कर्नाटक विधानसभा चुनाव (Karnataka Assembly elections) में बमुश्किल दो महीने बचे हैं, लेकिन बैंगलोर शहर की शिवाजीनगर निर्वाचन क्षेत्र में वोटर्स के नाम हटाने को लेकर विवाद छिड़ गया है. यह ऐसी सीट है जिस पर 2008 से कांग्रेस का कब्जा बना हुआ है.
15 जनवरी को इस निर्वाचन क्षेत्र की अंतिम मतदाता सूची (वोटर्स लिस्ट) प्रकाशित हो चुकी है, लेकिन इसके बावजूद भी अभी निर्धारित करने की प्रक्रिया चल रही है कि इस क्षेत्र के 9 हजार से अधिक लोगों को मतदान करने की अनुमति दी जाएगी या नहीं.
इतना ही नहीं, शिवाजीनगर में करीब 1.91 लाख वोटर्स हैं, जिनमें से कम से कम 40 प्रतिशत मुस्लिम हैं.
भले ही वोटर लिस्ट को अपडेट करना एक नियमित प्रक्रिया है, लेकिन इस कदम को 13 सितंबर 2021 को भारत के चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित मानक संचालन प्रक्रियाओं (SOPs) के उल्लंघन के तौर पर देखा जा रहा है, जिसमें कहा गया है कि विधानसभा की अवधि समाप्त होने से छह महीने पहले स्वत: संज्ञान से नाम नहीं काटा जा सकता है.
स्थानीय लोगों का दावा है कि ये जो नाम काटने की प्रक्रिया चल रही है वह अनुचित है, क्योंकि उनमें से अधिकांश लोग अभी भी अपने पते पर रह रहे हैं और कहीं भी शिफ्ट नहीं हुए हैं.
यह विवाद कैसे शुरू हुआ? यहां के लोगों का क्या कहना है? और यह जो प्रक्रिया चल रही है उसे चुनाव आयोग कैसे सही ठहराता है? इन सवालाें के जवाब आप तक पहुंचाने के लिए द क्विंट ने शिवाजीनगर निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया.
यह विवाद कैसे शुरू हुआ?
इस विवाद की शुरुआत अक्टूबर 2022 में हुई, जब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के समर्थकों द्वारा एक निजी शिकायत दर्ज कराई गई थी, जिसमें बताया गया था कि इस निर्वाचन क्षेत्र में 26,000 फर्जी मतदाता हैं. जिन वोटर्स को फर्जी बताया गया उनकी पहचान या तो स्थानांतरित या मृतक के रूप में की गई थी.
इस साल जनवरी में ही चुनाव आयोग ने इसका पालन किया. जहां एक ओर अंतिम मतदाता सूची तैयार की जा रही थी और 15 जनवरी को प्रकाशित की गई, वहीं दूसरी ओर 9,159 मतदाताओं को नोटिस भेजने की प्रक्रिया चल रही थी.
अंतिम वोटर लिस्ट प्रकाशित होने के बाद, बीजेपी ने हस्तक्षेप किया और 23 जनवरी को मतदाता सूची से 26 हजार नामों को हटाने की मांग की. इसके बाद पार्टी द्वारा 1 फरवरी को कर्नाटक उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका भी दायर की गई.
कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज कुमार मीणा ने द न्यूज मिनट (TNM) को बताया कि चुनाव अधिकारियों ने सभी 26 हजार नामों की जांच की और पाया कि 9,159 वोटर या तो अपने दूसरे पते पर चले गए या उनकी मृत्यु हो गई.
इसके बाद सैकड़ों लोगों को चुनाव अधिकारियों के सामने पेश होने के लिए नोटिस जारी किया गया. नोटिस में कहा गया है कि जिन लोगों के स्थानांतरित होने या मरने की सूचना दी गई है अगर वे निर्धारित तिथि और समय पर निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण कार्यालय (ERO) के समक्ष उपस्थित नहीं होते हैं तो उनका नाम लिस्ट से डिलीट कर दिया जाएगा.
इलाके के लोगों का क्या कहना है?
44 साल के अब्दुल जहीर, शिवाजीनगर के मकान कंपाउंड के रहने वाले हैं. उन्होंने द क्विंट को बताया कि "बीबीएमपी (बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका) के अधिकारी यहां रहने वाले सभी लोगों की पुष्टि करने आए थे, लेकिन उन्होंने हमसे झगड़ा किया और जल्दबाजी में चले गए."
अधिकारियों की जहीर से मुलाकात भी हुई, लेकिन इसके बाद भी जब जहीर से पूछा गया कि आपका नाम क्यों हटाया जा रहा है, तो उन्होंने कहा “मुझे नहीं पता. इन अधिकारियों ने हमारे परिवार के 33 लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाने के लिए रेखांकित किए हैं. दो महीने पहले मेरे पिता का निधन हो गया है, इसलिए उनका नाम हटाना उचित है, लेकिन बाकी सभी के नाम क्यों हटाए जा रहे हैं?"
इसी तरह 50 साल की कौसर (जिनका नाम हटाया जा रहा है) जोकि यहां इस घर में पैदा हुई हैं, ने कहा कि "हमें यह नहीं बताया गया है कि हमारे नामों को क्यों हाईलाइट (नाम हटाने के लिए मार्किंग) किया गया है. इसको लेकर हमें कोई कारण नहीं बताया गया है."
जहीर ने दावा किया कि अभी तक कई लोगों को नोटिस भी नहीं मिला है, जिससे उनके लिए निर्वाचन क्षेत्र के लिए मतदान करने के लिए अपनी पात्रता प्रदर्शित करना असंभव हो गया है.
