक विद्वान, सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, पत्रकार, व्यापारी, कवि, अभिनेता, फिल्म निर्माता, थिएटर से जुड़ी हस्तियां, संगीतकार और छात्र शामिल हैं. इनमें नसीरुद्दीन, शबाना के अलावा फिल्म लेखक अंजुम राजाबली, पत्रकार जावेद आनंद भी शामिल हैं.

मुस्लिम समुदाय के सदस्यों ने बयान में कहा-

“अयोध्या की विवादित जमीन पर सुप्रीम कोर्ट ने कानून के दायरे में अपना फैसला सुनाया है. लेकिन हम मानते हैं कि अदालत का आदेश न्यायिक रूप से त्रुटिपूर्ण है, हम मानते हैं कि अयोध्या विवाद को जिंदा रखने से भारतीय मुसलमानों की मदद नहीं, बल्कि नुकसान होगा.”

अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया

9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अयोध्या में 2.77 एकड़ की पूरी विवादित जमीन रामलला को देने का आदेश दिया है. ये जमीन केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगी. कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार 3 महीने के अंदर एक ट्रस्ट बनाएगी. यही ट्रस्ट मंदिर नाम निर्माण का काम देखेगा. कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को किसी दूसरी जगह 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया है. इसी जमीन पर मस्जिद बनाई जाएगी. जबकि कोर्ट ने शिया बोर्ड का मामला खारिज कर दिया. निर्मोही अखाड़ा का दावा भी खारिज कर दिया गया.

कोर्ट ने कहा है कि मस्जिद के नीचे कोई ढांचा था और वो इस्लामिक नहीं था. यानी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी. ASI की रिपोर्ट को अनदेखा नहीं किया जा सकता. ASI की रिपोर्ट में रिपोर्ट में कहा गया था कि वहां एक मंदिर था. बाबरी मस्जिद को मीर बाकी ने बनाया था. लेकिन ASI ने ये साफ नहीं किया था कि मस्जिद बनाने के लिए मंदिर को गिराया गया था. कोर्ट ने ये भी कहा कि 1992 में मस्जिद को गिराया जाना कानून के खिलाफ था.

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