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बहरमपुर: कद्दावर अधीर रंजन बनाम यूसुफ पठान, आखिर क्या है TMC की रणनीति?

Lok Sabha Election: यूसुफ पठान को उतारकर ममता सरकार कॉन्फिडेंट है क्योंकि 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और TMC की जीत का अंतर 3.56 लाख से घटकर करीब 81 हजार ही रह गया था.

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भारत
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पश्चिम बंगाल (West Bengal) की सभी 42 लोकसभा सीटों के लिए ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने उम्मीदवारों की सूची रविवार, 10 मार्च को जारी कर दी. इसके मुताबिक क्रिकेटर यूसुफ पठान बहरमपुर लोकसभा क्षेत्र (Baharampur Lok Sabha) से चुनाव लड़ेंगे.

बता दें, मुर्शिदाबाद जिले की बहरमपुर सीट को कांग्रेस नेता अधीर चौधरी का गढ़ माना जाता है. इस बार भी कांग्रेस ने इस सीट पर उन्हीं को टिकट दिया है. वहीं युसूफ पठान गुजरात से ताल्लुक रखते हैं. इसके बावजूद तृणमूल (TMC) ने उन्हें ऐसे सीट पर उम्मीदवार बनाने का रिस्क क्यों लिया जहां से TMC को हमेशा हार का सामना करना पड़ा है. आइए समझते हैं कि यूसुफ पठान (Yusuf Pathan) को लेकर क्या है टीएमसी की रणनीति?

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बहरमपुर में मुस्लिम वोटरों की संख्या ज्यादा  

बहरमपुर सीट मुस्लिम बहुल क्षेत्र है. 2011 की जनगणना के अनुसार, इस लोकसभा सीट पर तकरीबन 52 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. वहीं, 13.2 फीसदी एससी और 0.9 फीसदी एसटी वोटर हैं. ऐसे में अगर किसी एक पार्टी को अल्पसंख्यक वोट एकसाथ पड़ेंगे तो उसी पार्टी के पक्ष में बहरमपुर सीट जाने की संभावना है.

TMC के खाते में कभी नहीं आई बहरमपुर सीट

बहरमपुर लोकसभा सीट पर पिछले सात दशक में कांग्रेस या रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी का वर्चस्व रहा है. आजादी के बाद 1952 से 1980 तक यहां से रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (RSP) के त्रिदिब चौधरी लगातार सात बार सांसद रहे. 1984 में यह सीट पहली बार आतिश चंद्र सिन्हा के जरिए कांग्रेस के पाले में आई. साल 1989 में RSP ने संसद में फिर से वापसी की और 1998 तक नानी भट्टाचार्य और प्रमोथ्स मुखर्जी ने संसद में पैर जमाए रखा.

1999 में अधीर रंजन चौधरी कांग्रेस के टिकट से पहली बार सांसद निर्वाचित हुए और तब से लेकर आज तक वह इस सीट पर बने हुए हैं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी से मिली कड़ी चुनौती के बावजूद वो अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे थे. हालांकि, यह पहली बार था कि बीजेपी ने RSP को इस सीट पर पछाड़ दिया था.

यूसुफ पठान को उतारकर ममता सरकार कॉन्फिडेंट है क्योंकि 2019 लोकसभा चुनाव में अधीर रंजन और टीएमसी के उम्मीदवार के जीत का अंतर 3.56 लाख से घटकर करीब 81 हजार ही रह गया था.

पिछले चुनाव में जीत के बावजूद कांग्रेस को अपने वोट बैंक में 5 प्रतिशत का घाटा हुआ. वहीं टीएमसी ने पिछले चुनाव के मुकाबले 19.61 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की जबकि बीजेपी ने 3.93% की बढ़त हासिल की.
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साल 2021 के विधानसभा चुनाव में बहरमपुर लोकसभा क्षेत्र की सात में से छह सीट पर तृणमूल कांग्रेस जीती थी. वहीं बहरमपुर सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की.

यूसुफ पठान ही क्यों ?

देश में क्रिकेटरों की लोकप्रियता काफी अधिक रही है. हालांकि बंगाल में क्रिकेट से ज्यादा फुटबॉल को पसंद किया जाता रहा है. फिर भी यूसुफ ने लंबे समय तक आईपीएल में पश्चिम बंगाल की कोलकाता फ्रेंचाइजी केकेआर (KKR) का प्रतिनिधित्व किया है. आईपीएल में उनके सहयोगी और फिलहाल राज्य के खेल राज्य मंत्री मनोज तिवारी कहते हैं, "हमने एक साथ मिल कर आईपीएल ट्रॉफी जीती है. अब तृणमूल कांग्रेस के बैनर तले लोकसभा चुनाव भी जीतेंगे."

लेकिन सवाल यह उठ रहे हैं कि टीएमसी के पास नेता होने के बावजूद उन्होंने किसी बाहरी को टिकट क्यों दिया?