नाजिया बानो 12 साल से अपने पति के घर में रह रही हैं. उन्होंने चुनाव अधिकारियों से मिले नोटिस को दिखाते हुए कहा कि “कोई भी चुनाव अधिकारी हमें यह नोटिस देने नहीं आया था, हमें यह डाकिया के माध्यम से मिला है. मैंने पिछली बार भी इसी निर्वाचन क्षेत्र से मतदान किया था. हमारे परिवार में केवल मुझे और मेरी भाभी को मिला है. मेरी भाभी यहीं पहली मंजिल पर रहती हैं."
नोटिस में लिखा है, "दस्तखत करने वाले को सूचित किया जाता है कि आप आमतौर पर उपरोक्त पते पर नहीं रह रहे हैं या हमारे पत्र पर आपके द्वारा कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है... और इस तरह से यह माना जाता है कि आप उपरोक्त पते पर निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य निवासी नहीं रह गए हैं."
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 22 के प्रावधानों/निर्वाचकों के पंजीकरण नियम 1960 के नियम 21ए के प्रावधानों के आधार पर निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी (ईआरओ) ने उसका (नाज़िया बानो का) नाम हटाने का प्रस्ताव दिया है.
नोटिस में लिखा है कि अगर बानो को इस प्रस्तावित कार्रवाई के खिलाफ कुछ भी पेश करना है, तो वह एक निश्चित तिथि और समय के भीतर ईआरओ कार्यालय में जमा कर सकती हैं.
बानो ने द क्विंट को बताया कि वह और उनकी भाभी "इस गलती को ठीक करने" के लिए निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण कार्यालय जाएंगी.
कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी का क्या कहना है?
17 और 24 फरवरी की मीडिया रिपोर्ट्स के संबंध में दो समान स्पष्टीकरण द क्विंट के साथ साझा किए गए.
उपरोक्त विषय और मीडिया में प्रकाशित रिपोर्टों के संदर्भ में उसमें लिखा हुआ था कि "यह स्पष्ट किया जाता है कि शिवाजीनगर विधानसभा क्षेत्र से संबंधित कुछ शिकायतों के आधार पर सत्यापन किया गया और यह पाया गया कि 9,195 व्यक्ति अपने आवास में नहीं पाए गए, जबकि 1,847 व्यक्तियों के मृत होने की जानकारी दी गई. इनमें से अभी तक किसी का नाम नहीं हटाया गया है. इन मतदाताओं को नोटिस भेजकर दिशा-निर्देशों के अनुसार आवश्यक कार्रवाई की जा रही है. इस पूरी प्रक्रिया में भारत निर्वाचन आयोग SOPs का पालन किया जा रहा है. यह ध्यान देने वाली बात है कि शिकायतकर्ताओं ने पहले ही कर्नाटक के माननीय उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका प्रस्तुत कर दी है. अब यह मामला विचाराधीन है."
इसमें यह भी कहा गया है कि "यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारतीय चुनाव आयोग (ECI) मतदाताओं के जाति और धर्म से संबंधित किसी भी तरह का डेटा कैप्चर नहीं करता है, इसलिए जाति या धर्म के आधार पर नामों को हटाने या काटने का सवाल ही नहीं उठता है."
क्विंट को मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज कुमार मीणा से उनके कार्यालय में मिलने का समय दिया गया था. लेकिन आखिरी वक्त पर मीटिंग रद्द कर दी गई, जिससे फोन इंटरव्यू नहीं किया जा सका. हालांकि हमें सूचना विभाग के संयुक्त निदेशक (इंफॉर्मेशन डिपार्टमेंट के ज्वॉइंट डायरेक्टर) से बात करने को कहा गया, जिन्होंने हमें (द क्विंट को) दो स्पष्टीकरण दिए
जब हमने उनसे पूछा कि कुछ लोगों को नोटिस क्यों नहीं मिला तो उन्होंने कहा कि "प्रक्रिया जारी है और अभी भी नोटिस भेजे जा रहे हैं. यह तब तक चलेगा जब तक कि मतदान की तारीखों की घोषणा नहीं हो जाती है."
शिवाजीनगर के कांग्रेस विधायक रिजवान अरशद द्वारा इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया गया है, इसके साथ ही विपक्ष ने इस प्रक्रिया पर तीखी आलोचना व्यक्त की है.
विधायक रिजवान अरशद ने रिपोर्टरों से बात करते हुए कहा कि "15 जनवरी को मेरे निर्वाचन क्षेत्र (शिवाजीनगर) में मतदाता सूची को अंतिम रूप दिया गया. 15 जनवरी के बाद, उन्होंने 9,200 मतदाताओं के साथ-साथ चुनिंदा बूथों और मतदाताओं को नोटिस भेजने का फैसला किया जो केवल अल्पसंख्यक समूहों (एससी/एसटी और मुस्लिम समुदाय) से संबंधित हैं.
मेरे निर्वाचन क्षेत्र में 193 बूथ हैं, उन्होंने केवल 91 बूथ को चुना. क्या यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव है? जब हम चुनाव अधिकारियों से इस पर सवाल करते हैं तो वे स्पष्टीकरण देते हुए कहते हैं. बीजेपी ने इसको लेकर शिकायत दर्ज कराई है. हमने चुनाव आयोग के समक्ष इस मुद्दे को उठाया है. मैंने कर्नाटक उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका भी पेश की है. लेकिन अगर यह नजीर (मिसाल या उदाहरण) कायम की गई तो इस देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं हो पाएंगे. लोकतंत्र का दम घुट जाएगा. एक बार नहीं फिर वे हर बार किसी न किसी निर्वाचन क्षेत्र को टारगेट करेंगे, मतदाताओं के नाम हटाएंगे, और फिर चुनाव कराएंगे."
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)