यह पहली बार नहीं है कि ममता सरकार ने किसी दिग्गज राजनेता के सामने किसी सेलिब्रिटी को उतारा है. मालूम हो कि बांकुड़ा से 9 बार एमपी रहे सीपीएम नेता बासुदेव आचार्य को हराने के लिए 2014 लोकसभा चुनाव में पूर्व एक्ट्रेस मुनमुन सेन को ममता सरकार ने मैदान में उतारा था और उन्हें जीत भी हासिल हुई. इसी पैटर्न पर उन्होंने अधीर रंजन को मात देने के लिए पूर्व क्रिकेटर और सेलिब्रिटी यूसुफ पठान को उतारा है.

यूसुफ को दावेदारी सौंपने की एक बड़ी वजह टीएमसी में चल रही अंतर्कलह पर अंकुश लगाने के तौर पर भी देखा जा सकता है. बहरमपुर सीट से इस बार पार्टी की पूर्व जिला प्रमुख सावनी सिंह राय के समर्थक उनकी उम्मीदवारी की मांग कर रहे थे. दूसरी ओर, पिछले लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार और मौजूदा जिला प्रमुख अपूर्व भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे.

वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह का कहना है कि भरतपुर के विधायक हुमायूं कबीर भी टिकट पाने की जुगत में जुटे थे.

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ऐसे में अब यूसुफ पठान का नाम सामने आते ही विधायक हुमायूं कबीर इस मुद्दे पर सबसे ज्यादा मुखर हो गए हैं. उन्होंने कहा कि अगर उम्मीदवार नहीं बदला गया तो वह बहरमपुर से निर्दलीय लड़ेंगे.

"दूसरे राज्य से किसी को लाकर कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी को नहीं हराया जा सकता. कबीर का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वह कह रहे हैं कि पार्टी ने तृणमूल के जिला नेतृत्व से बिना बातचीत के ही यूसुफ पठान के नाम की घोषणा कर दी. मैं इसे स्वीकार नहीं करता. चुनाव की तारीखों की घोषणा होने दीजिए और आप मेरी अगली कार्रवाई देखेंगे. मैं उनके खिलाफ मतदान सुनिश्चित करूंगा."
- तृणमूल कांग्रेस विधायक हुमायूं कबीर

अधीर के खिलाफ कितने मजबूत यूसुफ पठान

संतोष सिंह कहते हैं, "अंधीर रंजन चौधरी एक बड़ा चेहरा हैं. क्षेत्र में उनके अल्पसंख्यक वोट बहुत मजबूत रहे हैं लेकिन उनके साथ दिक्कत यह है कि बीजेपी के आने के बाद से यहां जो ध्रुवीकरण हुआ है उससे अल्पसंख्यक वोट पूरी तरह से टीएमसी के पास शिफ्ट हो गया है. ऐसे में अधीर रंजन चौधरी के लिए स्थिति बहुत ठीक नहीं है."

कलकत्ता के एक और वरिष्ठ पत्रकार अजय विद्यार्थी टीएमसी के लिए बहरमपुर पर संभावित फायदों का जिक्र करते हुए कहते हैं, "जिस तरह से अधीर चौधरी लगातार ममता के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं उस वजह से ममता चाहतीं हैं कि अधीर रंजन को उनके गढ़ में हराया जाए इसलिए उन्होंने यूसुफ पठान को उतारा है. इसमें पहला फैक्टर तो यह है कि वह सेलिब्रिटी हैं तो उनका चेहरा किसी से अनजान नहीं. दूसरा वह अल्पसंख्यक समाज से ताल्लुक रखते हैं तो निश्चित रूप से इसका असर चुनाव में देखने को मिलेगा."

दोनों फैक्टर होने के बावजूद भी यूसुफ पठान का जमीनी नेता ना होना और बहरमपुर सीट पर पकड़ ना होना उनके रास्ते में रुकावट बन सकता है पर टीएमसी के पास शिफ्ट हुए अल्पसंख्यक वोट से उनको फायदा होने की संभावना दिखती है.
- वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह
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थर्ड पार्टी के तौर पर बीजेपी की क्या रहेगी भूमिका

बंगाल कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने टीएमसी की ओर से यूसुफ पठान को टिकट देने पर बीजेपी को मदद देने का आरोप लगाया है. अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि ममता बनर्जी ने अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंध लगा कर बीजेपी की मदद की है इसलिए बहरमपुर से यूसुफ पठान को टिकट दिया है.

बता दें बीजेपी ने इस सीट से डॉक्टर निर्मल कुमार साहा को मैदान में उतारा है. संतोष सिंह कहते हैं, "इस इलाके में शहरी क्षेत्र में बीजेपी मजबूत है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में अभी भी उनकी पकड़ कमजोर मानी जा रही है. जिससे साफ तौर पर चुनाव में बीजेपी थर्ड पार्टी के किरदार में ही दिख रही है. अधीर रंजन चौधरी को यह लोकसभा सीट जीतने के लिए परोक्ष रूप से बीजेपी का सहयोग हासिल करना होगा."

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